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Sunday, October 18, 2015

कैसे इस कांग्रेस ने सही लोगों को बेबात ही बदनाम करके अपना उल्लू सीधा किया ! ऐसा ही ये क्रांतिकारियों के साथ भी करते थे नेताजी सुभाष हों या बिस्मिल अजाद हों या भगत सिंह इन सबसे ज्यादा अन्याय वीर सावरकर के साथ हुआ है ...

कांग्रेस केवल पार्टी नहीं है बल्कि एक मानसिकता या संस्कार बन गयी है और इस मानसिकता के लोग जहाँ पर होंगे वहीँ से वार करेंगे |
हम विरोध करते हैं किसी छोटे मोटे नेता या कार्यकर्त्ता का जबकि मैं विरोध करता हूँ इस की विचार धारा का ! वो कार्यकर्त्ता कल को पार्टी बदल कर अपनी निष्ठां बदल लेता है लेकिन उसे शर्म नहीं महसूस होती क्योंकि वो तो गलत से
सही की ओर गमन कर रहा है |

नीचे एक अख़बार में छपा सम्पादकीय दिया है कैसे इस कांग्रेस ने सही लोगों को बेबात ही बदनाम करके अपना उल्लू सीधा किया ! ऐसा ही ये क्रांतिकारियों के साथ भी करते थे नेताजी सुभाष हों या बिस्मिल अजाद हों या भगत सिंह इन सबसे ज्यादा अन्याय वीर सावरकर के साथ हुआ है | और जब एक ईमानदार संस्कारवान व्यक्ति इस सब्ब्को सहन नहीं कर पाता तो गौडसे बन जाता है यही ये चाहते हैं ताकि इनका कोई चरित्रहीन नेता महात्मा बन जाये और ये उसकी हत्या की आड़ में अपने विरोधियों को बदनाम कर सकें और अपने कुकृत्यों को छुपा सकें जैसे पकिस्तान बनवाने की घटना |

ये तो ये समझ लो इस समय भी देश में भारतीयता (देशभक्ति) का इतना उबाल है कि इनकी एक न चल पायी और न चल पा रही है ! एक तो पिछले दस वर्षों में बाबा रामदेव जी ने लोगों में संस्कार जगा दिए हैं भाई राजीव दीक्षित जी ने इतिहास और देशभक्ति का ऐसा पाठ  पढ़ा रखा है वर्ना ऐसी ही स्थितियों में ये इमरजेंसी लगाने से नहीं हिचके थे |

इस कांग्रेस के पास इतने हथकंडे हैं .... किसी को भी बदनाम करने और केवल क़ानूनी जाल में उलझाने के लिए ही नहीं अपितु अन्य भी  ...... हम आप तो सोच भी नहीं सकते |
इनके गुर्गे लगभग हर जगह फिट हैं कोई ऐसा स्थान नहीं जहाँ इनके द्वारा उपकृत भारतीयता विरोधी तत्व न हों | जैसे कि

1 . लोग परेशान हैं दाल , प्याज व कुछ एकाध सामान की महंगाई के लिए ! लेकिन अगर ये महंगाई वास्तविक होती तो सभी चीजें महंगी होती मसलन चीनी तो साठ सत्तर रूपये किलो बिक रही होती !
लेकिन ये महंगाई बनावटी है ...... व्यापारिक क्षेत्र में व्याप्त कंग्रेसिज्म से प्रभावित और कांग्रेस से उपकृत लोग अपना कर्तव्य कांग्रस के प्रति निभा रहे हैं |
2. देश में दंगे या आपसी झगड़े के नाम पर जो बवाल मच रहा है उसके पीछे भी ऐसे ही इनके स्लीपर सेल सरकार को बदनाम करने के लिए सीधे सादे लोगों को उकसाने का काम कर रहे और अपने आप साफ़ बच जाते हैं |
3. इनके बौद्धिक वर्ग में व्याप्त स्लीपर सेल साहित्यकार अपने पुरस्कार वापस लौटा कर अपना फर्ज इनके प्रति पूरा कर रहे हैं |
4. सरकार की बड़ी बड़ी संस्थाओं में, अभी एक में ही नजर आया है; सुप्रीम कोर्ट में,  मोदी सरकार के किसी भी फैसले के विरुद्ध लोगों में भ्रम फ़ैलाने का हथकंडा चलेगा |
5. कला क्षेत्र में भी इस मानसिकता के कलाकार अपना दायित्व निबाहेंगे जैसे FTII में चल रहा है |
6. सरकारी नौकरियों में हर जगह पर इसी मानसिकता के व्यक्तियों पिछले सत्तर साओं में जमावड़ा हो रखा है वो इसे कामयाब नहीं होने देंगे इसका छोटा सा उदहारण ले लो क्या आपके आसपास के सरकारी कार्यालयों में सफाई रहने लगी ........... उलटे सफाई के के नाम पर ये उपहास के रूप में लेते हैं |
कोई भी शै छूटी  नहीं है इस मानसिकता से जो इस सरकार को सफल होने दे

Thursday, October 1, 2015

हमारे देश के बड़े शहरों ने देश को बीमार किया हुआ है ! क्योंकि शक्ति एक जगह केन्द्रित हो गयी है जैसे मानव शारीर में गठिया वात हो जाता |

दिल्ली में एक केजरीवाल क्या दस केजरीवाल आ जाएँ वो भी यही करेंगे जो ये कर रहा है !
दरअसल जैसे मानव शारीर में किसी एक जगह पर शक्ति या कुछ तत्वों का एकत्रीकरण हो जाये तो वह बीमारी बन जाता है !
वैसे ही हमारे देश के बड़े शहर देश के लिए बीमारी बने हुए हैं ! यहाँ शक्तियों का एकत्रीकरण हो गया है | जिससे वहां चरों ओर से जनसँख्या का आक्रमण हो रहा है और सुविधाएँ कम पड़ती जा रहीं हैं | लोगों को मज़बूरी के कारण इन शहरों में आना पड़ रहा है कोई शिक्षा के लिए , कोई इलाज के लिए , कोई रोजगार के लिए, ये सब मज़बूरी के मारे हैं फिर यहीं बस जाना चाहते हैं |
पिछले सत्तर सालों से लोकतंत्र के नाम पर सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है जबकि विकास का विकेंद्रीकरण होना चाहिए था |
अकेले दिल्ली में सैकड़ों बड़े बड़े कॉलेज ! सैकड़ों बड़े बड़े अस्पताल ! बड़े बड़े अन्य तकनिकी संस्थान ! कार्यलय आदि सब एक ही स्थान पर कर दिए गए |
क्यों ??????????
आज कहा जायेगा वहां की जरुरत है इसलिए !
लेकिन ;
जरुरत पड़ी क्यों ! दिल्ली में भीड़ बढ़ी क्यों ?
अगर प्रत्येक राज्य में दस बीस कॉलेज (दिल्ली जैसे ) बीस तीस अस्पताल, अन्य शिक्षण संस्थान व कार्यालय होते तो इतनी भीड़ दिल्ली में क्यों इकट्ठा होती | छोटे छोटे रोजगार भी वहीँ पनपते |
जैसे हर राज्य में एक उच्च न्यायलय है और जिला न्यायलय है फिर तहसील स्तर पर भी है वैसे ही ये सभी सुविधाएँ होती तो गांवों से पलायन भी रुकता और एक जगह शक्ति का केन्द्रीकरण नहीं होता और हमारे शहर सुन्दर होंते ;
अभी तो बीमारी हैं |
दिल्ली की तर्ज पर प्रत्येक राज्य का विकास होना चाहिए वर्ना ये शहर एक दिन समस्या बन जायेंगे |