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Saturday, February 25, 2012

तब आजादी की लड़ाई वास्तव मे कितनी मुश्किल रही होगी;

कभी हम बचपन में क्रांतिकारियों की कहानियां पढ़ते थे तो अकसर गद्दारों का जिक्र आता था | तो हम सोचते थे कैसे होते होंगे वो गद्दार ? उन्हें क्यों नहीं समझ में आती होगी वो बात ? जो देशभक्त क्रांतिकारियों को समझ में आती है |
आज वैसा ही सब कुछ हमारे सामने घट रहा है हमें गद्दार देखने को मिल रहे हैं | और देख कर ये सोच कर दिमाग भन्ना जाता है कि तब आजादी की लड़ाई वास्तव मे कितनी मुश्किल रही होगी; जब ना फोन था ना फेसबुक था ना अन्य संचार के इतने साधन थे, ना त्वरित गति वाले आवागमन के साधन थे |

एक अंतर है तब के गद्दार विदेशियों की गुलामी को सही मान कर उनके द्वारा पोषित सम्मानित होते थे; अब के गद्दार अपनों द्वारा लुट भी रहे हैं अपना सब कुछ (संस्कार-चरित्र गया तो सबकुछ गया) गँवा भी रहे हैं फिर भी उन्हें सही मान कर उनके ही पीछे चल रहे हैं |

अब के गद्दार बहुत चालक हैं | जिनको देश और समाज की चिंता ना होकर सिर्फ खुद और खुद की खुशियों से ही मतलब होता है जो सिर्फ खुद के मजे में डूबे रहने की बीमारी से ग्रस्त होने के साथ स्वार्थी किस्म के होते है, वो उसी तरह से हैं;जैसे एक चालाक-जिद्दी लकडहारा जंगल में लकड़ी काटते वक्त अपनी ही गलती से अपनी नाक काट बैठा तो अब अपनी नाक(इज्जत) बचाने को गाँव में आकर सबको कहानी सुनाता है कि मुझे जंगल में भगवान मिले थे उन्होंने कहा है कि जो अपनी नाक नहीं कटवाएगा उसका कुछ न कुछ नुकसान हो जायेगा |

मतलब ये है कि वो अपनी गलती छुपाने को; चाहता था कि सभी नकटे बन जाएँ | वही हाल आज के गद्दारों का है | जो कुसंस्कृति के समर्थक हैं, जिनको इस व्यवस्था से हराम का खाने को मिल रहा है, ऐसे लोग; ये पता होते हुए भी कि वो गलत हैं; आज गद्दारी कर रहे हैं उनकी देखा-देखी साधारण व्यक्ति भी उनका अनुसरण करके अपना ही नुकसान कर रहा है | कहीं कहीं उसकी मज़बूरी भी है कि उसे इनका समर्थन करना पड़ रहा है |

2 comments:

  1. इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है.....
    स: परिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं.....

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  2. लेकिन तब लोग इतने पढ़े-लिखे न थे, इतने कुतर्की न थे, इतने विधर्मी न थे. यदि होते तो आजादी न मिलती.

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