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Wednesday, May 25, 2011

युवराज ! बिना किसी राज-पाट के युवराज माने जाते हो

युवराज ! तुम बहुत भाग्यवान हो,कि भारत में…….. हो;(पैदा तो पता नहीं कहाँ हुए होगे)मुहँ में सोने का चम्मच (हीरे-मोती जड़ा) लेकर पैदा हुए होभाग्य तुम्हारा ऐसा प्रबल है कि अपने कुल-खानदान का पता होते हुए भी एक महात्मा के खानदान से जाने जाते हो उनके अपनों ने कभी उनका नाम अपनी पहचान के लिए पता नहीं लिया या नहीं; पर तुम्हें उसके लिए पूरा अधिकार और मान्यता इसी देश में मिल सकता है युवराज ! इससे अधिक भाग्य की प्रबलता क्या होगी कि;तुम्हारे आगे-पीछेमनुष्य रूपेण श्वान समप्राणियों की ऐसी भीड़ रहती हो जो तुम्हारे खंखारे हुए को भी अपनी जिव्ह्या पर अटकाने को आतुर हों, तुम शौच करो और वो धो देंइतना संम्मान ! फिर भी शर्मिंदगी ? राम...राम.... । कितने भाग्यवान हो तुम युवराज ! बिना किसी राज-पाट के युवराज माने जाते होइस देश के जितने राजा थे उनके वास्तविक युवराज तुम्हारे आगे पानी भरते हैं, तुम्हारा अनुसरण करते हैं अपना आदर्श मानते हैंआखिर बिना कुछ किये कराये किसे इतना मान-सम्मान मिलता है ?
संपत्ति
इतनी कि; बे हिसाब ! यहाँ की सरकारी कोठियों से लेकर देश-विदेश के बैंकों तक,एक नंबर से लेकर दस नंबर तक की कमाई सब तुम पर न्योछावर, तुम स्वयं अंदाजा लगा पाओगे, हम क्या बताएंकभी तिनका तोड़ने की जहमत भी नहीं; बिना कुछ किये धरे ही इतना कुछ, राम.. राम.... । बिना कुछ कर्म किये जिस देश में खाने को हराम माना जाता है पर तुम्हारे लिए नहीं तुम्हारे लिए ये देश अपनी मर्यादाएं भी ताक पर रख देता है
तुम्हारे
अनुसरण कर्ता (फैन, विचित्र प्राणी,कार्यकर्त्ता या मनुष्य रूपेण श्वान सम) उन सारी मर्यादाओं को बिलकुल नहीं मानतेतभी तो अपने माता पिता को अपमानित करदें या होते हुए देख लें पर तुम्हरी अभ्यर्थना में खड़े रहते हैंयुवराज फिर भी तुम शर्मिंदा हो ! राम..राम .... । तुम अगर बाहर निकल जाओ तो कैसे मीडिया तुम्हें सर आँखों पर बिठा लेता है, इसे तुमने जरुर देखा होगादेखना जरुरी भी है क्योंकि ये मीडिया वाले किसी के नहीं होते 'जब तक तुमसे उम्मीद है तब तक तुम्हारे',उम्मीद खत्म तो तुम्हारा खेल ख़त्महालाँकि तुमसे कभी ना उम्मीदी की उम्मीद उन्हें नहीं है क्योंकि तुम्हारे पास उन्हें उम्मीदों से अधिक होने उम्मीद है। हो भी क्यों नहीं पिछले पचास साल राज किया है परिवार ने और परिवार के स्वामिभक्तों ने; दोनों हाथो से लुटाओ तो भी पांच सौ वर्षों तक कमी ना पड़े, इतना तो देश में ही होगा, विदेश का और फिर अपने ननिहाल का हिसाब आप स्वयं जानो । इसलिए भी मीडिया वाले कुछ अति करने लगते हैं, क्या करें अपनी "काक प्रवृति" से इसे छोड़ भी नहीं सकते
स्वामिभक्त श्वान को उसका स्वामी कितना भी दुत्कारे यहाँ तक कि पीट-पीट कर भगा दे फिर भी उसकी प्रकृति है स्वामी भक्ति, कुछ ऐसे ही तुम्हारे भी स्वामिभक्त यहाँ अपने- आप तैयार हो गए; फिर भी तम्हें शर्म ! .... कांटे को फूल और फूल को कांटा बना दे ऐसा प्रचार तंत्र और ऐसा जनमानस तुम्हें कहाँ मिलेगा ? फिर भी तुम..... राम... राम ... राम....
युवराज ! हमने सुना है अमेरिका के किसी राष्ट्रपति की लाडली चौराहों पर समाचार पत्र बेचती है, और इसे अपना स्वाभिमान समझती है और यहाँ ! यहाँ तो तुम्हारे जैसे प्रेरणास्रोत व्यक्तित्वों से आदर्श मिलता है जो हराम का मिले वही स्वाभिमान है नेता पुत्र ने अगर काम कर लिया; तो थू है नेता गिरी पर। काम छोड़ो वहां का मीडिया भी इस बात को उस तरह से नहीं उछालता जैसे यहाँ तुम्हारे एकाध (खाली )तसले को अपने कंधे पर उठाने का फोटो मीडिया वालों ने इस तरह से अपनी विशेष संदूकची में बंद कर रखा है जिसे जब चाहे तब आसानी से निकाल कर दिखा दें ।

पर इस सबका तुम्हें कैसे पता लगेगा युवराज ? तुम तो भाग्यशाली हो ना ! सोने का चम्मच मुहं में लिए इस धरती पर आये हो । तुम्हें थोड़े ही कभी राशन की लाईन या बस की भीड़ में धक्के खाने पड़े हैं। तुम्हें क्या पता गैस का सिलेंडर न मिलने पर कैसे वहां पर झगड़ा हो जाता है उलटे पिटने की नौबत आ जाती है। तुम्हें तो ये भी नहीं पता होगा कि कैसे स्कूल या कॉलेज में दाखिला न मिलने पर पिताजी कई महीनो तक इस बात को सुनाते रहते हैं कि नंबर कम लाये, अब जैसा मिले वैसे में पढो, तुम्हें क्या पता बेरोजगार युवा की मानसिक स्थितियों का, (किसी की नजर में बेचारा किसी की नजर में आवारा)युवराज तुम्हें तो लगा लगाया पेड़ मिला है बस फल तोड़ने हैं और खाने हैं फिर भी तुम्हें शर्म राम...राम...

क्या करें युवराज ! आज भारत की स्थिति ऐसी बन गयी है कि "गरीब की जोरू सबकी भौजाई" वाली हालत है । अपने हों या पराये, सब आते हैं हराम का खाते हैं पीते हैं और हंसी भी उड़ा जाते हैं। तुमने और राजमाता ने तो केवल शर्मिंदगी अनुभव की; वरना कई तो ऐसे आते हैं कि धमकी दे देते है देश टूटने की या तोड़ने की । जिन्हें ये हालात बदलने चाहिए वो केवल 'ऐसा होना चाहिए वैसा होना चाहिए', या 'हम ये करेंगे हम ऐसा चाहते हैं' बयान देकर ही अपना कर्तव्य पूरा समझ लेते हैं । उनमें तुम और तुम्हारे पूर्वज(पिताजी,नानाजी,दादीजी) सभी वही निकले। देश ने तुम पर और तुम्हारे नाना जी पर बहुत भरोसा किया पर आज पता लग रहा है कि क्या गलती कर गए । युवराज आज की पीढ़ी अपने उन पूर्वजों को कोस रही है जिन्होंने ऐसा भारत बनने दिया, आँख बंद कर तुम्हारे पूर्वजों पर भरोसा किया । क्या ऐसे ही भारत की कल्पना की थी क्रांतिकारी शहीदों ने या गाँधीवादी नेताओं ने जरा उनके लिखे विचार पढ़कर के तो देखना ; पर तुम्हें पढने का समय कहाँ; तुम तो किसी से पढ़वा लेना । फिर युवराज तुम्हें देश पर नहीं अपने पर शर्म आएगी ।
क्या करें ? अब तो हमें शर्म आने लगी।
पर युवराज ये भी सच है कि तुम्हारे ही भाग्य से फिर भी इस देश में ऐसे युवा हैं जो तुम्हें अपना आदर्श मानते हैं । वे भी इसी तरह से हराम का मिलने को लालायित रहने वाले युवाओं का प्रतिनिधित्व करते और चाहते हैं। उनको हमारे इस देश के संस्कार इसीलिए अच्छे नहीं लगते कि इसमें हराम की खाने को गलत माना जाता है, उन्हें इस देश का इतिहास, संस्कृति,मान्यताएं,परम्पराएँ कुछ भी नहीं भाता। वो येन केन प्रकारेण जीतने को ही सही मानते हैं। जो जीता वही सिकंदर वाला विचार उन्हें अच्छा लगता है ।
इसलिए युवराज ! इस तरह शर्म न किया करो अपनी राजमाता को भी समझा देना । वो भी भाग्य की प्रबलता में किसी से कम नहीं हैं । फिर भी शर्म की बात करते हुए आप दोनों को ही शर्म नहीं आती, कहीं देश के लोग इस बेशर्मी को समझ गए तो क्या होगा ? ये तो सोचो ।

Saturday, May 21, 2011

हे देहली ! आ रहे हैं हम “भारत स्वाभिमानी’,तेरे आँगन में;

हे भारत की भाग्य विधाता देहली ! तुम स्तब्ध होना;
रहे हैं हमभारत स्वाभिमानी’,तेरे आँगन में;
इतिहास
का सबसे बड़ा सत्याग्रह देख कर; हतप्रभ होना
हे
देहली ! वैसे तो देखे हैं तुमने अपने जीवन में कई बदलाव,
खांडव
प्रस्थ से इन्द्रप्रस्थ,फिर पड़ोस के कुरुक्षेत्र में, सत्यासत्य का टकराव,
धर्मराज
का राज्याभिषेक,राजा परीक्षित को सर्पदंश और जन्मेजय का सर्प यज्ञ विशाल,
देखा है तुमने निर्जन वन से राजधानी बनना,बारम्बार उजड़ाव और बसाव,
धैर्य
की पराकाष्ठा हो तुम, इसलिए सत्याग्रहियों को देख; विक्षुब्ध होना,
हे भारत की भाग्य विधाता देहली ………
बदले हैं तम्हारे नाम भी कई,देखे है कई राजा-महाराज,
शौर्य
और क्षमा देखी चौहान की अट्ठारह युद्धों का इतिहास,
गौरी
की कायरता देखी धोखा भी; मंगोलों मुगलों का अत्याचार,
नादिरशाह
की लूट देखी और देखा, एक ही दिन में क़त्ल किये तीन लाख,
तुगलक
ने उजाड़ दिया तुम्हें,बस गयी; फिर बन गयी तुगलकाबाद,
उजड़
गयी तो भी देहली है, वर्तमान में भी कहाँ हो आबाद,
तुम
तो केवल तुम ही हो और तुम्हारी पहचान है; "धैर्य खोना"
हे
भारत की भाग्य विधाता देहली…………………
देखा
है वैभव तुमने देखी है गरीबी बेबशी लाचारी भी,
देश
भक्तों की निष्ठा देखी है और गद्दारों की गद्दारी भी,
भाईयों
को लड़ते देखा गद्दी के लिए, राजाओं की अय्याशी भी, गुरु तेग बहादुर की देखी बलिदानी,शाह जफ़र की लाचारी भी ,
देहलवियों
की खुद्दारी भी देखी , और अंग्रेजों की मक्कारी भी,
सन सैंतालिस में हुयी साजिश देखी,देश को टुकड़ों में बंटती बर्बादी भी, लोकतंत्र में नेताओं की अय्याशी भी देखी तुने, अब देख रही लाचारी भी, इतना सब कुछ सह जाती है
देहली ! इस बार भी क्लांत होना ,
हे भारत की भाग्य विधाता देहली ! तुम स्तब्ध होना ; रहे हैं हम भारत स्वाभिमानी, तेरे आँगन में, इतिहास का सबसे बड़ा सत्याग्रह देख कर; विक्षुब्ध होना

Monday, May 16, 2011

“तुम धन्य हो” दिग्विजय सिंह


तुम धन्य हो” धिक्विजय सिंह। धन्य है तुम्हारी स्वामिभक्ति;जो स्वामी के दुत्कारने के बावजूद भी श्वान-निष्ठा नहीं छोड़ती; अपितु पुच्छ हिल्लन और बारम्बार पद चट्टन से अपने स्वामी को रिझाती रहती है। "पर एक अच्छे श्वान का एक गुण तुममे नहीं है"; वह सज्जन और दुर्जन में भेद जान लेता है और केवल दुर्जन के विरोध में ही भौंकता है, पर तुम भेद तो जानते हो लेकिन सज्जन के विरोध में भौंकते हो । पर ये भी सच है; कि अगर ये गुण तुम पा लो तो कैसे अपनी विशिष्टता सिद्ध कर पाओगे धन्य है; तुम्हारी देश-समाज- संस्कृति,सज्जन "विरोध" के प्रति निष्ठा को। तुम्हारे जैसे दुष्ट शिरोमणि,गद्दार शिरोमणि, असुर शिरोमणि सदियों में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। अपना और अपने कुल-खानदान का नाम "मोटे स्याह अक्षरों में" इतिहास में लिखवा जाते हैं। कुल-वंश का गौरव तो सभी बनना चाहते हैं पर कुल कलंक बनने का साहस भी कोई एकाध ही सदियों में कर पाता है। आखिर कौन ऐसा साहस कर पाता है ; कि उसके आने वाली पीढ़ीयां गद्दारों के नाम से जानी जाएँ। वैसे तो तुम्हारे समुह (पार्टी) में एक से बढ़ कर एक "श्वान निष्ठीय आदर्श" वाले व्यक्तित्व हुए हैं और ; और वर्तमान में भी हैं,जाने क्यों उन्होंने तुम्हें अकेला छोड़ा हुआ है इसीलिए तुम जो आदर्श प्रस्तुत कर रहे हो वह धन्य है धन्य हैं तुम्हारे माता -पिता जहाँ भी (नर्क में ही )होंगे कैसे अपने कुल कलंक पुत्र को देख रहे होंगे कि कैसे उनका पुत्र सिंह हो कर भी किस सरलता से श्वान- प्रवृत्ति को पूर्ण रूप से निभा रहा हैपिता याद कर रहे होंगे कि उनके कुल में कोई इतना बड़ा गद्दार कभी हुआ या नहीं आखिर किस से बीज धारण किया तुम्हारी माता ने; वह भी जानना चाह रहे होंगे
धिक्विजय सिंह ! एक और सिंह आजकल आवारा श्वान की तरह भटक रहे हैं स्वामिभक्ति में ये भी किसी स्वान से या तुमसे कम नहीं हैं इनकी भी सिफारिश करो न, एक से भले दो होते हैं, अकेले की तरफ किसी का भी ध्यान कम जाता है जब दो हो जाओगे तो स्वामी भक्ति भी अधिक होगी सेवा भी अधिक होगी ।
एक आदर्श प्रस्तुत करो देश के गद्दारों के लिए, स्वान प्रवृत्ति वालों के लिए, धर्म विरोधियों के लिए संस्कृति-समाज विरोधियों के लिए । याद करो जयचंद को; आज तक लोग भूले नहीं हैं। ऐसा ही तुम्हारा नाम भी याद रखा जायेगा ।आखिर गद्दार वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का कोई तो सार्थक प्रयास करे

धिक्विजय सिंह ! एक और सिंह आजकल आवारा श्वान की तरह भटक रहे हैं स्वामिभक्ति में ये भी किसी स्वान से या तुमसे कम नहीं हैं इनकी भी सिफारिश करो न, एक से भले दो होते हैं, अकेले की तरफ किसी का भी ध्यान कम जाता है जब दो हो जाओगे तो स्वामी भक्ति भी अधिक होगी सेवा भी अधिक होगी ।

एक आदर्श प्रस्तुत करो देश के गद्दारों के लिए, स्वान प्रवृत्ति वालों के लिए, धर्म विरोधियों के लिए संस्कृति-समाज विरोधियों के लिए । याद करो जयचंद को; आज तक लोग भूले नहीं हैं। ऐसा ही तुम्हारा नाम भी याद रखा जायेगा ।आखिर गद्दार वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का कोई तो सार्थक प्रयास करे