इस स्वतंत्र प्रवृत्ति के भारत देश में निवास करने वालों की मानसिकता अंग्रेजों ने नौकरों वाली बना दी है।
इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी और सार्वजानिक क्षेत्रों में नौकरों को विशेष सुविधायें , तनख्वाह , पेंशन दोबारा नौकरी, बच्चों को नौकरी और इस सबके बावजूद हड़ताल करने के अधिकार जैसे प्रलोभन दिए गए; इन सबसे बड़ा जो लालच है वो कोई काम न करके भी आराम से तनख्वाह मिल जाना और किसी भी बात के लिए कोई दंड निर्धारित न होना; जो आज सरकार के गले की फ़ांस बन गए हैं और पढ़े लिखे लोग इन्हीं सुविधाओं के लालच में बैठे हैं बेरोजगारों के रूप में। अब तो भ्रष्टाचरण के द्वारा अथाह धन की लालसा सबसे बड़ा कारण बन गया है।
आर्थिक दृष्टि से काम का विभाजन कर दिया गया छोटा काम ! बड़ा काम ! अगर अपना काम करने वाले मामूली लोहार की आय भी कंप्यूटर इंजिनियर के बराबर हो या एक किसान की आय भी किसी क्रिकेट खिलाडी या सरकारी अधिकारी के सामान हो या छोटी सी दुकान चलाने वाले को सरकार की तरफ से नौकरी वाली सुविधाएँ और आय मिलें तो सारी बेरोजगारी ख़त्म हो सकती है। गांवों से पलायन रुक सकता है। शहरों का बोझ और गंदगी काम हो सकती है।
इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी और सार्वजानिक क्षेत्रों में नौकरों को विशेष सुविधायें , तनख्वाह , पेंशन दोबारा नौकरी, बच्चों को नौकरी और इस सबके बावजूद हड़ताल करने के अधिकार जैसे प्रलोभन दिए गए; इन सबसे बड़ा जो लालच है वो कोई काम न करके भी आराम से तनख्वाह मिल जाना और किसी भी बात के लिए कोई दंड निर्धारित न होना; जो आज सरकार के गले की फ़ांस बन गए हैं और पढ़े लिखे लोग इन्हीं सुविधाओं के लालच में बैठे हैं बेरोजगारों के रूप में। अब तो भ्रष्टाचरण के द्वारा अथाह धन की लालसा सबसे बड़ा कारण बन गया है।
आर्थिक दृष्टि से काम का विभाजन कर दिया गया छोटा काम ! बड़ा काम ! अगर अपना काम करने वाले मामूली लोहार की आय भी कंप्यूटर इंजिनियर के बराबर हो या एक किसान की आय भी किसी क्रिकेट खिलाडी या सरकारी अधिकारी के सामान हो या छोटी सी दुकान चलाने वाले को सरकार की तरफ से नौकरी वाली सुविधाएँ और आय मिलें तो सारी बेरोजगारी ख़त्म हो सकती है। गांवों से पलायन रुक सकता है। शहरों का बोझ और गंदगी काम हो सकती है।