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Saturday, September 24, 2011

चोर-चोर,........चोर-चोर.....चोर्चोर्चोर्चोर,चोर......

एक फिल्म देखी थी बहुत पहले; नाम पता नहीं, वैसे जिस दृश्य की मैं बात कर रहा हूँ वह और भी कई फिल्मों में दीखता रहता है।एक चोर चोरी करके भागता है तो जिसकी चोरी हुयी वो चोर-चोर चिल्लाते हुए उसके पीछे भागता है; जाहिर है चोर तेज दौड़ता है और जब देखता है कि लोगों का ध्यान आकर्षित होने लगा है तो स्वयं भी चोर-चोर चिल्लाते हुए भागने लगता है क्योंकि जिसका सामान चोरी हुआ था वह थोड़ा पीछे रह गया था सामान्य भीड़ को क्या पता कि कौन चोर है, वास्तविक चोर बड़ी चतुराई से रास्ता काट कर साफ बच निकलता है

आजकल हमारे देश में यही हो रहा है। बस; चोरों की संख्या अधिक है, वो सभी चोर-चोर चिल्लाने में लग गए हैं जाहिर है जनता भ्रमित होगी और फिर से उसी व्यवस्था की चक्की में पिसेगी। और जो सच में इन लुटेरों की कारगुजारियों को देश की जनता को समझाने वाले हैं, जिन्होंने जनता को पहचान करा दी है कि लुटेरे कौन हैं और असली में; "लुटने का कारण" क्या है उन्हें पछाड़ने का प्रयास हो रहा है।

कितनों को पता था (या अभी भी है !) कि आजादी के नाम पर “एग्रीमेंट ट्रान्सफर ऑफ पॉवर ”पर हमारे नेताओं ने अंग्रेजों से सत्ता ली थी;और वही व्यवस्था आज देश की सभी बुराईयों की जननी है।
वरना; अभी तीन-चार साल पहले किसे मालूम था कि भारत का तीन सौ लाख करोड़ अवैध रुपया विदेशी बैंकों में जमा हैं और ये कितना होता है। शुरू-शुरू में तो ७०-८० लाख करोड़ ही का अंदाजा था। धीरे-धीरे पता लगा कि तीन सौ लाख करोड़ बाहर और सौ लाख करोड़ देश में ही अवैध रूप से जमा है। इसीको भ्रष्टाचार कहते हैं। बड़े स्तर के भ्रष्टाचार से बड़ी पूंजी; छोटे स्तर के भ्रष्टाचार से जीविकोपार्जन और अय्याशियाँ, या बुराईयों में लिप्त रहना।

इसी तरह की और भी बुराईयों के विषय में कहा जा सकता है। हालाँकि; कुछ समझाने वाले कहते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है,अच्छी बात है जितने ज्यादा चिल्लाने वाले होंगे उतना ही जनता जागरूक होगीपर इनकी नीयत में खोट इसलिए नजर आता है कि ये इन सब बुराईयों को समाप्त करने का कोई उपाय नहीं बताते या कोई उपाय इन्हें सूझा भी है तो केवल आधा-अधूराइस मामले में कोई राजनीतिक दल हो या कोई गैर सरकारी संस्था या मीडिया, सब एक जैसे दिख रहे हैं। और जो उपाय बता रहे हैं उन्हें नजरंदाज किया जा रहा है

दरअसल इस व्यवस्था रूपी छत्ते से शहद चूसने के लिए सबने अपना-अपना स्थान बना रखा है कोई नहीं चाहता कि जितना भी उसे मिल रहा है वह उसे छोड़ेउस छत्ते के लिए पराग जुटाने वाली मक्खियाँ यानि "मेहनत कश"बेचारी जनता; बाहर ही बाहर मंडराती रह जाती हैं। तब वहव्यवस्था द्वारा बनाये जाल, नशे के चंगुल में, लूट-खसोट,चोरी-बदमाशीऔर अन्य भी बुराईयों में फंस जाती हैं आपस में ही लड़ते-मरते और सड़ते हुए उनका जीवन गुजर जाता है

Friday, September 9, 2011

कहीं ऐसा तो नहीं...... ? ! ? ! ? ! ? ! ?

नहीं रुकेगा-नहीं रुकेगा- भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा , भ्रष्ट आचरण- जिंदाबाद, जो भ्रष्टों के हित की बात करेगा- वही देश पर राज करेगा, नहीं रुकेगी-नहीं रुकेगी-रिश्वत खोरी नहीं रुकेगी, खरीद-फरोख्त होगी तो-सरकार कैसे चलेगी।नारे लगाते हुए अगर जलूस निकालना हो तो सोचो कैसा लगेगा ?
अजी साहब ये तो बेशर्मी मोर्चे जैसी ही बात हो गयी। बेशक जलूस का विरोध करने कोई नहीं आएगा पर अन्दर ही अन्दर सब हँसेंगे। खुलेआम नंगे तो नहीं हो सकते न। तो क्या करें ? जो इतना बड़ा आन्दोलन स्वामी रामदेव ने चला रखा है वो हर प्रकार के भ्रष्टों और बुराई के विरोध में है। अब इसका विरोध करें तो कैसे करें ? और करें तो सब कुछ जाने वाला है जब पांच साल में ही ये हाल है तो अगले पांच साल में और क्या-क्या होगा पता नहीं ? फिर ! इनका विरोध कैसे करें ?..............
( इस लेख का किसी घटना क्रम से मिलना संयोग ही हो सकता है वास्तविकता नहींइससे किसी की भवनाओं को ठेस पहुँचाने लेखक का कोई इरादा भी नहींवर्तमान आन्दोलनों के परिप्रेक्ष में लिखा गया ।)
दूसरा द्रश्य :
पता नहीं इन स्वामी को भी क्या पड़ी थी' ? 'आराम से अपना इतना बड़ा साम्राज्य बना लिया था हमने भी कभी किसी बात के लिए विशेष परेशान नहीं किया; लगे फिर भी सुभाष चन्द्र बोस बनने, नाक में दम कर रखा है' एक कोई बड़े नेता बोल रहे थे। खून खौल जाता है जब-जब सुबह टी.वी. पर देखता हूँ एक खानदानी चमचे नेता ने उनकी बात को आगे बढाया।ये तो खुली बगावत हैएक और बुद्दिजीवी प्रकार के व्यक्ति ने उकसाया। 'जैसे; देश से सब बुराईयाँ ख़त्म करने ठेका इन्हीं के पास हो'
आखिर क्या होगा हमारा……? माननीय ! कुछ तो करो। पिछले पांच साल से कह रहे हैं कि इन बाबा जी के तेवर ठीक नहीं दिख रहे,योग तक तो बात ठीक थी; बहुत से योग गुरु योग सिखा रहे हैं, पर इन्होने बड़ी चालाकी से संस्कारों और देशभक्ति की बात करके; पुराने इतिहास की बात करके लोगों के दिमागों को बदलना शुरू कर दिया। अब बताओ सभी आयुर्वेद को समझ लेंगे तो इतनी बड़ी-बड़ी दवा कम्पनियों का क्या होगा ? जनाब ! कोला को तो "टॉयलेट क्लीनरके नाम से बच्चे-बच्चे की जुबान पर प्रसिद्द कर दिया हैसच ! अब तो हम भी पीते हैं तो ध्यान जाता है;सुना है उनकी बिक्री में तो बहुत कमी भी गयीइस तरह तो हम बरबाद हो जायेंगेकोई विदेशी कम्पनी हमारे देश में क्यों आएगी ? यहाँ सभी स्वदेशी समान बिकने लगेगा तो;क्या ये यहाँ आकर झक मारेंगी ?

एक बंद कमरे में पंद्रह-बीस लोग बैठे थेगोपनीय चर्चा चल रही थीहालाँकि बोलने में कोई फुसफुसाहट नहीं थी, पर;खुलापन भी नहीं थागंभीरता और चिंतन का माहौल थाये किसी का फार्म हॉउस था। उसमे मुख्य प्रवेश द्वार से दूर बीचोबीच बने भव्य भवन के कौने वाले कमरे में ये सभा चल रही थीसभी उच्चकोटी के चिन्तक-विचारक लग रहे थेएकाध कोई धर्म गुरु भी बैठे हुए थेचर्चा जारी थी………।
एक बोला….’अब तो देश का बच्चा- बच्चा जान गया है कि भ्रष्टाचार क्या होता है’। दूसराबाबा तो पिछले पांच साल से समझाने में लगा है’। देश के सभी नागरिकों को एक-एक बात समझ में गयी हैएक वक्ता बैठे-बैठे ही बोल रहा थाउनके सामने विशेष प्रकार के गिलासों में तरल द्रव्य भरा हुआ थातभी एक दूसरा बोला; महोदय ! भ्रष्टाचार तो भ्रष्टाचार अब तो कोई भी व्यवसाय करना मुश्किल हो गया है क्योंकि वो बाबा तो शराब,गुटखा,तम्बाकू,बीडी-सिगरेट और भी सब ऐसी वस्तुएं जिनमे कुछ कमाई है उनका विरोध कर रहा हैउसकी स्वदेशी समान की बातों के कारण लोग बड़े प्रभावित हो रहे हैं’। अब एक धर्म गुरु प्रकार का जो बैठा था बोलाहमने बदनाम करने की बहुत कोशिश कर ली पर नहीं हो पाया; अब ज्यादा खुल कर कुछ कर भी तो नहीं सकते, लोग हमें ही समझ जाएँ कहीं; क्या करें’ ? अब एक महोदय जो कुछ नेता जैसे लग रहे थे, थोड़ा चिंतित से और कुछ व्यग्र स्वर में बोले अरे भाई सब पता है हमें, इन बाबाजी के कारण तो सबकुछ गड़बड़ होने जा रहा है तुम सबसे ज्यादा तो हमें नुकसान होने जा रहा है कुछ समझ नहीं रहा क्या करें ? ‘कुछ तो करो ……. जी’।
अच्छा क्या करें बताओ ? भ्रष्टाचार-बुराईयों,विदेशी कम्पनियों और काले धन के समर्थन में रैली निकालें

अब कुछेक मीडिया से जुड़े हुए लोग बोले; जैसे किसी लाईन को बिना मिटाए उसे छोटी करने का आसन तरीका है उसके बराबर में उससे बड़ी लाईन खींच दो, वह अपने आप छोटी दिखेगी पर कैसे होगा ये.... , सब हो जायेगा बस आप लोग जैसा-जैसा हम कहें वैसा करो; हमें भी इन बाबाजी से बहुत नुकसान हो रहा हैइस तरह सभी को अपनी बात समझाने लगे..................; और कुछ दिन बाद एक आन्दोलन देश के लोगों को देखने को मिला। अब वो सभी खुश थे कि चलो अब भ्रष्टों का "कुछ तो" बच जायेगा।