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Sunday, June 26, 2011

कांग्रेस को क्यों नंगा करने पर तुले हो …महाराज ?

हर कोई जिसे देखो कांग्रेस के पीछे पड़ा है। आन्दोलन भ्रष्टाचार के लिए है; पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया,आन्दोलन अव्यवस्थाओं के लिए है पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया; काले धन को वापस लाने को चिल्ला रहे हैं पर कांग्रेस का नाम नहीं लिया, बड़े चालाक हैं ! बिना नाम लिए ही अभियुक्त को बेनकाब कर दिया।
कांग्रेस को इतना मूर्ख समझ कैसे लिया ? उसे नहीं पता कि भाषा में प्रयायवाची या इंगितार्थक शब्द भी होते हैं। जैसे; दशानन कहो या दशग्रीव कहो आशय रावण ही होता है वैसे ही भ्रष्ट कहो,भ्रष्टाचार कहो या भ्रष्टाचारी कहो मतलब (८०प्रतिशत) कांग्रेस ही होगा।
इतनी मेहनत सेउन्होंनेअपना एक मुकाम बनाया है। इस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। सबसे बड़ी ही नहीं;सबसे पुरानी भी, अंग्रेजों की बनायी पार्टी है। किस तरह से एक आम(बेचारा,जो स्वयं मूर्ख है) आदमी से लेकर अपने को महान बुद्धिमान समझने वाले को मूर्ख बना कर रखा जा सकता है, इसमें महारत ! केवल इसे ही हासिल है। गुलाम होते हुए भी ऐसा लगता ही नहीं कि हम गुलाम हैं।
कितने महान हैंये कांग्रेसीअपने जनक (अंग्रेजों) से भी मीलों आगे निकल गए। उनके समय में एक विदेशी कम्पनी के देश लूटने से विद्रोह हो गया था, क्योंकि लोग समझ गए थे कि हम लुट रहे हैं। इनके समय में हजारों विदेशी कम्पनियां देश को लूट रही हैं मजाल है जो किसी की समझ में जाये। इन्होने देश के सामने उसे अपनी योग्यता से उपलब्धियों में शुमार करवा लिया।
इतनी कुशलता से अंग्रेज भी राज नहीं कर सके थे। एक और कुशलता जो इन्होने अंग्रेजों से सीखी थी फूट डालने की। उनका तो पता लग जाता है इसलिए उन पर लोग थूकते हैं। इनका तो देश की जनता को आपस में लड़वाने का तरीका इतना उन्नत है कि पिछले सवा सौ साल से कोई समझ ही नहीं पाया।

और तुम इसे नंगा करने पर तुले हो........ क्यों ?
इनके नंगा होने में जरा मुश्किल होगी...... महाराज, क्योंकि इन्होने कपड़ों पर कपड़ों की परतें अपने शारीर पर सिल रखी हैं। पहले तो उतरेंगी नहीं;अगर फाड़ कर उतार भी ली तो दूसरी परत जाएगी। कितनी परतें फाड़ोगे ? पिछले सवा सौ साल में जाने कितनी परतें इन्होने ओढ़ी हुयी हैं। इन परतों के कारण ही आज तक कोई भी इन्हें समझ ही नहीं पाया।

ये अंग्रजों के पास जाते थे तो उनके जैसे कपड़ों की परत ऊपर कर लेते थे, देशभक्तों के पास जाते थे तो उनके जैसे हो जाते थे, ऐसे ही आजादी के बाद; जिसके कारण कश्मीर और नक्सलवाद, आतंकवाद,माओवाद जैसी कई समस्याएं बेशक पनपी, पर ये कुशलतापूर्वक उन्हें भी अपने हित के लिए ही साध लेते ;हैं कपड़े बदल कर।
इनकी महानता इसीसे पता चलती है कि आज अधिकांस राजनीतिक पार्टियां इन्हीं के नक्शेकदम पर चल कर पहले रोटी खाना सीखी; अब अपने कार्यकर्ताओं के साथ अय्याशी कर रहीं हैं।
इनकी चतुरता देखो कि देश के टुकड़े इन्होने करवाए; पर अब ये जनता को दूसरी पार्टियों से देश टूटने का डर दिखाने में कामयाब हो जाते हैं।
इसको कैसे नंगा करोगे…….. महाराज ? ये स्वयं सिद्ध हैं। अपने आप तो कई बार नंगे हो चुके हैं; पर किसी के नंगा करने पर ये किन्नरों की तरह अपना नंगापन दिखा देते हैं। इसलिए भी लोग इनसे बच कर रहते हैं। डरते भी हैं शर्म भी करते हैं। इनका क्या है ये धर्म को मानते हैं समाज-संस्कृति को, सभ्यता-इतिहास को मानते हैं देश को, इनके लिए देश से बड़ी इनकी पार्टी है इनके अन्नदाता हैं। ये सब इन्होने विदेशियों से ही सीखा है; ये उनकी तरह नंगेपन के हिमायती हैं इनकी तो लड़कियां तक पिंक चड्डीयां बांटती फिरती रही हैं। आज अगर ये नंगे हो गए तो इनके उन खानदानियों का क्या होगा जो अब नहीं हैं वो सब भी एक एक कर अपनी असलियत अपने आप उघाड़ते जायेंगेकौन चाहेगा कि उनके पूर्वजों की गद्दारी जनता के सामने उजागर होऔर इनकी तथा इनके पूर्वजों की गद्दारी तो इतनी बड़ी है कि जब देश के लोगों को पता लगेगा तो कहीं उनपर ...... लगेंसारा इतिहास ही गड़बड़ा जायेगा

Thursday, June 23, 2011

कांग्रेस का आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम, प्रचार तंत्र का ढीठ पन

कहते हैं हिरण्यकशीपु ने अपने राज्य में मुनादी करवा दी कि कोई भी भगवान (विष्णु) का नाम न ले,न उसकी पूजा अर्चना करे, जो भी ऐसा करता हुआ मिल गया उसे भयानक दंड दिया जायेगा।
उसकी इस अन्याय पूर्ण बात का उसके पुत्र प्रहलाद ने ही विरोध कर दिया, क्यों ? क्योंकि उसके अन्दर अभी भी ऋषियों के रक्त का अंश बह रहा था। जबकि हिरण्यकशीपु के अन्दर असुरों के रक्त ने पूरा प्रभाव जमा लिया था।

यही हिरण्यकशीपु (असुरों)वाला “आदेश” कांग्रेस ने अपने सदस्यों के लिए जारी कर दिया है। अब देखना है कि कांग्रेस के कितने सदस्यों के अन्दर अभी भी ऋषियों के रक्त का अंश बह रहा है। वैसे इसके अधिकतर नेता जो सांसद और विधायक हैं; उनमे से कुछ सहमे-सहमे से स्वामी रामदेव और अन्ना हजारे के विरोध में बोले जरुर, लेकिन देख लेना आने वाले समय में ये सफाई पेश करते फिरेंगे कि हम ने ऐसा नहीं कहा था वैसा नहीं कहा था। और कुछ नेता तो अपने को असुरों का वंशज सिद्ध कर ही चुके हैं। ये आदेश ! कांग्रेस की आत्महत्या की ओर बढ़ता कदम सिद्ध होगा । और ऐसा होना भी चाहिए; इस कांग्रेस का तो बीज नाश होना चाहिए क्योंकि ये वो कांग्रेस नहीं है जिसे गाँधी जी चलाते थे,ये वो कांग्रेस है जिसे नेहरू ने गांधीजी से साजिश करके हथिया लिया था। इसे समाप्त होना ही चाहिए इतिहास को लोगों को बताना चाहिए। पर प्रचार तंत्र ऐसा नहीं करेगा ।

अब रही प्रचार तंत्र की बात तो यह तो अधिकांस घोषित रूप से ही असुर वंशज होने का प्रमाण पेश करते रहते हैं। इस समय भी साफ़ लग रहा है कि जिस काले धन को मुख्य मुद्दा बना कर सरकार के गले में स्वामी रामदेव ने हड्डी फंसा दी है उसी काले धन का कुछ हिस्सा इस प्रचार तंत्र को चलाने में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस प्रचार तंत्र को इतनी बेशर्मी से पाला बदलते देख कर आश्चर्य होता है, इसे बाबाओं का धन, (जिसका हिसाब-किताब है)तो दीखता है जो उन्हें आम जनता ने चाहे गरीब हो या अमीर हो,दान दिया है; और उन्होंने भी उस धन से समाज सेवा के लिए बहुत से अच्छे काम किये हैं, कुछेक अपवाद को छोड़ दें तो। इनकी यह कोशिश; उस काले धन या भ्रष्टाचार से लोगों का ध्यान हटाने के उद्देश्य के लिए ही लग रही है। ये काले धन को मुद्दा नहीं बना रहे; योग और आयुर्वेद को मुद्दा बना रहे हैं, ये स्वदेशी गुणवत्ता युक्त उत्पाद मिलने से समाज की संतुष्टि नहीं दिखा रहे अपितु इन्हें उसमे व्यापार नजर आ रहा है, विदेशी कम्पनियों की लूट मुद्दा बन सकती है पर नहीं उससे इन्हें विज्ञापन लेना है। ये और इनकी सरकार ये नहीं बता रहे कि बाबा रामदेव या बुराई विरुद्ध लड़ने वाले कोई भी, क्या गलत कह रहे हैं ? ये उन्हें ही कटघरे में खड़ा करने की नाकाम कोशिश करने में लगे हैं। इन्हें नहीं पता कि बाबा रामदेव जी की कोई भी संपत्ति या कार्य दुनिया के सामने खुले में होता में वह दुनिया से छुपा नहीं है, इसीलिए स्वामीजी की विश्वसनीयता इनके कुप्रयासों के बावजूद भी बढती जाती है ।

जब एक दक्षिण भारतीय न्यूज चैनल कलायिनार को दो सौ करोड़ रूपये रिश्वत दिए जा सकते हैं तो उत्तर भारतीय चैनलों को कितने दिए जा सकते हैं यह समझने के लिए अधिक सोचने की जरुरत नहीं हैइसीलिए तो इन मीडिया वालों में से बहुतों को देश में बाबाओं के धन की चिंता है पर उस धन की नहीं जो हजारों गुना अधिक हैक्यों ? क्योंकि उस धन में इनकी भी हिस्से दारी हैइस बात को भी अब तो आम जनता समझने लगी है। इन लोगों का मुहं इसलिए काला नहीं हो पायेगा कि ये कब पाला बदल लें इनका भरोसा नहीं। ये उस ब्लैकमेलर की तरह हैं जिसे जब तक धन मिलता रहेगा तब तक मुहं बंद, जैसे ही धन मिलना बंद इनका मुहं खुलना शुरू।

लेकिन धन ही सब कुछ नहीं, मान प्रतिष्ठा, कलंक, गद्दारी,आदि भी कुछ होता है। भारत में मीडिया और तथाकथित पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने अपनी छवि आम जनता की नजरों में इतनी गिरा दी है कि इन्हें अपने चैनल दिखाने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाने पड़ रहे हैं। ये न्यूज नहीं देते अपितु व्यूज देते हैं, इन चैनलों पर समाचार के आलावा और सबकुछ इन्हें दिखाना पड़ता है। क्या ये इनकी विश्वनीयता के कम होने के कारण नहीं है ?
पर क्या करें; ये कलियुग है इस युग में कौवा मोती खायेगा; तो सुना है पर ये नहीं सुना कि "शेर गू खायेगा" , विश्वास भी नहीं होता । क्योंकि शेर मर सकता है पर वो नहीं खा सकता जो उसे नहीं खाना चाहिए लेकिन ये कलियुग है क्या पता.... ? क्योंकि दिख तो ऐसा ही रहा है ये न्यूज चैनल्स शुरू में शेर की तरह दीखते हैं धीरे-धीरे किसी लोमड़ी की तरह चतुराई पूर्ण तरीके से लोगों को मूर्ख बनाने का काम शुरू कर देते हैं, और फिर विरोध पर उतर आते हैं ।

आज कल एक और मुद्दा मेरा ध्यान इन न्यूज चैनल पर खींच रहा है । जैसे ये दिखा रहे हैं कि आम पकाने के लिए कैमिकल का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि हम पिछले बीस सालों से इसी कार्बाइड द्वारा पका आम खा रहे हैं या केला खा रहे हैं कोई हौव्वा नहीं खड़ा किया गया इस बार पता नहीं क्या हुआ । इस कार्बाइड को सभी कार्बेट के नाम से या मशाले के नाम जानते हैं, लेकिन कोई तो कारण हैं कि ये मीडिया इस बार इसे क्यों उछालने पर तुला है ?
फिर कल एक समाचार और देखा कि फलों को एथिलीन नामक केमिकल से पकाने पर कोई खतरा नहीं है तब फिर दिमाग में खटका हुआ कि कुछ तो है जो ये इतना इंटरेस्ट ले रहे हैं।

लोकतंत्र का चौथा खम्भा टूटता-फूटता ही सही इस लिए अभी खड़ा दीखता है कि अगर ये भी बाकी टूटे खम्भों की तरह गिर गया और बदनाम हो गया तो ! इनकी साख जनता में कुछ भी नहीं रही तो ! तो इनकी अय्याशी कैसे चलेगी ? उसे चलाये रखने को, कौवों को मोती और शेर को.........खाने दो। जब अपना स्वार्थ सिद्ध भी हो और समाज का भला भी हो तो लाभ लिया जा सकता है तो लेना चाहिए,इसी लिए जनता में थोड़ी सी साख भी बची है।

Saturday, June 18, 2011

देश की असली गद्दार, "कांग्रेस"और उसके समर्थक, मीडिया,

इस देश के लिए सबसे बड़ा खतरा कांग्रेस है। ये दीमक की तरह है जिसने देश को अन्दर ही अन्दर खोखला बना दिया है। जैसे उदरकृमि प्राणी को स्वस्थ नहीं रहने देती, जो भी वह खाता पीता है उसे चूस लेती है वैसे ही ये कांग्रेस हमारे देश के लिए हो गयी है।
ये स्थिति आज कल की नहीं अपितु सौ साल से भी अधिक की है। अंग्रेजों ने देश को दो-ढाई सौ साल गुलाम रखा उसमे से अगर, विश्लेषित करें तो १८८५ के बाद कांग्रेस की सहायता से ही वह इस देश पर अपना राज कायम रख सके।

अब; तथाकथित आजादी के बाद, इसने जो लूट मचाई है और आम जनता को मूर्ख बनाने की जो महारत हासिल की है वह अचंभित करने वाली है।
लेकिन अब देश के अधिकांश देशभक्तों को लगने लग गया है कि ये केवल देश के लिए ही नहीं अपितु आध्यात्म ( सभी मुख्य धर्मो का सार) संस्कृति, संस्कार,सभ्यता, सभी के लिए खतरा है।

और इसको पिछले बासठ सालों से वोट देकर देश की जनता अपने कुकर्म का फल भोग रही है। बल्कि ये कहना चाहिए कि उनके कुकर्म का फल देश के वो लोग भी भुगत रहे हैं जिन्होंने उसे वोट नहीं दिया।
कई प्रदेशों में विद्रोह की समस्या, नक्सलवाद,माओवाद, चीन से खतरा, पाकिस्तान से हमेशा की रार, बंगलादेश की टेढ़ी आँखें, यहाँ तक कि नेपाल,श्री लंका,मयन्मार, जैसे देश; जिनकी जनता के साथ हमारे रोटी बेटी के, और संस्कृतिक सम्बन्ध हैं वो भी हम पर अब अपना गुस्सा जाहिर करने लगे हैं । जो हमारी ताकत बन सकते थे।

तारीफ की बात तो यह है कि जो उसे वोट देने वाले या समर्थक हैं वही अधिक परेशान भी हैं बेचारे पिछले पचास वर्षों से अपनी गरीबी दूर होने का इंतजार कर रहे हैं। और भी किसी न किसी कारण से परेशान हैं। एक तरह से अपने पापों का फल भोग रहे हैं।

पता नहीं क्यों अपने को बुद्धिजीवी मानने वाले वो तथाकथित लोग क्यों देश से गद्दारी कर रहे हैं जो इसे सही ठहराते हैं। क्या केवल कुछ रुपयों के लिए ? मेरे ख्याल से तो नहीं, क्योंकि रूपये देने में और राजनीतिक पार्टियां भी कम नहीं हैं, मुझे लगता है कहीं न कहीं चंद टुकड़ों के आलावा और भी नैतिक अनैतिक प्रलोभन इन्हें मिलते हैं ।
यही बेशर्म हाल मीडिया का है लगभग सभी चैनल अपने को जनता का, देश का,पर्यावरण का, रहनुमा बताते नहीं थकता पर एक भी चैनल ने आज तक कभी कोशिश नहीं करी कि वह संतालिस में हुए धोखे को मुद्दा बना कर बहस कराये। किसी भी चैनल ने कोशिश नहीं करी कि वह महात्मा गाँधी के उस आह्वान पर चर्चा करवाए जो उन्होंने दो फरवरी १९४८ से दूसरा आजादी का आन्दोलन चलाने के लिए कहा था। इन्होने इस बात पर कभी चर्चा नहीं करवाई कि आखिर गाँधी जी की मृत्यु से किसे सबसे अधिक लाभ पंहुचा । क्योंकि उन्होंने नेहरूराज से असहमत हो कर दूसरे आन्दोलन की घोषणा की थी।

वर्तमान में भी ये दो तीन दिन तक (चार से छह जून तक)तो अपनी नाक बचाने में कामयाब रहे पर फिर से इन्हें असली मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाने प्रलोभन मिल गया लगता है । कोई इस बात को मुद्दा बनाता कि आखिर बाबा रामदेव की संपत्ति को तो हर वर्ष सरकार की जांच कम्पनियां जांचती हैं फिर भी इस कांग्रेस के नेता क्यों जनता को मूर्ख बनाने का प्रयास कर रहे हैं | क्यों इस सरकार को अब स्वामीजी की संपत्ति पर आपत्ति है। आचार्य बालकृष्ण का पासपोर्ट इन्हें आज से पहले क्यों नहीं दिखा ? इस बेशर्म सरकार को ये बात भी नहीं सूझती कि ये सब करके वह अपनी ही नाकामी दिखा रही है ।

क्या ये मूल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश नहीं है। किसी तरह अपने को बचाओ इसलिए दूसरे को भी गद्दार बनाओ। यहाँ भ्रष्टाचार के ऊपर माहौल गर्म चल रहा है और सोनिया-राहुल अपने निजी दौरे पर विदेश चले गए पर हमारा मीडिया खामोश कर दिया गया। क्या है विदेश में इनका घर होगा रिश्तेदारी भी होगी पर उससे भी बड़ी बात विदेश में छिपाया कालाधन भी है | और काले खाते भी हैं जिन्हें इधर उधर भी किया जा सकता है । अगर कोई और इस तरह विदेश गया होता तो क्या ये मीडिया इस तरह की ख़ामोशी ओढ़ लेता ।

Tuesday, June 14, 2011

हर रामलीला से पहले एक दृश्य रावण लीला का होता है, वह हो गया

आह.हाहा…. हा मेरे राक्षस वीरो ! जाओ;भारत वर्ष के सुन्दर वन में ऋषि-मुनि कुछ तपस्वियों को साथ लेकर यज्ञ कर रहे हैं,कि ; इस संसार से हमारा प्रभावराक्षसत्वसमाप्त हो। तुम सब जाकर उसे खंडित करो। वहां स्थान-स्थान पर तुम्हें हमारे गुप्तचर, रक्ष संस्कृति के समर्थक, सहायता करने को तत्पर मिलेंगे। उन ऋषि मुनियों का यज्ञ केवल भंग ही नहीं करना अपितु उनका सबकुछ तहस-नहस करना जिससे वह फिर कभी साहस कर पायें; हमारी इस रक्ष संस्कृति के विरुद्ध कुछ भी करने का
दशानन कह रहा था अपने गणों से।


हमारे उत्तराखंड की संस्कृति में रामलीला नाटक का मंचन कुछ इस तरह रचाबसा है कि; महानगरों में बस गए उत्तराखंड प्रवासी जहाँ-जहाँ भी कालोनियों में बसे वहां रामलीला जरुर करते हैं। पहाड़ों में तो गाँव-गाँव में रामलीला का मंचन होता है। यहाँ तक कि बच्चे भी अपने तरीके से रामलीला करते हैं। हालाँकि; अब ज़माने के साथ इसमें कुछ कमी जरुर गयी है।

एक बात और;हमारे यहाँ की रामलीला का सबसे शुरुआती एक दृश्य उपरोक्त राक्षस लीला का है। जब रावण अपने गणों को ऋषि-मुनियों का यज्ञ भंग करने भेजता है। और उसके गण उन ऋषि-मुनियों का रक्त एक घड़े में लेकर रावण के पास जाते हैं रावण बहुत खुश होता है। ऋषि-मुनि रावण के गणों को कहते हैं कि इस रक्त में रावण का काल है, मतलब श्राप देते हैं कि उसका वंश अतिशीघ्र नाश होगा।

उधर ऋषि-मुनियों के लिए आकाशवाणी होती है; कि अब आप लोग विलाप मत करो, मैं इस पृथ्वी पर अवतरित होने वाला हूँ तुम समाज में फ़ैल कर लोगों का भय दूर करो और उन्हें संगठित करो।

कुछ यही दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ। देश के एक सौ इक्कीस करोड़ लोग बड़े आशान्वित थे; कि चलो केंद्र की कांग्रेस सरकार का सकारात्मक रुख, इस ख़त्म होते भारत की दशा को सुधारने का श्रेय अपने सर लेने के लिए ही क्या पता बाबा जी को उनकी कुछ बातों को मान कर मना ले। क्योंकि बाबा जी ने पिछले पांच वर्षों में जितना देश को झकझोरा था, मंथन किया था, उसका आंकलन तो सभी राजनैतिक पार्टियों ने किया ही होगा। {पूरा देश अब समझ चुका है कि भ्रष्टाचार कि जड़ कहाँ है}

लेकिन; ऐसा नहीं हुआ ! कांग्रेस उन राक्षसों की वंशज बन गयी जिन्हें भगवान राम ने त्रेता युग में ही इस धरा से निर्मूल कर दिया था। ऐसा लग रहा है जैसे रावण के वंशज कलियुग में बदला लेने को फिर पैदा हो गए हों। आधी रात में शांत सोये लोगों पर जो कार्य कांग्रेस के नेताओं की अनुमति से हुआ उसे इतिहास कलंक के रूप में याद रखेगा।

और याद रखेगा उसे सही ठहराने वालों को भी, और जननायक स्वामी रामदेव जी को अनाप-शनाप शब्द बोलने वालों को भी, ये लोग खिसियाये हुए हैं कि बाबाजी ने इनकी पूरी साजिश फेल कर दी। ये सोचे बैठे थे; कि किसी तरह बाबाजी ठिकाने लग जाएँ हमेशा का टंटा कट जायेगा। देश में जो उबाल आएगा वो इनके लिए कोई मायने नहीं रखते। अपना राज कायम रखने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। पर ऐसा हो नहीं पाया; बाबाजी ने तो इनकी योजना फेल करी ही करी भक्तों ने भी मन्त्र जाप करते हुए पिट कर अपने संयम की मिशाल पेश की। अगर भक्त लोग भड़कते तो जाने बेचारे कितने स्वयं मारे जाते क्योंकि पुलिस वाले तो गोली बारूद से लेस थे

मेरा मन बड़ा विचलित है आज 14 जून को दुकान खोल रहा हूँ। नौ जून शाम को हमने अनशन तोड़ा। चिकित्सक की सलाह पर प्रशासन के लोग पुलिस के साथ हमें उठाने आगये थे। संख्या कम होने के कारण कोई विरोध नहीं हो पाया, अस्पताल में दो बोतल पानी चढ़ाया और डिस्चार्ज हो गए; फिर जूस पीया हम अल्मोड़ा जिले के मुख्यालय पर अनशन पर बैठे थे रात साढ़े बारह बजे साथी ने उठाया कि दिल्ली में घपला हो रहा है। उसके आधा-एक घंटे बाद तो जो बिलकुल उम्मीद नहीं थी वह होने लगा मन करने लगा अभी उड़ कर दिल्ली पहुँच जाऊं क्योंकि हमने अपने वहां से भी पन्द्रह बीस लोग वहां भेजे थे किसी का भी फोन नहीं मिल रहा था।

खैर.... अब तो बाबा जी को सभी देश भक्तों की ओर से ये आश्वासन मिलना चाहिए कि;
लाख साजिशें कर लें;ये नेता ये सरकार,
देश के सामने बेनकाब हो गए गद्दार
इनकी रगों में बहता;मिलावटी रक्त ,
अपने खानदानी गुण को; कर रहा व्यक्त
बाबाजी ! हम सब;आपके साथ थे; हैं और रहेंगे,
इन गद्दारों को जूता दिखा कर; ये कहेंगे
लाख कोशिशें कर लो तुम; देश को बरगलाने की,
सफल होगी कोशिश तुम्हारी सूरज को झुठलाने की,
जाग गया है देशभक्त अब; और उसके संस्कार भी
रावण के वंशजो ! पीछे हटना तुम भी,
कथा पढ़ लेना रावण के वंश की ,
होना है तुम्हारा बीज नास भी