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Thursday, March 31, 2011

कहीं ये विश्व कप फिक्स तो नहीं ?

पिछले कुछ समय की घटनाओं को देख कर और उनसे बनने वाले वातावरण को समझ कर; एकाध भविष्यवाणी अगर मैं कर दूँ तो सबको अतिशयोक्ति लगेगी
लेकिन; क्योंकि मैं भविष्यवक्ता तो हूँ नहीं, मैं ताल ठोक कर ये कह रहा हूँ कि मेरी भविष्यवाणी सच ही होगीलेकिन;इतना जरुर है कि वर्तमान घटना क्रम को विश्लेषित करने के लिए एक दृष्टि या धारा (लाईन) जरुर मिलेगी

मेरी पहली भविष्यवाणी है कि भारत विश्वकप जीतेगा; और इस बात की अफवाह उड़ेगी कि ये फिक्स था,
मेरी दूसरी भविष्यवाणी है कि अलीहसन की (आत्म)हत्या का समाचार भी मिलेगा, क्या राजा या कलमाड़ी भी आत्म हत्या कर सकते हैं ये अभी समझने में नहीं आया

इस सबके पीछे भारत के भ्रष्टों का खेल है, उसमे नेता,अधिकारी, टी.वी.न्यूज चैनल, समाचार पत्र-पत्रिकाएं,विज्ञापन कम्पनियां और बहुराष्ट्रीय कम्पनियां आपस में एक टीम बनाकर पूरे भारत ( जनता) के साथ के खेल रहे हैं
अब कारण बताता हूँ;
क्योंकि भारत एक विशेष अभियान के तहत पुनः जागृत हो रहा है, और इस अभियान से जिनअँधेरे के पैरोकारोंको हानि होनी है उनमे उपरोक्तयेसभी हैं इनके इतना सब करने बाद भी अगर ये अभियान अपनी सफलता की ओर बढ़ता रहा; जैसा कि निश्चित है, तो हो सकता है कोई बड़ी घटना जैसी कि यहाँ पहले भी दो-तीन बार हो चुकी है और जिसे फिर भ्रष्ट लोगों ने अपने लाभ के लिए भुनाया है

इन बातों का आधार , उस अभियान से, 'जो शायद विश्व का और इतिहास का सबसे बड़ा अभियान होने जा रहा हैइन सब का नजरें चुराना हैये इस अभियान को जनता की नजरों में, दिमागों में परवान नहीं चढ़ने देना चाहते

कुछ हद तक इनका भाग्य भी साथ देता हैबहुत सी ऐसी घटनाओं को जो सनसनी बनती, ‘जापान की त्रासदी दबा गयी’। और आगे होने वाली बहुत सी ऐसी घटनाओं को विश्वकप दबाएगा, सीधे-सीधे दब गयी तो ठीक, वरना; कई प्रकार की अफवाहें उडेंगी और कोई बड़ी घटना भी हो सकती है

जिस तरह से देश भक्ति के नाम पर क्रिकेट का जूनून लोगों के सर चढ़ाया जा रहा है उसे क्रिकेट भक्ति कह सकते हैं देशभक्ति नहींअगर ये देश भक्ति होती तो उस समय कहाँ थे हमारे वो क्रिकेट के देशभक्त खिलाड़ी और देश भक्त समर्थक जब विदेशी मीडिया ने केवल एक के हिंदी बोलने पर हमारी पूरी टीम का बहिष्कार कर दिया थाऔर ये देशभक्त खिलाड़ी अपने शारीर का लचीलापन (झुक-झुक कर) दिखा-दिखा कर उन्हें रिझा रहे थे

ये सारा जुनून एक साजिश के तहत बनाया जा रहा है। कोशिश हो रही है कि भारत न जगे अगर जाग गया तो वह दुनिया को सबकुछ देने वाला बन जायेगा लेगा कुछ भी नहीं, केवल अपने भ्रष्टों के चार सौ लाख करोड़ रूपये के आलावा । इस साजिश में उपरोक्त भ्रष्ट लोग ( क्रिकेट खिलाड़ी भी ) जाने अनजाने बिके हुए हैं। खिलाड़ी तो प्रत्यक्ष बिके हुए हैं ।

उपरोक्त सारी बातें वर्तमान में हो रही यथार्थ घटनाक्रम को देखते हुए लेखक की कल्पना पर आधारित हैं

Saturday, March 19, 2011

होली....... ऐसा जमाना कब आये

होली पर आप को परिवार के साथ शुभ कामनाएं
ये त्यौहार सबके जीवन में कमसेकम सौ बार आये
भी इसे बिना कीचड़ और दारू पिए मनाएं
जिससे भी को मजा आये, च्चे हों या हिलाएं

रंग में केव हर्बल गुला और टेशू के रं लगायें
पीने को केव दूध में बनी बिना भांग की ठंडाई पिलायें
मैं इंतजार में हूँ ....... ऐसा जमाना कब आये

Friday, March 18, 2011

विज्ञान के आसुरी विकास का परिणाम भुगत रहा है जापान

प्रकृति ( ईश्वर ) के लिए जापान हो या कोई अन्य देश; पूरी पृथ्वी एक इकाई हैइसी तरह मानव के रूप में; जापान का हो या जर्मनी का प्रकृति के लिए वह एक ही इकाई हैइसलिए जापान का व्यक्ति कोई ऐसा कार्य करे जिससे प्रकृति को हानि पहुंचे तो उसका फल ( दुष्प्रभाव) दूसरे कौने में रहने वाले व्यक्ति को भी पहुंचेगा चाहे कुछ देर से पहुंचे |
इस तरह की आपदाएं जापान के इतिहास में पहले भी आई होंगी, उनके क्या कारण रहे यह तो इतिहास ही जाने; पर वर्तमान में तो इसके पीछे मानव का ही हाथ हैप्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़छाड़ और अपने लिए ही गड्ढा खोद कर रखने वाली बात मनुष्य ही कर रहा हैअपने को सर्वशक्तिमान समझने लगना बहुत बड़ी मूर्खता है

जापान जैसा मजबूत राष्ट्र भूकंप झेलता रहता है इस समय भी झेल लेता; क्योंकि उसके पास विज्ञान और दृढ़ता हैअपने देश के प्रति नैतिकता है, पर; प्रकृति के प्रति भी नैतिकता होनी चाहिए थी , उसमे शायद वह भूल कर गया भूकंप रोधी तकनीक से बने भवन, सुनामी की जानकारी देने वाले उपकरणों और रेडियेशन से बचाव की तकनीक भी (हो सकता है) उसके पास होगी, पर प्रकृति कहाँ माने……; जैसे अपने होने का अहसास करना हो, जैसे मनुष्य उसे भूल चका हो
पहले भूकंप फिर सुनामी लहरों से जापान को पाट दिया इन्हें तो प्राकृतिक प्रकोप माना गया, पर जो रिएक्टरों में विस्फोट हो रहे हैं वह तो मानव निर्मित ही हैं। मनुष्य अपने आप अपने लिए गड्ढा खोद कर अपनी पीठ थपथपाता हैआज जापान या दुनिया का शायद ही कोई व्यक्ति हो जो उसके परमाणु रिएक्टरों पर पश्चाताप कर रहा हो कि ऐसे प्राकृतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में इन्हें नहीं बनाना चाहिए था

Sunday, March 13, 2011

हमारे देश में गधे केवल सरकार ही नहीं चलाते, अपितु…..बहुत कुछ (ब्लॉग भी) चलाते हैं

एक दिन सुबह आस्था चैनल पर योग शिविर के सीधे प्रसारण में "स्वामी रामदेव जी महाराज" ने किसी समाचार पत्र से पढ़ कर एक चुटकुला सुनाया कि; ‘अमरीका वालों ने कहा; हमारे यहाँ कुत्ते फ़ुटबाल खेलते हैं,तो जापान वालों ने कहा हमारे यहाँ मछलियाँ नाचती हैं, इसी तरह चीन वालों ने भी अपनी विशेषता बताई, भारत वाले ने कहा’;‘यह तो कुछ भी नहींहमारे यहाँ तो गधे सरकार चलाते हैं”।
बात हँसने वाली तो है ही; पर हँसने के साथ ही चिंतन करने वाली भी है ।
वो भी तब; जब हमारा "विदेश मंत्री" यु.एन. की बैठक में जाये और भाषण देते समयमौरीसस के विदेश मंत्री का भाषण पढ़ दे
ये भी सोचने की बात है कि; जो लोग (या "….") सरकार चला रहे हों और किसी से अपनी संपत्ति का विश्लेषण करने को कहें, फिर कुछ दिन बाद ही उस सत्ताधारी पार्टी का दूसरा साथी उनके “गधे पन” को उनका अपना व्यवहार बता ,पार्टी और सरकार का पल्ला झाड़ दे ।
लेकिन; मुझे तो लगता है कि हमारे यहाँगधे केवल सरकार ही नहीं चलाते अपितु; "कुछ" अख़बार और पत्रिकाएं भी चलाते हैं, "कुछ" न्यूज चैनल भी चलाते हैं, "कुछ" धार्मिक संस्थाएं भी चलाते हैं और भी न जाने क्या-क्या चलाते हैं। हाँ; "कुछ ब्लॉग" भी चलाते हैं, मैं ब्लोगरों को …… नहीं समझता था पर कुछ ब्लोगर अपने को वही…. सिद्ध करते हैं, फिर इन्हें सही बात गाली जैसी लगती है।
पर हमारे यहाँ के गधे जरा चालाक किस्मके हैं। क्योंकि इनके पूर्वजों को अंग्रेज सिखा-पढ़ा गए थे; तो वह सिखाई-पढ़ाई इनके जीन्सों में आ गयी है। अपनी चालाकी से इन्होंने जनता को मूर्ख बना कर आज तक अपना उल्लू सीधा किया है।
इनका गठजोड़ बड़ा मजबूत है समय पर सब अघोषित रूप से एक हो जाते हैं, क्योंकि इन्होने व्यवस्था बनायीं ही ऐसी है कि इन सबके हित एक दूसरे से जुड़े हैं। एक के “रेंकने”पर सभी अपनी- अपनी जगह पर अपने को रेंकने से रोक नहीं पाते। "ये"(रैकना) इनका (गधों का) विशेष स्वभाव होता है; इसे चालाकी से व्यवहार में लाना अंग्रेज सिखा गए थे
तभी तो इनमे से किसी को भी स्वामी रामदेव जी का नितीश की प्रशंसा करना नहीं दीखता”, इनमे से किसी को भी “स्वामी रामदेव जी का महात्मा गाँधी को पूजनीय मानना और उनकी नीतियों को आधार बना कर पूरे देश में आन्दोलन खड़ा करना” नहीं दीखता, इनमे से किसी को भी “स्वामी जी का ममता बनर्जी की प्रशंसा करना नहीं दीखता, “इनमे से किसी को भी बिहार की बाढ़ पीड़ित जनता को दिया गया सेवा-सहयोग नहीं दीखता”, “इनको इनके प्रधान मंत्री को सबसे भ्रष्ट सरकार के सबसे ईमानदार प्रधान मंत्री वाली प्रशंसा भी नहीं दिखती”, इनको भारत स्वाभिमान की यात्रा "जिसमे दो लाख" लोग प्रतिदिन बाबा जी से प्रेरित हो रहे हैं वो भी नहीं दीखते, जबकि सीधा प्रसारण आता है, इन्हें बाबा जी के "वो बोल" भी नहीं सुनाई देते जो इटली और स्विश बैंको को यहाँ लाने के लिए जवाब मांग रहे हैं, इन्हें स्वामी जी का स्वदेशी का आह्वान नहीं दिखाई देता, इन्हें स्वामी जी द्वारा किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का विरोध चाहे धार्मिक हो, राजनीतिक हो, सांस्कृतिक, हो शैक्षिक हो, सामाजिक हो नहीं दीखता, इन्हें उपरोक्त बातें नहीं दिखाई देती जिनके प्रति अब जनता जाग गयी है,( शक होता है कि ये गधे हैं या उल्लू; क्योंकि उजाले को झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं )।
क्या कहूँ ? विदेशी संस्कृति में तो सुकरात का विरोध हुआ, क्योंकि वहां "जाहिल" लोग रहते थे, जीसस का विरोध हुआ वहां भी वही स्थिति थी,क्योंकि इन्होंने सच बोलने का साहस किया था। और भी उदाहरण होंगे, पर हमारे देश में तो विद्वता और विद्वानों का विरोध नहीं; अपितु उनसे "शास्त्रार्थ" करने की परंपरा रही है; जिससे सत्य स्थापित हो सके। तभी तो जितने महापुरुष यहाँ हुए उतने कहीं नहीं हुए। उसका एक कारण ये भी था कि यहाँ जाहिल लोग नहीं रहते थे अपितु सत्य को स्वीकारने वाले लोग रहते थे ।
यहाँ सत्य, सभ्यता, संस्कृति,संस्कारों का प्रकाश पूरी दुनिया से बहुत पहले हो गया था । फिर भी अगर आज चालाक गधों की उपमा मुझे इन बुद्धिजीवियों (तथाकथित)
को देनी पड़ रही है तो उसके लिए वो अंग्रेज शाबाशी के योग्य हैं जो इतना परिवर्तन करने में सफल रहेपर इस समय जो देश के हालात हो गए हैं इन्हें अब तो जानना चाहिए कि इन हालातों के लिए जिम्मेदार कौन है
मुझे तो यह "आन्दोलन" आदि शंकराचार्य द्वारा की गयी "दिग्विजय यात्रा" के सामान लगता है। आज स्वामी जी ने जितने मुद्दे देश के लोगों के दिमागों में भर दिए हैं वह बहुत बड़ी संख्या में हैं जिन्हें “ये लोग” इन छोटी-छोटी बातों में नहीं उलझा सकते। कोई बाबा ( पता नहीं चिलमची है ?) खड़ा हो जाता है उस चैनल पर, “जिसका पता ही नहीं किस दुनिया की बात करता है”। इसी तरह के और भी कई चैनलों पर कुछ "चालाक गधे" कोई भी निरर्थक बात को स्वामीजी के विरोध में पेश करने का प्रयास करते दिख जायेंगे। इनको अपना तो पता नहीं कि ये न्यूज चैनल हैं या विज्ञापन चैनल। ऐसे ही "कुछ नेता" जिनकी निष्ठा देश क्या अपने पिता के प्रति भी नहीं अपनी पार्टी या राजमाता-राजकुमार के प्रति अधिक है वह "चैलेन्ज करता" दिख जाता है और कोई पत्र पत्रिका या चैनल उसे दिखाने को लालायित रहता है। पर जनता का सवाल बन चुका कि विदेशी बैंक किसके लिए बुलाये ? उस पर सब चुप हैं। ४७ में हुयी गद्दारी के लिए सब चुप हैं; किसलिए ? अरे ...... ! गधा चालाकी भी करेगा तो भी गधा ही रहेगा , और जानते हो ! ज्यादा ही रैन्केगा तो आस-पास की जनता दुत्कारने लगती है
मैं इन्हें (विरोधियों को) गधा नहीं कहता (चालाक गधा)। मेरे कहने से बन भी नहीं जायेंगे । अपने को गधा मानेंगे भी क्यों ये सब स्वामीजी का विरोध करते, पर कभी उनके द्वारा लाखों को दिए जा रहे जीवन दान को भी वर्णित कर देते, उन पर बहस करवा देते, उनको विश्लेषित करवा देते, तो न जाने कितने और लोगों को प्राणयाम का लाभ पहुँचता, और कितनी तेजी विश्व भर में योग आयुर्वेद विख्यात होता। या उनके द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन को कभी प्रयाप्त समय के लिए दिखा देते। दिल्ली की इतनी बड़ी रैली को ये एक दो मिनट के लिए दिखा पाए। इन्होंने कभी नहीं दिखाया कि आज स्वामीजी की आवाज के साथ कितने देशभक्तों की आवाजें मिल रही हैं ।
ये दिखाते स्वामी जी पर आरोप लगाने वालों को, उनके द्वारा बनाये जा रहे सामान को बदनाम करने वालों को, मनगढ़ंत आरोप लगाने वालों को या जो आज से बीस साल पहले के हालातो को बताने में लगे हैं उनको।
ये सभी भ्रष्ट हैं; अपने-अपने क्षेत्र में ।
क्या इनका प्रयास सफल होगा ? नहीं होगा ; क्योंकि सारी जनता इनकी तरह उल्लू नहीं है कि उजाला न देखे । देखना आने वाले समय में इन सबको मुहं छुपाना मुश्किल होगा । हमें भी पता लग रहा है कि कैसे जयचंद ने गद्दारी की होगी ।
मैं जनता हूँ ये कहेंगे कि; 'इन्हें देशभक्ति के लिए स्वामी जी या मेरे प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं है, पर मेरा कहना है कि इन्हें भी इस तरह की घटिया चालाकी जो देशभक्तों को बुरी लगे नहीं करनी चाहिए। स्वामी जी से भी इन्हें जवाब मांगने या कुछ सिद्ध करने को कहना देशभक्तों का खून ही खौलायेगा
अंत में.... मेरे इस लेख से यदि किसी देशभक्त (गेहूं के साथ घुन) को बुरा लगा हो तो क्षमा कर देना और गधों को बुरा लगे तो बुरा लगने के लिए ही तो लिखा है, लगे ।