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Thursday, June 23, 2011

कांग्रेस का आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम, प्रचार तंत्र का ढीठ पन

कहते हैं हिरण्यकशीपु ने अपने राज्य में मुनादी करवा दी कि कोई भी भगवान (विष्णु) का नाम न ले,न उसकी पूजा अर्चना करे, जो भी ऐसा करता हुआ मिल गया उसे भयानक दंड दिया जायेगा।
उसकी इस अन्याय पूर्ण बात का उसके पुत्र प्रहलाद ने ही विरोध कर दिया, क्यों ? क्योंकि उसके अन्दर अभी भी ऋषियों के रक्त का अंश बह रहा था। जबकि हिरण्यकशीपु के अन्दर असुरों के रक्त ने पूरा प्रभाव जमा लिया था।

यही हिरण्यकशीपु (असुरों)वाला “आदेश” कांग्रेस ने अपने सदस्यों के लिए जारी कर दिया है। अब देखना है कि कांग्रेस के कितने सदस्यों के अन्दर अभी भी ऋषियों के रक्त का अंश बह रहा है। वैसे इसके अधिकतर नेता जो सांसद और विधायक हैं; उनमे से कुछ सहमे-सहमे से स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे के विरोध में बोले जरुर, लेकिन देख लेना आने वाले समय में ये सफाई पेश करते फिरेंगे कि हम ने ऐसा नहीं कहा था वैसा नहीं कहा था। और कुछ नेता तो अपने को असुरों का वंशज सिद्ध कर ही चुके हैं। ये आदेश ! कांग्रेस की आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम सिद्ध होगा । और ऐसा होना भी चाहिए; इस कांग्रेस का तो बीज नाश होना चाहिए क्योंकि ये वो कांग्रेस नहीं है जिसे गाँधी जी चलाते थे,ये वो कांग्रेस है जिसे नेहरू ने गांधीजी से साजिश करके हथिया लिया था। इसे समाप्त होना ही चाहिए इतिहास को लोगों को बताना चाहिए। पर प्रचार तंत्र ऐसा नहीं करेगा ।

अब रही प्रचार तंत्र की बात तो यह तो अधिकांस घोषित रूप से ही असुर वंशज होने का प्रमाण पेश करते रहते हैं। इस समय भी साफ़ लग रहा है कि जिस काले धन को मुख्य मुद्दा बना कर सरकार के गले में स्वामी रामदेव ने हड्डी फंसा दी है उसी काले धन का कुछ हिस्सा इस प्रचार तंत्र को चलाने में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रचार तंत्र को इतनी बेशर्मी से पाला बदलते देख कर आश्चर्य होता है, इसे बाबाओं का धन, (जिसका हिसाब-किताब है)तो दीखता है जो उन्हें आम जनता ने चाहे गरीब हो या अमीर हो,दान दिया है; और उन्होंने भी उस धन से समाज सेवा के लिए बहुत से अच्छे काम किये हैं, कुछेक अपवाद को छोड़ दें तो। इनकी यह कोशिश; उस काले धन या भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान हटाने के उद्देश्य के लिए ही लग रही है। ये काले धन को मुद्दा नहीं बना रहे; योग और आयुर्वेद को मुद्दा बना रहे हैं, ये स्वदेशी गुणवत्ता युक्त उत्पाद मिलने से समाज की संतुष्टि नहीं दिखा रहे अपितु इन्हें उसमे व्यापार नजर आ रहा है, विदेशी कम्पनियों की लूट मुद्दा बन सकती है पर नहीं उससे इन्हें विज्ञापन लेना है। ये और इनकी सरकार ये नहीं बता रहे कि बाबा रामदेव या बुराई विरुद्ध लड़ने वाले कोई भी, क्या गलत कह रहे हैं ? ये उन्हें ही कटघरे में खड़ा करने की नाकाम कोशिश करने में लगे हैं। इन्हें नहीं पता कि बाबा रामदेव जी की कोई भी संपत्ति या कार्य दुनिया के सामने खुले में होता में वह दुनिया से छुपा नहीं है, इसीलिए स्वामीजी की विश्वसनीयता इनके कुप्रयासों के बावजूद भी बढती जाती है ।

जब एक दक्षिण भारतीय न्यूज चैनल कलायिनार को दो सौ करोड़ रूपये रिश्वत दिए जा सकते हैं तो उत्तर भारतीय चैनलों को कितने दिए जा सकते हैं यह समझने के लिए अधिक सोचने की जरुरत नहीं हैइसीलिए तो इन मीडिया वालों में से बहुतों को देश में बाबाओं के धन की चिंता है पर उस धन की नहीं जो हजारों गुना अधिक हैक्यों ? क्योंकि उस धन में इनकी भी हिस्से दारी हैइस बात को भी अब तो आम जनता समझने लगी है। इन लोगों का मुहं इसलिए काला नहीं हो पायेगा कि ये कब पाला बदल लें इनका भरोसा नहीं। ये उस ब्लैकमेलर की तरह हैं जिसे जब तक धन मिलता रहेगा तब तक मुहं बंद, जैसे ही धन मिलना बंद इनका मुहं खुलना शुरू।

लेकिन धन ही सब कुछ नहीं, मान प्रतिष्ठा, कलंक, गद्दारी,आदि भी कुछ होता है। भारत में मीडिया और तथाकथित पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने अपनी छवि आम जनता की नजरों में इतनी गिरा दी है कि इन्हें अपने चैनल दिखाने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाने पड़ रहे हैं। ये न्यूज नहीं देते अपितु व्यूज देते हैं, इन चैनलों पर समाचार के आलावा और सबकुछ इन्हें दिखाना पड़ता है। क्या ये इनकी विश्वनीयता के कम होने के कारण नहीं है ?
पर क्या करें; ये कलियुग है इस युग में कौवा मोती खायेगा; तो सुना है पर ये नहीं सुना कि "शेर गू खायेगा" , विश्वास भी नहीं होता । क्योंकि शेर मर सकता है पर वो नहीं खा सकता जो उसे नहीं खाना चाहिए लेकिन ये कलियुग है क्या पता.... ? क्योंकि दिख तो ऐसा ही रहा है ये न्यूज चैनल्स शुरू में शेर की तरह दीखते हैं धीरे-धीरे किसी लोमड़ी की तरह चतुराई पूर्ण तरीके से लोगों को मूर्ख बनाने का काम शुरू कर देते हैं, और फिर विरोध पर उतर आते हैं ।

आज कल एक और मुद्दा मेरा ध्यान इन न्यूज चैनल पर खींच रहा है । जैसे ये दिखा रहे हैं कि आम पकाने के लिए कैमिकल का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि हम पिछले बीस सालों से इसी कार्बाइड द्वारा पका आम खा रहे हैं या केला खा रहे हैं कोई हौव्वा नहीं खड़ा किया गया इस बार पता नहीं क्या हुआ । इस कार्बाइड को सभी कार्बेट के नाम से या मशाले के नाम जानते हैं, लेकिन कोई तो कारण हैं कि ये मीडिया इस बार इसे क्यों उछालने पर तुला है ?
फिर कल एक समाचार और देखा कि फलों को एथिलीन नामक केमिकल से पकाने पर कोई खतरा नहीं है तब फिर दिमाग में खटका हुआ कि कुछ तो है जो ये इतना इंटरेस्ट ले रहे हैं।

लोकतंत्र का चौथा खम्भा टूटता-फूटता ही सही इस लिए अभी खड़ा दीखता है कि अगर ये भी बाकी टूटे खम्भों की तरह गिर गया और बदनाम हो गया तो ! इनकी साख जनता में कुछ भी नहीं रही तो ! तो इनकी अय्याशी कैसे चलेगी ? उसे चलाये रखने को, कौवों को मोती और शेर को.........खाने दो। जब अपना स्वार्थ सिद्ध भी हो और समाज का भला भी हो तो लाभ लिया जा सकता है तो लेना चाहिए,इसी लिए जनता में थोड़ी सी साख भी बची है।

2 comments:

  1. jagdish handra joshiJune 26, 2011 at 12:30 PM

    कांग्रेस की वर्तमान कार्य संस्कृति राक्षसों की शासन व्यवस्था की याद दिलाती है | हमारे भारत के पुरातन सम्मान और गौरव के लिए कांग्रेस घातक है, सब ऋषि पुत्रों को इस असुरी प्रवृति को समाप्त करने के लिए एकजुट होना होगा |

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  2. Please tell me who is Honest. We Have NDA Govt also under Atal Behar Bajpayee, Ministers looted the Nation Badly but saved the money but stopping the pension of Govt employees and increasing the pension for MP and MLAs throughout their life. Late Ch. Charan Singh spoilt the coolition Govt to become the Prime Minister who did not face the Parliament even for a day. His son is not bothered about the Nation but wants to earn money with few seats and then bargain for his own interesrts. During last election in UP he was sure that no party will get the majority and will support the Chief Minister who would agreee to his demands.

    If Doctors are looting the Nation without their responsibilities beause they became Doctor whole their active life, Public Servants are looting because they were once selected upto 60 years of age , business man is looting whenever some calamity takes place if politicians are doing just for five 5 years, what is the harm ?

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