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Friday, October 19, 2012

महिला अपराधों के प्रति खाप पंचायतें नहीं ! तथाकथित आधुनिकता वाद, पाश्चात्य संस्कृति का भोगवाद, अश्लील विज्ञापन और चलचित्र को सही ठहराने वाली मानसिकता दोषी है । जबकि माहौल खाप पंचायतों और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध बनाया जाता है ।

संसार की पहली माँ,

जाहिर है कोई महिला ही होगी। उसे ही आदि शक्ति कहा गया,"(माँ) महिला तो
शक्ति का श्रोत है”लेकिन यह भी सच है की श्रोत ,जहाँ पर होता है वहां
पर शक्ति कम होती है , लेकिन; जब कुछ अन्य शक्तियां उससे मिलती हैं तो
वह भागीरथी गंगा की तरह प्रचंड शक्ति के साथ अपना प्रदर्शन करती
है। जिसे नियंत्रित करने के लिए महादेव को अपनी जटाओं में उलझाना पड़ा
था, कहते हैं कि वरना गंगा पाताल में चली जाती।

माफ़ करना मैं महिलाओं का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन मुझे ये समझ
नहीं आता कि “रानी लक्ष्मी बाई,चेन्नमा,रजिया सुलतान,सरोजिनी नायडू,विजय लक्ष्मी
पंडित, माता जीजा बाई,मेडम भीकाजी कामा,इंदिरा गाँधी, किरण बेदी इत्यादि को
किस सशक्तिकरण की जरुरत पड़ी थी।
हम अपने पौराणिक इतिहास को देखें तो उन
महिलाओं को आज तक जिस तरह आदर्श माना जाता है शायद आज की सशक्तिकरण

वालियों को कोई याद करना भी न चाहे। क्योंकि इनकी तथाकथित “आजाद खयाली”
को ये महिलाओं का सशक्तिकरण मानती हैं,
ये पबों में जाकर शराब पीनेको
महिलाओं की आज़ादी व अधिकार मानती हैं,लिव इन रिलेशनशिप की ये समर्थक हैं,
अल्प-वस्त्रों वाला फैशन शो इन्हें महिलाओं की आज़ादी लगता है,इन्होंने प्यार को
ऐसे परिभाषित किया की लोग माँ-बाप,भाई-बहन के प्यार को भूलने लगे हैं केवल
वैलेन्टाइन डे के दिन उछ्रंख्लता को ही प्यार मानने लगे हैं, फिल्मों में अभिनय

के नाम पर अंग-प्रदर्शन, कला के नाम पर अश्लील नृत्य ;अगर जाँच की जाए या
रिसर्च की जाए कि महिलाओं के प्रति अपराधों में कब से बढोतरी हुयी है तो शयद
पता लगेगा की जब से पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ा है तब से ही ये अपराध
बढे हैं तब से ही पैदा होने से पहले ही बच्ची को कोख में अधिक मारा जा रहा
है । मतलब; पहले भी होता होगा लेकिन उसके बाद अधिक होने लगा।
जैसे पर्यावरण
को प्रदूषित कोई करता है हानि कोई और उठाता है,ऐसे ही ये आधुनिकाएँ भी
करती हैं। इन्हें क्या पता की घर से भागी हुयी लड़की का हस्र देख कर, उसके माता-
पिता की बदनामी देख कर दूसरे माँ-बाप लड़की पैदा करना नहीं चाहते । ये दहेज़ से
बड़ा कारण है; छेड़छाड़,गुंडागर्दी तो कानूनी मसला है।

क्या होगा आरक्षण दे कर, जब इज्जत ही न हो और इज्जत, उपरोक्त तथाकथित आधुनिक
कर्मों से तो कम से कम भारत में तो नहीं मिलेगी। केवल कानून बनाकर या आरक्षण
लागु कर समस्या का समाधान नहीं हो सकता “जन के मन” के अनुरूप माहौल बनाना
होगा। जो निन्यनाब्बे प्रतिशत हैं उनमे महिलाऐं भी हैं।
निचले स्तर पर जो आरक्षण दिया है

उसे जाकर देखो बिना पति के महिलाऐं कोई कार्य नहीं कर पा रही और पति को पॉँच साल तक
शराब पीने का अच्छा अवसर मिल जाता है । पहले शराब को बंद करवाएँ इसका सबसे अधिक
नुकशान महिलाओं को ही होता है ।
  
जो अभिनय करने में निर्वस्त्र हो सकता है उस अभिनेता/अभिनेत्री या कलाकार को पुरस्कार (गौरव), जो लेखन में नग्नता खुलेपन से लिख सकता/सकती है;उस लेखक/लेखिका को पुरस्कार, जो जितना अधिक नग्न चित्र बना सकता है; उस चित्रकार को सम्मान, जो जितना गन्दा गा सकता है उसे उतना ही अधिक सम्मान, ऐसे नर्तक-नर्तकी जो अश्लीलता से ठुमके लगा सकते हों; उन्हें सम्मान .......... और भी अन्य विधाओं में इस कलयुगी परंपरा को देखा जा सकता |
वो समाज कैसा होगा जब सभी उनकी तरह नंगे होंगे, उनकी तरह लुटेरे-हत्यारे होंगे,बलात्कारी होंगे ?
आज क्या है कि हमारी व्यवस्था ही बुराईयों को पैदा करने वाली साबित हो रही है वरना; जिस व्यवहार को हेय दृष्टि से देखा जाना चाहिए उसे समाज में सम्मानित किया जाता है। व्यवस्था इस सबको सही ठहराने के लिए कानून बना देती है । विदेशी संस्कृति के प्रभाव में सामूहिक रूप से कु संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है । किसी भी गलत कार्य को सही ठहराने के लिए कानून बनाने का चलन अंग्रेजों ने शुरू किया था; उसे ही लागू करने का काम आजाद होने के बाद भी यहाँ की सरकरों ने किया। व्यवस्था के रूप में नाम के लिए लोक तंत्र ( जिसमे दस विद्वान् बेकार माने जाते हैं ग्यारह मूर्खों के आगे ) ।
यहाँ तो व्यवस्था बुराईयों के लिए उकसाती है। एक जगह व्यवस्था कहती है शराब मत पीयो; ये शारीर,मन, समाज परिवार के लिए हानिकारक है, दूसरी ओर अपने आप अपने द्वारा खोली दुकानों पर बिकवाती है। एक ओर व्यवस्था हत्यारे को दण्डित करने के लिए न्यायलय की व्यवस्था करती है दूसरी ओर उसी न्यायलय के निर्णय को बड़ी न्यायलय निरस्त करती है |

इस तरह की सारी बुराईयों के लिए व्यवस्था और पाश्चात्य मानसिकता दोषी है । वर्ना हमारे भारत और भारतीय सभ्यता में संस्कारों में जितना सम्मान महिलाओं का है पूरे विश्व में आज भी नहीं है।
इसे हम चाहे अपने धर्म ग्रंथों, इतिहास और ऐतिहासिक पुस्तकों और समाज में व्याप्त चलन में देखें तो नजर आएगा । लेकिन उसके देखने लिए शुद्ध दृष्टि वाली आँखें चाहिए ।

Monday, September 17, 2012

ज्योतिषियों के लिए शोध का विषय !!!!


देश भर के फेसबुक-ब्लॉग और अन्य सोशियल साईटों पर सक्रिय ज्योतिषियों के लिए शोध का विषय !!!!
मनमोहन + ममता बनर्जी + मायावती + मुलायम सिंह + एम् करुणानिधि + मोंटेक सिंह अहलुवालिया
क्या "म" (M) शब्द इस समय देश को बर्बादी की ओर धकेल रहा है !!!

दोस्तो ये सोचने का मुद्दा है ! वैसे पिछला माह हिन्दू धर्मानुसार पुरुषोत्तम मास के रूप में बीता है; शायद कल समाप्त हो गया है | बहुत भारी गुजरा है देश के लिए | इस विषय पर ज्योतिषी कुछ प्रकाश डालने का कष्ट करें |
साथ ही "म" शब्द से शुरू कुछ नामों के व्यक्तियों का इस समय जो
गठजोड़ दिखाई दे रहा है, इस देश के साथ आँख बंद कर अन्याय करने का उसके विषय में भी कुछ
प्रकाश डाला जाये |

एक जगह जब जमा हों सारे.... !!!! M M M M M M M

Friday, August 3, 2012

दूध से मुहं जलाई जनता छाछ भी फूंक फूंक पीयेगी |


जो गद्दारी १९४७ में हुयी थी उसे सुधारने के लिए पू....ऊउरे सिस्टम को बदलने के लिए कोई राजनीतिक दल अपने को साबित करता है तो उसका देश भक्त जनता द्वारा स्वागत होगा | इस बारे में स्वामी रामदेव जी महाराज आगे बढ़ रहे हैं | इसीलिए टीम अन्ना के पेट में मरोड़ उठा और राजनीतिक दल की बात कह कर बाजी मारने की सोची |

क्योंकि ये तथाकथित सेकुलर इस देश में राष्ट्रीयता की भावना नहीं पनपने देना चाहते | इनकी नजर में रामायण-महाभारत काल्पनिक हैं; क्योंकि नेहरू की नजर में भी ऐसा ही था | इनकी नजर में भारत के हिन्दू-मुसलमान कभी एक नहीं हो सकते; क्योंकि इन्होने यहाँ के मुसलमानों के दिमाग में उन्हें 'गौरी और गजनी के वंशज हो' बिठा रखा है | और हमारी नजर में कुछ सौ साल पहले तक यहाँ के हिन्दू मुसलमानों के पूर्वज एक ही थे | "स्वामी रामदेव जी कहते हैं जींस या डी एन ए टेस्ट करालो" |

जैसा राजीव दीक्षित और स्वामी रामदेव जी महाराज ने आमूल चूल परिवर्तन के लिए अपने अनुयायियों को प्रशिक्षित किया है उसके लिए हमें ऐसे बिचौलियों (अन्ना जैसे) की चालों को समझना पड़ेगा | आखिर ये क्यों हमारे आन्दोलन के समय ही वही सारी बातों को दोहराने लगते हैं जिन्हें बाबा रामदेव पिछले ४-५ वर्षों से लेकर चल रहे हैं अगर ये भी वही चाहते हैं तो स्वामीजी तो इन्हें बुला रहे हैं ये साथ क्यों नहीं आते ? अनशन तोडना ही था तो ये भी हो सकता था कि ९ अगस्त से दोबारा स्वामी रामदेव जी के साथ अनशन होगा |

जनता इन्हें चेता भी रही है लेकिन क्योंकि गोटी कहीं और फिट है; और वो जनता को मूर्ख समझते हैं | लेकिन गाँधी-नेहरू के समय जनता मूर्ख होगी; आज नहीं है | आज फेसबुक है मोबाईल है टी वी है और सबसे बड़ी बात दूध से मुहं जलाई जनता छाछ भी फूंक फूंक पीयेगी |


यही हम भारत स्वाभिमान वाले जान गए हैं इसीलिए हम कहते हैं ये सिस्टम फेल है क्योंकि अंग्रेजों का बनाया हुआ है उन्होंने अपने लूटने के लिए बनाया था वो गद्दार नेहरू उनसे मिलीभगत करके उसी सिस्टम को लागू कर गया जिसे ट्रांसफर ऑफ पॉवर एग्रीमेंट कहते हैं | इसीलिए स्वामी रामदेव जी ने सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का आह्वान किया है | लेकिन पहले ४०० लाख करोड़ रुपया कालाधन चाहिए,क्योकि भूख से बिलबिलाता गरीब जब दो रोटी खायेगा तभी कुछ सोचने लायक दिमाग काम करेगा | और जिनको दो रोटी मिल रही है वो स्वामी रामदेव जी के साथ लग गए हैं; उनकी सहायता से कालाधन आएगा और सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा |

Monday, July 16, 2012

ऐसा कब तक चलेगा माँ ?

हे भारत माता (भारतीयता) ! हम बड़भागी हैं जो तेरे जैसी माँ की गोद में हमने जन्म लिया। तेरे द्वारा वैदिक पावन ऋचाओं को सुन हमने आँखें खोली। तेरी गायी लोरियों को सुन हम सोये। तेरे खुशहाल हरे-भरे आँगन में खेलकर बड़े हुए। तेरे दिए हुए संस्कारों से अपने जीवन को सफल किया | तेरी दी हुयी शिक्षाओं से हम धन्य हुए |

इसीलिए तो माँ ! जब-जब तुझ (हम) पर संकट आया तेरे अधिकांश लाडलों ने मिलकर दुश्मन को ललकारा और संकट से निजत पाई। तेरा भेजा कोई दूत आता है और तेरी सोयी संतानों को जगा जाता है

पर माँ ! एक दुश्मन बहुत खतरनाक आया; उसके वंशजों को तो हमारे पूर्वजों ने बेशक भगा दिया, पर उसने तेरे द्वारा दिए जा रहे संस्कारों-शिक्षाओं में जो बदलाव किये उनके कारण आज तेरे लाडले निकम्मे हो गए हैं। उस कु शिक्षा के कारण सही-गलत की पहचान नहीं कर पा रहे। कुशिक्षा का प्रभाव देखो; जो मालिक थे सेवक बनना अपना अहो भाग्य समझ रहे हैं। योग्यता छोड़ आरक्षण के लिए झगड़ रहे हैं |

हे माँ ! उस कुशिक्षा के कारण उन्हें आकाश पाताल का भी अंतर पता नहीं। आकाश की ओर थूक कर खुश होते हैं और दुष्टों के सम्मुख पाताल तक झुक जाते हैं। नशा करने लगे हैं; दुर्व्यसनों में फंस चुके हैं; माता ! इस कुशिक्षा का प्रभाव देखो ! जो जितना अधिक शिक्षित है वो उतना ही अधिक भ्रष्ट है न केवल आर्थिक रूप से; अपितु नैतिक चारित्रिक और व्यावहारिक रूप से भी।

कुशिक्षा के प्रभाव से पढ़ लिख कर तेरी शश्य-श्यामला कोख में जहरीले रसायन वाले खाद और कीट नाशक डाल कर तुझे जहरीला बना दिया है। तेरी सदानीरा नदियों को गंदे नालों में बदल दिया है। झीलों को सुखा दिया है। इस सबका कारण है धन, जिस धन को तेरे श्रंगार में लगना था उसे विदेशों में जमा करवा दिया है। तेरा श्रंगार कैसे हो माँ ? कैसे तू अपने बच्चो को पाले ?

हे माँ ! हमें ये कहते हुए खेद होता है कि तेरी देशभक्त स्वाभिमानी संतानों में से आज अधिकांश निकम्मे हो गए हैं। उनमे उस शिक्षा का प्रभाव बहुत गहरा हो गया है। कुछ जो जरा संभल गए हैं वो वैसे पालों में बंट गए हैं कोई किसी नेता की जय में मस्त है कोई किसी पार्टी की जय में, कोई तेरे नाम की जय बोल कर विदेशियों के हाथों की कठ पुतली बन जाते हैं। कोई भी अपनी माँ की भावनाओं को नहीं समझ रहा।

ऐसा कब तक चलेगा माँ ? तेरे आँगन में कब तक बच्चे भूख और बीमारी से मरेंगे ? कब तक चिकित्सक कसाई की भूमिका निभाएंगे ? कब तक लोग मरते समय छाती पर धन ले जायेंगे ? दुष्टों को समझने की बुद्धि आम लोगों में कब आएगी ?

हे माँ ! तेरी संतानों का रक्त इतना गन्दा तो नहीं हो सकता । पहले भी तो संकट आये हैं तब तो ऐसा नहीं देखा सुना। गद्दार तो थे पर गिने चुने ही थे आज तो गद्दारों की गिनती नहीं होती माते ! ............ । क्या करें ?

Friday, July 13, 2012

"छिनाल " कांग्रेस !

एक बहुत चालाक औरत थी। चरित्रहीन मां-बाप की संतान। इसलिए पैतृक गुण बचपन से ही उसमें विद्यमान थे वह भी अपने मां-बाप से ज्यादा दुश्चरित्र हो गयी साथ ही चालाक इतनी, कि; 'उसकी चरित्रहीनता को समझने - जानने के बाद भी उसके परिवार वाले और समाज' मूर्ख बन जाते हैं

Friday, May 25, 2012

अभी तो मंथन जारी है !!!!


भारत निर्माण नहीं ! "हो रहा भारत मंथन"
एक पौराणिक कथा सब जानते हैं
; "सागर मंथन" की, जिसमे एक कुर्म (कछुए) की पीठ को आधार बनाया जाता है मंदरांचल पर्वत को उस पर टिकाया जाता है और शेषनाग की डोरी बनाई जाती है तब मंथन होता है और उस मंथन से कई उपलब्धियों के साथ ही अमृत की प्राप्ति भी होती है |
हालाँकि इस कथा का अपनी-अपनी दृष्टि के अनुरूप लोग अर्थ समझते हैं
, और हमारी पौराणिक कथाओं के कई-कई अर्थ होते भी हैं हम चाहें तो उनमे तार्किकता-वैज्ञानिकता ढूंढ़ लें, हम चाहे तो उनमे राजनीतिक जोड़-तोड़ ढूंढ़ लें, हम चाहें तो उनमे समाज सुधार कार्य ढूंढ़ लें,हम चाहें तो उनमे अध्यात्मिक-आस्थाओं का मर्म ढूंढ़ कर जनता को घंटों-घंटों तक सुना सकते हैं और अगर हम नास्तिक हैं या अध्यात्म को मानते ही नहीं तो इन्हें केवल कथा ही समझते हैं |
पर मेरा मानना है कि ये हमारा पौराणिक इतिहास है जिसे प्रतीकात्मक शब्दों-वाक्यों के साथ संसार के मनुष्यों को अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने के लिए तब के बुद्दिजीवियों ने (जिन्हें हम ऋषि- मुनि कहते हैं) संसार के कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया |
आज भी देश में जो चल रहा है उसे हम "भारत मंथन" कह सकते हैं जो उस "सागर
मंथन" की याद और उससे मिले अनुभवों से शिक्षा लेने को प्रेरित करता है | हो सकता है उस समय उस स्थान का नाम "सागर" हो इसलिए इसे "सागर मंथन" कहा गया हो
जैसा कि देवासुर संग्राम सृष्टि में हर समय चल रहा होता है, अनंत-असीम बाह्य ब्रह्माण्ड से लेकर व्यक्ति के अपने अन्दर तक विचारों-मान्यताओं-परम्पराओं-संस्कृतियों-समाजों-इतिहासों और क्रिया कलापों तक में हम देवासुर संग्राम को अनुभव कर सकते हैं | देव और असुरों का अर्थ तो हम सब जानते ही हैं; इनको विचारों और कर्म के परिप्रेक्ष में समझें तो समझने की दिशा विस्तृत हो जाती है | इन्हीं विचारों और कर्म के आधार पर संसार की संस्कृतियाँ-सभ्यताएं बनी हैं
तो साहब ! आज के इस "भारत मंथन" में भी वही कुछ हो रहा है जो "सागर मंथन" में हुआ था तब भी पहले असुर इसके विरोध में थे फिर सहयोग में आये और जब रत्न मिले तो फिर झगड़ बैठे | तब कुर्मावतार के रूप में भगवान विष्णु ने आधार उपलब्ध कराया था; आज स्वामी रामदेव जी ने आधार उपलब्ध करवा दिया है, तब मंदरांचल पर्वत को मंथन की धुरी (मथनी) बनाया था; आज भ्रष्ट व्यवस्था-राजनीती और उससे से कमाया काला धन जो सब समस्याओं बुराईयों का पहाड़ है उसको धुरी बनाया गया है, और तब भगवान शेषनाग को डोरी बनाया गया मथने के लिए, आज भारत का स्वाभिमान आदोलन इसकी डोर बन रहा है |
भारतीय संस्कृति-संस्कार का प्रतीक भारत स्वाभिमान आन्दोलन सभी भारतीयों का
स्वाभिमान जगा रहा है | इस डोर को एक तरफ से असुरों ने दूसरी तरफ से देवों ने पकड़ रखा है और मंथन जारी है | और इस वैचारिक मंथन से ही विभिन्न प्रकार के रत्न निकलेंगे; जैसे तब निकले थे, रत्न मतलब फल (परिणाम) प्राप्ति; काला धन तो आएगा ही, भ्रष्ट व्यवस्था भी सुधरेगी और देव संस्कृति रूपी सर्वश्रेष्ठ रत्न अमृत भी मिलेगा, लेकिन असुरों की असुरता से सावधान रहना होगा कि उन्हें इस अमृत की प्राप्ति न हो जाये |
समझने वाले समझ गए होंगे कि मेरा आशय वोटों की राजनीती से है
| आम जनता के रूप में समुद्र, कुर्म के रूप में स्वामीजी का बनाया वैचारिक आधार , मथानी के लिए मंदरांचल पर्वत के रूप में समस्याओं-वुराइयों और कुसंस्कृति का पहाड़, शेषनाग के रूप में भारत स्वाभिमान आन्दोलन की डोर | अभी तो मंथन जारी है |

Friday, May 18, 2012

"टेंशन पॉइंट" दैनिक जागरण में !!!!



जी हाँ कल 17 मई मेरे एक मित्र का फोन आया कि आज तो
आपके टेंशन पॉइंट का और आपका फोटो दैनिक जागरण में
छाया हुआ है | मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन जब दैनिक जागरण
समाचार पत्र मंगवा कर देखा तो वाकई बहुत अच्छा फोटो और
समाचार; दैनिक जागरण के पत्रकार श्री ब्रिजेश तिवारी ने
छपवाया था |
इसके लिए मैं दैनिक जागरण समाचार पत्र को और पत्रकार
श्री ब्रिजेश तिवारी को धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने टेंशन पॉइंट
की भावना और महत्त्व को समझा और सम्मान दिया |

Friday, May 11, 2012

भारत का मीडिया सकारात्मक होता तो ….. ! , भारतीयता से बैर क्यों ?

हम आये दिन समाचार देखते-सुनते हैं कि; ‘चिकित्सा विज्ञान ने नई खोज की 'मोटापे के लिए जिम्मेदार जींस को खोजा, या केंसर कैसे पनपता है उसकी कोशिका को जान लिया, या नींद अधिक क्यों आती है, या डाईटिंग करने से मोटापे पर काबू पाया जा सकता है,या अधिक खाने से बीमारियाँ होने का खतरा होता है,या किसी चिकित्सक ने सफलता से कोई ओपरेशन कर लिया,या किसी कंपनी ने किसी रोग की दवा खोज ली' आदि-आदि
इसमें भी अधिकतर समाचार विदेशी होते हैं जिन्हें कभी-कभी हमारे समाचार विक्रेताओं द्वारा विशेषज्ञों के साथ बैठ कर दिन भर घंटों-घंटों चर्चा का विषय बनाया जाता है कभी आँख को बचाने के लिए,कभी दिल को बचाने के लिए, कभी मोटापे से बचने के लिए और भी जाने कैसी-कैसी चर्चाएँ करायी जाती हैं। लाभ ….? “वही ढाक के तीन पात हमने कभी ये सुना कि; किसी का दिल बिना ओपरेशन के ठीक हुआ, हमने ये सुना कि मशीन पर खड़े होने से मोटापा कम हुआ, किसी का बंद कान खुलने या कमजोर दृष्टि को बढ़ते हुए सुना, पर फिर भी पिछले कई वर्षों से उसी पद्दति के गुणगान सुनते-देखते रहे हैं। हाँ ! विज्ञापनों में अवश्य अविश्वसनीय दावे देखने को मिल जाते हैं; "इन्हीं" माध्यमों से। पर हमने कभी नहीं देखा या सुना कि किसी की बी.पी या शूगर की दवाईयां छूट गयी हों
ये सब सुनना-देखना हमारी मज़बूरी है ! क्योंकि हमारामीडियापाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुकूल है, सकारात्मक है। "ये" भारत की कुछ व्यर्थ और गलत परम्पराओं के विषय को तो खूब परिहासात्मक तरीके से चर्चित कर सकता है, पर जो हमारी स्वस्थ और मानव के लिए कल्याणकारी संस्कृति की अच्छाईयाँ है उन्हें या तो अनदेखा कर देता है या फिर उन्हें इस तरह से अविश्वसनीय बना कर दिखाता है कि वैसा हो ही नहीं सकता।
अब गौर करिये ! पिछले कई वर्षों से योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में जो लोग कार्य कर रहे हैं उन्हें हमारा मीडिया कितना दिखाता है ? और ; अगर कभी दिखाया भी तो आधे-अधूरे ज्ञान या विदेशियों के बताये ज्ञान के विशेषज्ञों को बिठा कर खानापूर्ति सी कर दी जाती है। योग को केवल शारीरिक अभ्यास मात्र के रूप में प्रचारित कर योगासनों की जटिलता को जन साधारण के मन मस्तिष्क में बिठा दिया गया। जिससे आम जन योग-आयुर्वेद से दूर हो गए; इसे बहुत ही जटिल विद्या मानने लगे।

लेकिन जब स्वामी रामदेव जी को पता लगा कि योग में जो "प्राणायाम" है उससे रोग दूर हो रहे हैं तो उन्होंने उसकी और बारीकियां जानकर लोगों पर प्रयोग किये; जो सकारात्मक निकले, और जनता को उनसे मिलने वाले लाभ बिजली की तेजी से "रोगों से त्रस्त समाज" में फ़ैल गए। ये सब किसी विज्ञापन में नहीं हमें अपने आस-पास दिखाई देने लगे, अंधे को आँख- कोड़ी को काया मिलने लगी। दिल के मरीज, केंसर के रोगी,पेट के बीमार ठीक होने लगे; ये पूरी दुनिया में एक चमत्कार था, लेकिन हमारा राष्ट्रीय समाचार जगत इस पर मौन रहा। हमारे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बुद्दिजीवी-पत्रकार इस पर चुप्पी साधे रहे; आज तक साधे हैं।

विज्ञान के क्षेत्र में इतने बड़े चमत्कार ! जिस केंसर या दिल के रोगी को चिकित्सकों ने घर जाकर आराम करने और मृत्यु की प्रतीक्षा करने को छोड़ दिया कि दो-तीन माह का मेहमान है; वह बाबा जी द्वारा बताये प्राणायाम से स्वस्थ जीवन जी रहा है। हो सकता है कुछ आयुर्वेद की भी सहायता ली हो। लेकिन अपनी आयु तो बढ़ा ली न। जब ऐसे लोगों की संख्या हजारों-लाखों में होने लगी; मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि हमारा वो भारतीय मीडिया जो मानवता का दंभ भरता है,जो पर्यावरण के लिए अपनी चिंता दर्शाता है, जो बच्चों को स्कूल जाने के लिए मुहिम चलता है,किसी गरीब के लिए जनता से अपने खातों में दान मांगता है, दांतों की सुरक्षा के लिए विशेषज्ञों के साथ घंटे गुजारता है, या; जो सलमान की छींक, कैटरिना की चाल,शकीरा के लटके-झटकों पर अपना समय पैसे बटोरने में लगाता है (विज्ञापनों से), जो किसी धनाढ्य जोकरों की शादी पर अपने संवाद दाताओं को घंटो उसके दरवाजे पर....... इनके लिए क्रिकेट टीम को गधा कहने वाले चर्चा के पात्र बनते हैं, "उस" मीडिया ने आज तक इस "योग और प्राणायाम" या बाबा रामदेव के इन कार्यों पर कभी चर्चा नहीं करायी; जो लोगों को जिंदगी देने का काम कर रहा है। ये किसी "मृतप्राय नेता" को उन्हें ठग कहते हुए तो दिन भर दिखा सकता है पर उनकी उस ठगी की वास्तविकता को बिल्कुल नजरंदाज कर देता है क्योंकि उससे कईयों को जीवन दान मिल रहा है

हमारासमाचार जगतक्यों भारत और भारतीयता से बैर रखता है ? क्या इसीलिए वह योग और आयुर्वेद को नजर अंदाज करता है कि ये शुद्ध भारतीय विद्या है ? जबकि विदेशियों को इन पर पूरा विश्वास हो रहा है। और उनके नियम के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल को भी बाबा रामदेव ने कर के दिखाया है और रिसर्च भी कर रहे हैं। फिर भी.......
समझ नहीं आता कि जिस भारतीय विधा को आज पूरा विश्व सर आँखों पर बिठा रहा है उसे हमारा मीडिया क्यों नजर अंदाज कर रहा है ? साथियो ! जरा सोचिये ! अगर हमारा यही मीडिया भारत-भारतीयता के प्रति सकारात्मक होता तो ....! पिछले सात-आठ वर्षों में कितना परिवर्तन स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो जाता। आज कई "प्रकार के ज्वरों" से लोग मारे जा रहे हैं,कभी किसी बीमारी का प्रकोप कभी किसी बीमारी का हमला, अगर बाबा जी और आचार्य बालकृष्ण द्वारा बताये विशेष औषधीय योगों का प्रचार होता तो.......! प्राणायाम का ही सही तरीके से प्रचार होता तो....... !
लेकिन ये मीडिया तो इतना बेगैरत है कि किसी की गलती को भी हमारी संस्कृति और रहन-सहन पर सवाल उठाने से नहीं शर्म करता। ' किसी ने कडवी लौकी का जूस पीकर जान देदी और मीडिया उसे रामदेव और भारतीयता का विरोध करने का हथकंडा बना ले' ऐसा दिखाई दे जाता है पर बाबा रामदेव जो लोगों को जिंदगी दे रहे हैं वह नहीं दीखता
किसी भी देश की धर्म ,संस्कृति सभ्यता को बनाये रखने के लिए उसके जो बुद्दिजीवी हैं वह सही मानसिकता के होने चाहिए अगर नहीं हैं तो.......... किसी से भी कुछ कहने से पहले उन्हें अपने गिरहबान में झांकना चाहिए। क्योंकि जब कभी इन पर हमला होता है तो ये अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देते हैं लेकिन इससे समाज का सहयोग इन्हें नहीं मिलता, कारण; वही है ये समाज के भले के लिए काम नहीं करते, अपितु शुद्ध रूप से अपने आर्थिक हित के लिए काम करते हैं पर; कुछ भी दिखाना या दिखाना इनकी प्रतिष्ठा को कम कर देता है।