ताजा प्रविष्ठियां

Sunday, October 30, 2011

बुरा न मानना; अगर गधा बन गए तो !

एक आदमी मर कर गधा बन गया; उसे बड़ा बुरा लगा। वो भगवन जी के पास गया और शिकायत करी। भगवान जी ने समझाया; जब तुम्हें सोचने-समझने, कुछ करने और बोलने की शक्ति दे कर; मनुष्य बना कर धरती पर भेजा था तो तुमने इनमे से कुछ नहीं किया; बस अपने में मस्त रहे प्रकृति-पर्यावरण,समाज-संस्कृति, देश-धर्म के लिए कुछ नहीं कर सके जिससे धरती पर सबके लिए बोझ बन गए थे अब उस ऋण को बोझा ढो कर ही चुकाया जा सकता है; इसलिए तुम्हें गधा बनाया है; अब सबका बोझा ढोओ'।

Wednesday, October 26, 2011

खोखली शुभकामनायें

कुमकुम भरे क़दमों से आये लक्ष्मी जी आपके द्वार,

सुख सम्पति मिले आपको अपार,
दीपावली
की शुभ कामनाएँ करें स्वीकार
"ये" और इस प्रकार की शुभ कामनाएं अब खोखली सी लगने लगी हैं | चाहे कोई हमें दे या हम किसी को दें, केवल औपचारिकता जैसा ही लगता है | दरअसल आजकल के मीडिया ने हमारे पर्वों-त्योहारों का इतना बाजारीकरण कर दिया है कि उनकी वास्तविकता को ही लोग भूल गए हैं |
पहले हम शुभकामना देते हैं;फिर सावधानी बरतने की नसीहत भी देनी पड़ती है जाने कौन सी मिठाई जहरीली या बीमार करने वाली निकल जायेविदेशी कम्पनियों की चौकलेटों का भी क्या भरोसा ? कैसे-कैसे केमिकल मिले होते हैं
अजी साहब घर में मिठाई बनाने के लिए भी कौन सा सामान है जो असली मिल जाये ? ऐसे में नसीहतें देने के आलावा क्या कर सकते हैं ? नसीहत भी केवल सावधान रहने की ही दे सकते हैं क्योंकि और तो अपने हाथ में कुछ नहीं है

Sunday, October 23, 2011

क्या पता प्रधान मंत्री भी जेल में हों ?

साथियो बदलाव का दौर चल रहा है, एक दिन में हीरो और कुछ ही घंटों में हीरो से विलेन बन जाने में कुछ भी विशेष प्रयास नहीं करना पड़ रहा। बस केवल जबान चलानी है जैसे अपने भूषण जी ने चलायी, वैसे देखा जाये तो वे अलगाव वादियों के तो हीरो बन गएअलगाव वादियों का प्रसिद्धि क्षेत्र बड़ा है। उससे इनाम मिलने के चांस ज्यादा हैं और इनाम अंतर्राष्ट्रीय होते हैं इसके लिए अगर अपने देश में विलेन भी बन गए तो क्या ? वैसे बड़ा दुर्भाग्य है ! कोई अपने-आप विलेन बन रहा है किसी को सरकार विलेन बनाना चाह रही है, एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। पर ये तो उस बदलाव पर निर्भर है किसे क्या बनाना है। अलबत्ता सरकार अपने भोपू (न्यूज़ चेनल्स) के माध्यम से प्रयासरत है ।

बदलाव करने में सरकार कसर नहीं छोड़ रही। ३-३,४-४ मंत्री जिसकी अगवानी करने पहुंचें; सोचो ! कितना मान दिया होगा ? फिर उसी के विरुद्ध रामलीला मैदान में आधी रात को लठ चलवा दिए। ये भी बदलाव का ही हिस्सा है जो कल तक मंत्री थे वो अब जेल में हैं। क्या पता बदलाव थोड़ा और बढे तो प्रधान मंत्री भी जेल में हों। क्योंकि पूरे विश्व में इस समय बुराई के विरुद्ध एक आक्रोस तो पनप ही रहा है । बसे बड़ी बात ये है कि "बुरों" का कोई वश नहीं चल रहा इन लड़ने वालों के विरुद्ध

पूरे विश्व में एक बदलाव का दौर चल रहा है। मौसम अपने सुहाने पूर्ववर्ती दौर में करवट बदल रहा है, बड़े-बड़े तानाशाह धराशायी हो रहे हैं। कभी चालीस-चालीस साल तानाशाही करी वे तक कुत्ते की मौत मारे जा रहे हैं। पीढियॉ की पीढियॉ ख़त्म हो रही हैं।

एक बड़ा अंतर है दुनिया के तानाशाहों में;और भारत के तानाशाहों में, उन्होंने ताकत के दम पर अत्याचार करके अपनी तानाशाही कायम रखी, इन्होने एक शातिर ठग की तरह अपने देश वासियों पर तानाशाही कायम रखी मौतें वहां बेशक प्रत्यक्ष हुयी पर मौतें यहाँ भी कम नहीं हुयी चाहे भोपाल गैस कांड हो या हमेशा बाढ़ से मरने वाले हों, या कोई अन्य कारण हों मरने के, सब पर इन्होने अपनी चालाकी और ठग बुद्धि से जनता को भ्रमित किया है। और जिस तरह से लूट मचाई है वह किसी तानाशाह से कम नहीं है।

इन्हें भी हस्र देख लेना चाहिए उन तानाशाहों के खानदान का; जिन्होंने कभी शायद ही सपने में भी सोचा हो कि वो सड़कों पर घसीट घसीट कर मारे जायेंगे।

हमारे यहाँ तो इस तरह भगवान कृष्ण ने कंस को मारा था उसके बाद तो किसी की इस तरह की मौत हमने सुनी नहीं हाँ; सिनेमा में जरुर देखने को मिल जाती है।

Friday, October 21, 2011

"समर्पण" 'कविता संग्रह विमोचन' की मेरी मुराद पूरी हो गयी

आज कई दिन बाद दुकान पर व्यवस्थित रूप से बैठा हूँस्वामीजी जी का १५-१६ अक्तूबर अल्मोड़ा में दो दिन का योग शिविर थाशिविर के आयोजन में; हालाँकि अल्मोड़ा की स्थानीय समिति को बहुत मेहनत पड़ी पर हम लोग भी बहुत व्यस्त रहेइसलिए दुकान को नहीं देख पायापूरे जिले में चारों तरफ जो भी समितियां थी सभी व्यस्त थीं दो दिन अल्मोड़ा में शिविर

रानीखेत में सभा, बहुत ही अच्छी तरह से हो गए तरह से इन शिविरों के माध्यम से संजीवनी का काम हो गया और; स्वामी जी का अल्मोड़ा प्रवास मेरे लिए तो बहुत ही उपलब्धि भरा रहा एक तो इस आन्दोलन से जुडी कुछ कवितायेँ; जो मैंने समय-समय पर लिखी थीं, उन्हें एक पुस्तिका का रूप देकर स्वामी जी के द्वारा विमोचित और हस्ताक्षरित करवा लिया; दूसरा मेरे पुत्र ने स्वामीजी का एक चित्र बना रखा था तथा परीक्षाएं होने के कारण स्वयं नहीं जा पाया; उसके उस चित्र पर भी स्वामीजी के हस्ताक्षर चाहिए थे जो मिल गएबाकि आप चित्रों में स्वयं देख लीजिये