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Monday, September 2, 2013

अब चाहे बापू निर्दोष निकले या दोषी । मुख्य मकसद था संतों पर लोगों को भ्रम हो जाये ।

आसाराम बापू जी का सच तो जो भी होगा ! साल दो साल या हो सकता है दस साल भी लग जाएँ पता लगने में ! हो सकता है पता लगे ही ना ! क्योंकि न्याय और कानून व्यवस्था अपराधियों को बचाने और निरपराधियों को फंसाने के लिए ही है हिन्दुस्तान में । बहुत से केस हैं ऐसे; जिनका पिछले पचास सालों से सच झूठ का पता नहीं चला । 30-30, 35-35 सालों से जेलों में बंद ऐसे लोग बाहर निकले हैं जिन्हें अपने अपराध का पता ही नहीं था अन्दर न जाने कितने मर गए होंगे । वर्तमान में भी साध्वी प्रज्ञा व और भी हैं ।
लेकिन आसाराम बापू के केस में मीडिया ने अपना काम कर दिया है अब आप चिल्लाते रहो । 

मीडिया ने जो सिद्ध करना था वो कर दिया !बखूबी कर दिया !

अब चाहे बापू निर्दोष निकले या दोषी ।
मुख्य मकसद था संतों पर लोगों को भ्रम हो जाये ।
अब ये विश्लेषण करने की बात है कि ये उसमे कितना सफल हुए । लेकिन इनके द्वारा इस तरह बिना कोई अपराध साबित किये अपने शब्दों के चातुर्य से किसी को दोषी बना के पेश करना आने वाले समय में इनके लिए घातक होने वाला है ।
ये नहीं जानते कि भारत में इस तरह से कभी भी अपने धर्म अध्यात्म और अध्यात्मिक गुरु सत्ता के विरुद्ध अविश्वास नहीं फैला है ।
यहाँ तो खुले आम व्यभिचार करने वाले को भी महात्मा(श्रेष्ठ) का दर्ज दे दिया जाता है और उसके भी अंध भक्त करोड़ों में होते हैं । उसे पिता और चाचा घोषित कर दिया जाता है । 

ये सब किसलिए हो रहा है ??? 

क्योंकि जब जब धर्म पर देश पर संकट आता है तब तब उसे बचाने को कोई न कोई ऋषि संत आता है और सफल होता है । आज भी भारत पर विदेशियों का वर्चश्व है वो नहीं चाहते यहाँ पर कोई भी संत सुधारों की बात करे । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह से स्वामी रामदेव ने लगभग पुरे भारत को जगा दिया है उसके लिए उन लोगों को कोई आसान सा लक्ष्य चाहिए था ; "सॉफ्ट टारगेट" और वो उसकी तलाश में निरंतर रहते हैं जैसे ही कहीं भी मौका मिला अपना दांव चल दिया । 
कभी का इतिहास उठा कर देख लो जब भी भारत-भारतीयता पर संकट आया है कोई न कोई ऋषि इसे बचाने आया है । और इस समय ऋषि और संत ही इसे बचाने को सक्रीय होने लगे हैं । 
उनके हथियार हैं भारत का मीडिया,भारत की सेकुलर पार्टियाँ,भारत के सेकुलर बुद्दिजीवी, भारत के मूर्ख और भावुक लोग, लालची लोग आदि आदि कमी नहीं है ।

Saturday, August 31, 2013

नाश पिट्टे इस ऐतिहासिक पार्टी को इतिहास की पार्टी बना के ही छोड़ेंगे ! ए ओ ह्युम की आत्मा भूत बनके चिपटेगी |

कांग्रेस इतिहास बनने जा रही है ! अगर आप को अकल जाए तो !!!

और अगर आप को भी अकल न आई तो आप के साथ साथ देश भी भुगतेगा; भुगत रहा है । 

कांग्रेस एक ऐतिहासिक पार्टी है ! कितनी मेहनत और साजिश से तत्कालीन नेताओं और जनता की आँखों और बुद्धि पर पर्दा डाल कर इसे ब्रिटिश अधिकारी ए ओ ह्युम ने बनाया था ! ये आज के टटपूंजिए नेता क्या जानें ।   कितनी कुर्बानियां इसे बनाने को, और कितनी इसे बनाये रखने को, लेनी पड़ी ये कल के छोकरे(युवा बने फिरते हैं ) क्या जानें ! जब जब इसपर संकट आया, कैसे कैसे हथकंडे अपनाने पड़े; वो भी अपने वोटरों(समर्थक और विरोधी दोनों ही) से छुप छुपा कर, इन्हें क्या पता ! इन्हें तो बस पकी पकाई मिल गयी, उसी के बल पर आज तक खा रहे हैं; अब वो भी नहीं पच रहा, उलटे सीधे बिल लाकर अपनी पोल खोल रहे हैं ।
अब भला बताओ जिस "कांग्रेस" को बनाने में ए ओ ह्युम द्वारा "राजा राम मोहन राय" के "ब्रह्म समाज"की पूरी क़ुरबानी ली गयी, और उन्हें खुद को तो बिलकुल गुमनाम ही कर दिया (ताकि कांग्रेस जैसा कोई अन्य संगठन न हो, चाहे सामाजिक ही क्यों न हो) पर लोगों को कुछ भी अंदेशा नहीं हुआ वही कांग्रेस आज "आप" को खड़ा कर के अपने को बचाने की "छोटी सी बात" को भी छुपा नहीं पायी।  
और इनके बाप ए ओ ह्युम ने इस कांग्रेस के उद्देश्यों का तक पता नहीं चलने दिया इसके जन्म पर । इसके निर्माताओं नेताओं ने सन 47 में जो समझौते किये अंग्रेजों से; कितने लोगों को पता लगे ? बहुत कम गिने चुने लोगों को पता लगा कि अंग्रेजो से "ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट" नामक समझौता हुआ था । और आज ये छोटा सा ऍफ़ डी आई वाला मुद्दा भी नहीं संभाल पाए । लोगों को पता लग गया कि रूपये को उसी ऍफ़ डी आई के लिए गिराया गया है ।
इसके 127 साल के इतिहास में इसको बनाये रखने के लिए क्या क्या नहीं करना पड़ा ! कितने अपने ही नेता; लाला लाजपत राय से लेकर ………तक, मरवाने पड़े |  कितने देशभक्त क्रान्तिकारी मरवाने पड़े, या उन्हें देश विरोधी, आतंकवादी-उग्रवादी कहना पड़ा । गद्दारों को देश भक्त और देशभक्तों को गद्दार सिद्ध करना पड़ा । स्कूलों तक में ऐसी शिक्षा लागु की; कि आज भी "सेकुलर नस्ल" उनके गुण गाते नहीं थकती । 
जानते सब हैं ! पर इनके बारे में कोई भी आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कह सकता; ये इनकी काबिलियत का प्रमाण नहीं है क्या ?
आज तुम दो चार सौ लाख करोड़ के घोटाले नहीं छुपा पा रहे ! धिक्कार है तुम्हें ! अरे ! अपने पितृ पुरुष (चाचा) को तो याद कर लेते (उन्हें तो बच्चों के याद करने को छोड़ा है), जिन्होंने नेताजी बोस के साथ साथ सन 47 में उनका पूरा खजाना और रजवाड़ों से आया खजाना भी ऐसे गायब कर दिया कि उसकी भनक भी अब 67 सालों बाद सुनाई दे रही है । 
कितनी काबिलियत रही होगी तुम्हारे पित्तरों में ! जरा सोचो ! देश के दो टुकड़े करवा दिए पर अपना स्वार्थ नहीं छोड़ा ! विश्व में महान बनने के लिए कितने क्षमा शील रहे ; दुश्मन के क्षेत्र पर कब्ज़ा करके भी उसे वापस दे दिया, उसका कर्जा खुद भरने को तैयार रहे, दुश्मन की 90 हजार फ़ौज को घुटने पर बैठने को मजबूर कर दिया हमारी फौजों ने, फिर भी तुम्हारे नेता ने वो देश स्वतंत्र कर दिया । वाह रे दरियादिली ! अब ये अलग बात है; आज वो हमें बार बार लतियाता है । 
कहने का मतलब ये है ! अपने महान अय्याश नेताओं का कुछ तो अनुसरण करते । तुम तो अपने अपने रिश्तेदारों की कारगुजारियों को भी नहीं छुपा पा रहे ! जबकि अपने पितृ पुरुषों के रिश्तेदारों को देखो कितनी काबिलियत से उन्हें अय्याशी करवाई और फिर नेता बना कर देश में महान भी सिद्ध किया और कई तो आज तक राज्यों के मुख्य मंत्री-मंत्री भी बने हुए हैं ।  तुम एक दामाद के कारनामे नहीं छुपा पाए ! बड़ा आश्चर्य है । 

अपनी कमियों को पहचानो ! सारे के सारे तलुवे चाटू रखे हुए हैं; जो आँख बंद कर बस अंध भक्ति में ही लगे रहते हैं । कुछ तो दिमाग वाले चमचे होने चाहिए ! तुम्हारे नेताओं ने भी पाले हैं चमचे, पर पूरे खानदानी थे आज तक भी बुद्दिजीवियों में माने जाते हैं ।  दिमाग से अपने पुराने नेताओं की चोरियों अय्याशियों को सही सिद्ध करते रहते हैं । कोई गांधीवाद के गुण गान करता है कोई नेहरूवाद के; लेकिन पूरे दिमाग से । 
और तुमने पाले हुए हैं दिग्गी,पिग्गी,सिंघी,कप्पी जैसे जो आँख बंद कर ऐसी बातें बोल जाते हैं कि सारी पोल खोल जाते हैं । यही हाल युवाओं का है न जाने कौन से देश में पढने भेजा था इन्हें जहाँ ये ये भी नहीं सीख पाए कि कैसे सफाई से अपने नेताओं की चमचा गिरी की जाती है । 
अब तो भगवान (इनकी महारानी ! अरे भई इंग्लैण्ड वाली) ही बचाए ऐसे चाटुकारों से । रोम वाली महारनी तो फेल हो गयी ।       

Saturday, August 24, 2013

उनके इस कार्य में कांग्रेस पिछले एक सौ सत्ताईस वर्षों से कार्यरत है ।

दोस्तो ! इन लाईनों पर जरा चिंतन करना ..... ये कोई अध्यात्मिक उपदेशों की लाईनें नहीं हैं ; 
"जो दीखता है वो होता नहीं ! (या छोटा सच होता है मन बहलाने को ! )
जो वास्तव में होता है वो दीखता नहीं" ॥ (बड़ा सच, छुपा सच, उसे सब मानते नहीं ) | 
भाई राजीव दीक्षित और 
स्वामी रामदेव जी की बातो 
से मुझे जो समझ में आया है ; 
कि भारत समेत पूरे विकासशील देशों पर ईसाइयत का कब्ज़ा हो चूका है जिसे ये मुसलमानों की कट्टरता और मूर्खता से हर देश के मूल निवासियों के साथ लड़वा कर कायम रखने के प्रयास में हैं । जितनी भी वैशिवक संस्थाएं हैं इनके प्रमुख ईसाई और उन्हीं पश्चिमी देशों के हैं जो विश्व को अपना गुलाम बनाये रखना चाहते हैं विश्व बैंक,विश्व स्वास्थ्य संगठन,विश्व व्यापर संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष,यु एन ओ ....... आदि आदि ; इनके इस कार्य में सहयोग कर रहीं हैं । 
जो भी देश या उसका कोई नेता (चाहे चुना हुआ हो या अपने प्रयासों से बना हो) इनका विरोध करेगा या इनकी नहीं मानेगा तो उसका हस्र इराक,मिस्र,लीबिया,रूस और भी जाने कितने ऐसे देश होंगे जिन्हें इन्होने बर्बाद कर दिया । 
वर्ना जो राष्ट्राध्यक्ष अपने यहाँ चालीस चालीस साल से शासन कर रहा है और लोकप्रिय है वो अचानक पूरे देश के लिए दुश्मन बन जाये ! आश्चर्य होता है । 
*हमें ये गलत फहमी है कि हम वोट देकर अपने देश का नेता चुनते हैं ! ये केवल दिखाई देने वाली "प्रणाली" है देश का नेता उपरोक्त शक्तियां ही तय करती हैं जो नहीं दिखाई देने वाला सच होता है । 
विशेषकर जब कांग्रेस का बहुमत होता है । 

जैसे; "15 अगस्त को देश आजाद हुआ" ! केवल दिखावे वाला सच था, जबकि वास्तविकता में देश को और ज्यादा विदेशी गुलामी में शर्तों के साथ बाँध दिया गया ।
जैसे; "देश में न्याय व्यवस्था और कानून सबके लिए सामान है", जबकि वास्तविकता में ये सब ढकोसला विदेशियों के ज़माने से लागु है उन्होंने अपने लोगों को बचाने और आम जनता को गफलत में रखने को ऐसी न्याय प्रणाली बनायीं जिससे लोगों को लगे कानून अपना काम रहा है और उनके अपने अत्याचारी अधिकारी और मित्र मजे में अपना जीवन जीते रहें ।
*सबकुछ वही है जो जो सन सैंतालिस से पहले था ! नेताजी सुभास चन्द्र बोस का सच भी अभी सामने नहीं आया ! प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की म्रत्यु का सच ! और भी कई देशभक्त नेताओं और क्रांतिकारियों की मृत्यू का सच क्या है कोई नहीं जानता । 

अब जरुरत है ! इस साजिश को आपस में लड़ने वाले हिन्दू मुसलमानों को समझने की और उन तथाकथित नेताओं को पह्चानने की जो या तो उन शक्तियों के किसी न किसी दबाव में हैं या केवल अपने मुर्खता पूर्ण स्वार्थ वश एक दुसरे का भला करने का झांसा देकर सभी देश भक्तों को बांट कर रखते हैं । 

मुसलमानों को ये सोचना होगा कि जिन भलाई के मुद्दों को ये शुरू से उठा रहे हैं वो आज तक भी क्यों जस के तस बने हुए हैं । और हिन्दुओं को ये सोचना होगा कि कुछ मूर्ख और ईसाईयों की साजिश में फंसे मुस्लिमों की वजह से सारा मुस्लिम समाज गलत नहीं है । 
उन विदेशियों की साजिश को प्रत्येक देश में वहां का समाचार जगत और वहां की मुख्य राजनितिक पार्टी अन्दरखाने पूरा समर्थन करते हैं जैसे हमारे भारत में कांग्रेस और उसकी पिछलग्गू मीडिया, ये इस साजिश को थोडा सा भी लीक नहीं होने देते । केवल जनता का ध्यान भटके या निरर्थक विषयों पर उलझा रहे ऐसे समाचार दिखा दिए जाते हैं न मिलें तो बना दिए जाते हैं । उन समाचारों को प्रथमिकता दी जाती है जिससे राष्ट्रीयता की भावना का मखौल उड़े; धर्म अध्यात्म संस्कृतिक विरासत पर लोगों का विश्वास कम हो और वो अपना राज कायम रख सकें ।
उनके इस कार्य में कांग्रेस पिछले एक सौ सत्ताईस वर्षों से कार्यरत है ।

Friday, March 1, 2013

कृषी के बिना कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो किसी को आधी रोटी भी उपलब्ध करा दे ।

"बजट पर बकवास" 

सभी अपने अपने "खयाली पुलाव" पकाने में लगे हैं ! कुछ दिन के पेट भरने का इंतजाम हो जायेगा । 

इस व्यवस्था में प्रतिवर्ष के बजटों से कुछ अच्छा होना होता तो देश का ये हाल थोड़े ही होता । इसलिए व्यवस्था को बदलने वाला बजट होना चाहिए ।


व्यवस्था ऐसी है कि जो घर घर में उद्योग धंधे थे उन्हें ख़त्म करके बड़े उद्योगों का जाल बुना गया, जो गाँव-गाँव में स्कूल होते थे (जिनमे विद्वान् तैयार होते थे) उन्हें बदल कर नौकर बनाने वाले स्कूलों में बदला गया, जो व्यक्ति विद्वान् हो कर भी अपने हस्तकौशल से वस्तुओं का निर्माण करके समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था उसे कुर्सी (क्लर्क-चपरासी) का लालच देकर निट्ठल्ला बना दिया, खेती की जमीन को उद्योगों- कालोनियों, परियोजनाओं के नाम पर और किसानों को मुआवजे का लालची बना कर जमीन और किसान दोनों ही बर्बाद कर दिए .....कृषी के बिना कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो किसी को आधी रोटी भी उपलब्ध करा दे ।

कहने का मतलब सामजिक ढांचा ही गड़बड़ा दिया है ;


फिर कहते हैं महंगाई कम नहीं हो रही ! फिर चिंता करते हैं अपराध बढ़ रहे हैं ! फिर चिंता करते हैं बेरोजगारी बढ़ रही है ! फिर चिंता करते हैं रोजगार के अवसर कैसे बढ़ें ! फिर चिंता करते हैं देश बहुत बड़ा है ( कल शाम टी .वी चैनल पर एक कांग्रेसी मैडम कह रही थी 'कांग्रेस कैसे इतने बड़े देश की व्यवस्था संभालती है तुम्हें क्या पता', देश को बर्बाद करके  जैसे देश पर एहसान करते हों)।

और ये सब बर्बादी वाली व्यवस्था अंग्रेजों ने कुछ सोच-समझ कर ही बनायीं थी । उन्होंने जो हमारा सामाजिक ढांचा था उसे तहस नहस करना था । क्योंकि न यहाँ गरीबी थी, न यहाँ बेरोजगारी थी, न यहाँ निट्ठल्लापन था, हर कोई कर्मयोगी था, लेकिन सरकार पर निर्भर नहीं था | यहाँ तक कि सेना भी नाम मात्र की होती थी आम जनता में सभी सैनिक होते थे, जब देश को जरुरत पड़ती थी सब एकत्र हो जाते थे, बाकि समय अपना-अपना काम-धंधा करते थे ।
एक किसान ( जिसको जमींदारी प्रथा के नाम पर बदनाम किया गया) सबकी जरूरतों को ख़ुशी-ख़ुशी पूरा करता था । लोहा कूटने वाला लोहार, बाल काटने वाला नाई, कपडे सिलने वाला दरजी, हल जोतने वाला हलिया, लकड़ी का काम करने वाला बढ़ई, विद्यालयों में पढ़ने वाला विद्वान्, और भी जो जो कामगार होते थे, यहाँ तक कि राज व्यवस्था भी लगान के रूप में अपना हिस्सा इसी समय लेती थी, सभी फसल चक्र पूर्ण होने पर किसनों के पास पहुँचते थे अपना-अपना प्रयाप्त हिस्सा लेकर संतुष्टि से जीवन यापन करते थे । और इस सब में कहीं बेईमानी नहीं होती थी किसान दो मुट्ठी अनाज ज्यादा ही देता था, कामगार भी समय से अधिक ही काम करता था । देश सुखी सम्पन्न और खुशहाल था ।

अंग्रेजों ने जब अपना राज कायम किया तो न किसानों ने उन्हें लगान दिया न किसी और ने उनके काम किये , दरअसल उन्हें "कर प्रणाली"का अनुभव था जिसे हमारे यहाँ स्वतंत्र मानसिकता वाले लोगों ने स्वीकार नहीं किया, जिससे उन्होंने कानून बना कर लूटने का काम किया । उनको काम करने के लिए नौकर नहीं मिले, गुलाम बनने को कोई तैयार नहीं था तो उन्होंने इस सामाजिक ढांचे को ध्वस्त करने लिए ये व्यवस्था बनाई , जिसे समझ कर ही तत्कालीन स्वतंत्र मानसिकता वाले बुद्दिजीवियों ने लगातार उनके विरुद्ध आन्दोलन किये ।

पर 1947 में गद्दारी हो गयी । उसे सुधारो तब बजट की बात करो ।
चपरासी और क्लर्क कितने लोग बन सकते हैं ? वो भी सरकारी या सार्वजानिक क्षेत्र में । और मूल बात ये है कि कृषी के बिना कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो किसी को आधी रोटी भी उपलब्ध करा दे ।