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Tuesday, May 27, 2014

एक विषय पर विचार, चर्चा और तर्क करना चाहिए कि बेरोजगारी के लिए कौन से कारण जिम्मेदार हैं ! मेरा अपना मानना है कि बेरोजगारी के लिए केवल "नौकरों वाली मानसिकता" जिम्मेदार है।

इस स्वतंत्र प्रवृत्ति के भारत देश में निवास करने वालों की मानसिकता अंग्रेजों ने नौकरों वाली बना दी है।
इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी और सार्वजानिक क्षेत्रों में नौकरों को विशेष सुविधायें , तनख्वाह , पेंशन दोबारा नौकरी, बच्चों को नौकरी और इस सबके बावजूद हड़ताल करने के अधिकार जैसे प्रलोभन दिए गए; इन सबसे बड़ा जो लालच है वो कोई काम न करके भी आराम से तनख्वाह मिल जाना और किसी भी बात के लिए कोई दंड निर्धारित न होना; जो आज सरकार के गले की फ़ांस बन गए हैं और पढ़े लिखे लोग इन्हीं सुविधाओं के लालच में बैठे हैं बेरोजगारों के रूप में। अब तो भ्रष्टाचरण के द्वारा अथाह धन की लालसा सबसे बड़ा कारण बन गया है।
आर्थिक दृष्टि से काम का विभाजन कर दिया गया छोटा काम ! बड़ा काम ! अगर अपना काम करने वाले मामूली लोहार की आय भी कंप्यूटर इंजिनियर के बराबर हो या एक किसान की आय भी किसी क्रिकेट खिलाडी या सरकारी अधिकारी के सामान हो या छोटी सी दुकान चलाने वाले को सरकार की तरफ से नौकरी वाली सुविधाएँ और आय मिलें तो सारी बेरोजगारी ख़त्म हो सकती है।  गांवों से पलायन रुक सकता है।  शहरों का बोझ और गंदगी काम हो सकती है।
बेरोजगारी

Thursday, May 22, 2014

इसे कहते हैं यतो धर्मस्ततो जयः !
सच में !!!! सारे कलमुहों का काला मुहं दिखना बंद हो गया। 
'बाबा राम देव 
ठग हैं ! 
व्यापारी हैं ! 
ढोंगी हैं' ! 
कहने वाले ;
अब अपने गले में पत्थर बांध कर किसी गंदे नाले में डूबने तो नहीं चले गए ? 
परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज और भारत स्वाभिमान आंदोलन एक बार फिर अपने लक्ष्य में सफल हो कर 
आज फिर से अथाह लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच गए हैं। 
और इनको बुरा भला कहने वालों को मुहं दिखाना भी मुश्किल पड़ रहा है। 

Wednesday, May 14, 2014

विकास के नाम पर चुनाव का ढिंडोरा एक साजिश के तहत पीटा गया है वर्ना इस बार का चुनाव तथाकथित देशभक्ति (सेकुलरिज्म) और वास्तविक राष्ट्रवाद का देवासुर संग्राम था इसीलिए इसे "धर्म युद्ध 2014" नाम दिया गया।

लोग हार जीत को पार्टियों की नजर से देख रहे हैं ! मतलब ऊपरी तौर पर देख रहे हैं !
 अगर वास्तव मे सही विश्लेषण किया जाएं तो ……  
तो ये हार है !
तथाकथित सेकुलरिज्म की।   
ये हार है ! खोखले विकासवाद वाद की ; जिसमे आंकड़ों का खेल ही सरकार की कामयाबी मान लिया जाता है। 
ये हार है ! खोखली देशभक्ति की ; जो सिनेमा हॉल से बाहर निकल कर भुला दी जाती  है। 
ये हार है ! भ्रष्टाचार को सदाचार मानने वालोँ की। 
ये हार है ! उन विदेशी कम्पनियों, विदेशी सरकारोँ, विदेशी सस्थाओं की जो भारत मे अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे रहीं हैं।  

विकास के नाम पर चुनाव का ढिंडोरा एक साजिश के तहत पीटा 

गया है वर्ना इस बार का चुनाव तथाकथित देशभक्ति (सेकुलरिज्म) 

और वास्तविक राष्ट्रवाद का देवासुर संग्राम था इसीलिए इसे "धर्म 

युद्ध 2014"  नाम दिया गया।   

इस चुनाव में बहुत कुछ विशेष हुआ है ! उसका कारण मानो या ना मानो  ! भारत स्वभिमान आन्दोलन और परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज का  अथक परिश्रम रहा है। उनके ही प्रयासों से मोदी जी जैसा तैयार नेतृत्व सर्व मान्यता, सर्व व्यापकता पाकर चन्द्रगुप्त की भूमिका निभाने को पूरे पराक्रम से 300 से ज्यादा सीटें जीत कर भारत को पूनः विश्व गुरु बनाने का गौरव प्राप्त करेंगे। 
प पू. स्वामीजी ये कह कर  अपने सभी अनुयायीयों को समझाते रहे हैं कि जैसा नेतृत्व देश को वर्तमान मे चाहिए उसे तैयार करने मे पचास साल लग जाएँगे जो क्षमता , जो गुण , जो दृढ़ता , जो निर्भीकता इतनी बड़े देश के प्रधान मन्त्री मे होने चाहिए वो सब अधिकांस नरेन्द्र मोदी मे हैँ। इसीलिए नरेंद्र मोदी को देव इच्छा मान कर सभी स्वाभिमानी भाई - बहन स्वामी जी आदेश को पूरा करने मे लग गये।  
   अब इन्तजार है फैसले की घड़ी का; इस उम्मीद के साथ कि कांग्रेस अपने सफाये की ओर है, और ये श्राप उसको चार जून २०११ को राम लीला मैदान में मिला था जब उसने वहाँ बर्बरता का नंगा नाच नाचा था।     
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Sunday, April 27, 2014

इनके लिए तो स्वामी रामदेव जी सबसे बड़े दुश्मन हैं ! क्या करें कैसे बदला लें ! मौके की तलाश मे थे !

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बड़ी बेचैनी है स्वामी रामदेव जी के विरोधियों में ! विशेषकर कांग्रेस मे इतनी खिसियाहट है कि अपने बालों के साथ अपना चेहरा भी नौंचने लगती है ! 
कि रोक तो नहीँ पाए हम इन स्वामी जी को; लगभग पूरे चुनाव निकल गये हैं !
इन स्वामी जी ने बहुत ज्यादा नुकसान इन्हें (कांग्रेस +)पहुंचा दिया है !
इसलिए कम से कम बदला तो लिया जाये। 
इनके लिए तो स्वामी रामदेव जी सबसे बड़े दुश्मन हैं !
क्या करें कैसे बदला लें ! मौके की तलाश मे थे !
जो भी दांव फैंकते हैं उल्टा ही पड्ता है !
किंकर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति बनी हुयी थी !
ऐसे में किसी (न्यूज ट्रेडर) पत्रकार ने स्वामी जी के शब्दों (बयान) मे से हनीमून, दलित, विवाह आदि को पकड़ कर बाल की खाल निकाल दी।
वर्ना; हम तो पिछले सात - आठ सालों से स्वामी जी को देख सुन रहे हैं ! दिल्ली के रामलीला मैदान की घटना के बाद से ही स्वामी जी के शब्दों मे
घोर कड़वाहट आई है देश के दुश्मनों के प्रति; विशेषकर कांग्रेस के प्रति लेकिन इन्हीं न्यूज चैनलों व इनके पत्रकारों ने कभी इस तरह से शब्दोँ को नहीं उछाला !
स्वामी जी अपने शिविरो मे, पत्रकार वार्ताओं मे कठोर और चुभने वाली बातें बोलते रहे हैं आज तक किसी का ध्यान नहीं गया !
हनीमून शब्द हो सकता है पहले भी प्रयोग मे आया हो क्योंकि केवल घूमने के लिये जाना, या तफ़रीह के लिये कहीँ जाना, पिकनिक मनाने के लिये जाने को भी किसी को कटाक्ष करने के लिये कह देते हैं कि 'हनीमून मना के आ रहा है क्या' ! या 'हनीमून मनाने जा रहा है क्या' ! या ' हनीमून मनाके आ गया क्या ' ! या ' वो तो मौज करने जा रहा है जैसे हनीमून मनाने जाते हैं ' ! तो हनीमून शब्द को जिस प्रकार उपयोग किया गया है उसके उलट ऊसका शाब्दिक अर्थ के रुप मे परिभाषित करने का काम पहले उस पत्रकार और न्यूज चैनल ने किया।
अब दूध के धुले कांग्रेसी और उनक़ी अंगुली पकड़ के चलने वाले दलित रक्षक कर रहे हैं !
जबकि स्वामी रामदेव जी अपने बयान के लिये खेद व्यक्त कर चुके हैं।

Wednesday, February 19, 2014

उत्तराखंड की कुमांउनी बोली में मेरी दो दिन पहले लिखी ये कुछ लाईने

हमारे उत्तराखंड की कुमांउनी बोली में मेरी दो दिन पहले लिखी ये कुछ लाईने कविता जैसी बन गयी हैं 
यहाँ मेरे "टैंशन पॉइंट" ( http://tensionpoint.blogspot.in/ ) पर काफी लोकप्रिय हो रही हैं लोग मुझसे इसकी फोटो स्टेट कापियां भी मांग कर ले जा रहे हैं। 
आजकल के पंचायती चुनावी माहौल पर लिखी ये लाइनें एक दम सटीक टिपण्णी कर रहीं हैं चुनाव लड़ने वालों पर !
सुना है किसी ने इन्हें फेसबुक https://www.facebook.com/sfulara पर भी फोटो खींच कर डाल दिया