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Tuesday, February 9, 2016

ये पश्चिमी मानसिकता (या बीमारी) ही है कि "नाम और दाम" के लिए कुछ भी किया-कहा जाये सब ठीक होता है।


किसी व्यस्ततम बाजार में, सब, अपने-अपने क्रियाकलापों में व्यस्त हों भीड़ संभल कर चलने में अपना ध्यान लगाये, चलने में व्यस्त हो ।
ऐसे में किसी का भी ध्यान लोगों के साधारण क्रियाकलापों पर नहीं जाता, ऐसे में किसी ने अपनी ओर सबका ध्यान आकर्षित करना हो तो क्या करे ? जोर-जोर से चिल्लाये या कुछ अजीबोगरीब हरकतें करने लग जाये, अगर फिर भी लोग तवज्जो न दें तो ! साधारणतः हमारे-तुम्हारे जैसा व्यक्ति तो थक-हार कर चुप हो जायेगा, पर जिसे इस तरह की बीमारी हो कि लोगों का ध्यान अपने पर केन्द्रित करवाना ही हो वह नंगा होकर उल-जलूल बोलने लगेगा । और भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसा ही होता है ।
 पता लगा कि इस तरह की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति देने वाले का तो खर्चा-पानी ही इससे चलता है जो अपनी "कमाई के लिए कुछ भी करेगा" वाली तर्ज पर वो सबकुछ करते-कहते हैं जिसे हमारे यहाँ वर्जित माना जाता है।
ये पश्चिमी मानसिकता (या बीमारी) ही है कि "नाम और दाम" के लिए कुछ भी किया-कहा जाये सब ठीक होता है ये बीमारी इतनी खतरनाक होती है कि इसके बीमार लोग अपने माता-पिता तो क्या अपने चेहरे शारीर को भी घाव दे देते हैं। इनके लिए देश केवल एक जमीन का टुकड़ा होता है ये अगर ऐसा करें तो इनकी तरफ कौन ध्यान देगा कैसे इन्हें "बुकर प्राईज" या अन्य विदेशी उपहार मिलेंगे ? कैसे इनका खर्चा- पानी चलेगा ? खर्चा-पानी चल भी जाता हो तो; कैसे इनके बीमार मन को सकून मिलेगा ?