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Friday, December 24, 2010

"टी.वी. न होता तो महँगाई भी न होती"

भगवान करे इनकी आवाज बंद हो जाये, या कोई इनके मुहं पर टेप चिपका देहे भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे ! इन्हें नहीं पता इनके छोटे से समाचार से गरीबों को खाने के लाले पड़ जाते हैं फिर ये तो महँगाई के ऊपर आपस में एक-दूसरे से होड़ लगा कर बड़े-बड़े समाचार दिखा देते हैंजिस महँगाई को हमारे पास पहुँचने में महीने लगने चाहिए थे वो घंटे-दो घंटे में पहुँच जाती है ये महँगाई की भविष्यवाणी करके महँगाई बढ़ा देते हैं, ये फसल होने की भविष्यवाणी करके महँगाई बढ़ा देते हैं, ये किसी वस्तु के आयात पर रोक होने की खबर को सनसनी बनाकर महँगाई बढ़ा देते हैं,या निर्यात होने की खबर से महँगाई बढ़ा देते हैं; कहीं ये आयात निर्यातकों से तो मिले नहीं हैं ? ऐसा शक होता हैहमने तो इन समाचार चैनलों को लोकतंत्र रूपी खेत की "बाड़" समझा था पर ये बाड़ तो अब फसल खाने लगी है
(कोई माने या माने पर मेरा मानना है कि; टी.वी. केन्यूज चैनलमहँगाई बढ़ाते हैंसौ प्रतिशत सही नब्बे प्रतिशत तो इनका योगदान महँगाई बढ़ाने में जरुर हैअब ये अलग बात है कि आखिर इनका लाभ क्या है ? या तो ये बिचौलियों से मिले होते हैं अपने समाचारों के द्वारा उनको लाभ पहुंचाते हैं और अपना हिस्सा वसूलते हैं या विपक्षियों से मिल कर सरकार को घेरने के लिए ऐसा करते हैंकोई कोई कारण तो है जो ये ऐसा करते हैंमैं पिछले लगभग पांच-सात बार के महँगाई के आक्रमणसे देख रहा हूँ; समाचार पहले आता है महँगाई बाद में आती है जिस महँगाई को हमारे पास पहुँचने में एक महीना लगता वह चार घंटे में पहुँच जाती हैऔर बिचौलियों की मौज हो जाती है उनका जो माल दस की खरीद का था वो सौ का हो जाता हैयहाँ तक कि सड़े हुए माल के तक दाम पांच गुने बढ़ जाते हैं )।

Wednesday, December 22, 2010

देश का भला कैसे होगा ?

जिस देश के अधिकांश बुद्धिजीवी (आदर्श[सेलेब्रिटी] समझे जाने वाले व्यक्ति), लगभग मानसिक रोगी होने की सीमा तक भारतीयता को भुला बैठे हों।
जिस देश के अधिकांश राजनेता और अधिकारी, "बेशर्म, बेईमान, बेदर्द और मूर्खता की सीमा को आगे बढ़ाये जा रहे हों।
जिस देश के उद्योगपति, अपनी अय्याशियों के लिए किसी भी सीमा तक "अनैतिक तरीके" से धन अर्जित करने के लिए सरकारों तक को खरीद लें।
जिस देश का आम आदमी अपना और अपने परिवार के जीवन को चलाने में इतनाव्यस्त रहने को मजबूर हो कि उसे देश और समाज में क्या हो रहा है इसका पता ही चले।

तो इस देश का भला कैसे होगा ?

पर ! होगा; भला होना निश्चित है। जाने कितनी बार इससे पहले इससे भी बुरी स्थिति हुई है। फिर भी भला हुआ है। असुरता मिटी है देवत्व पुनर्प्रतिष्ठित हुआ है। ये प्रकृति का,श्रष्टि का नियम है। यहाँ सब कुछ एक चक्र में बंधा हुआ चल रहा है उससे कोई नहीं बच सकता।

स्थिति चाहे कितनी ही बुरी क्यों हो इस देश में, पर "देवत्व का बीज" बचा रहता है इसीलिए जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब भगवान स्वयं जगत का कल्याण करने की इच्छा करने लगते हैं। और तब सब कुछ उनके अनुकूल होने लगता है।

जैसा इस समय हो रहा है;अगर बुराईयाँ चरम पर हैं तो अच्छाईयाँ भी बढ़ रही हैंएक ओर ऐसे उद्योगपति हैं जो अपने तीन-चार जनों के परिवार के लिए सत्ताईस मंजिला भवन बनवा रहे हैं या जनता को लूटने के लिए सरकारों से साठगांठ करते है, तो दूसरी ओर ऐसे भी हैं जो अपना "सर्वस्व"समाज के लिए दान कर रहे है।

अपराध-भ्रष्टाचार में इतना अधिक बढ़ावा हो गया है कि कभी सही भी होगा ये विश्वास नहीं होता, पर दूसरी ओर इसके विरोध में उठने वाले स्वरों और हाथों को देख कर लगता है कि ये अधिक दिन का मेहमान नहीं है। एक ओर हमरे नवयुवा नशेड़ी और संस्कार हीन होकर इन राजनैतिक पार्टियों के सदस्य बनने को लालायित हैं; (क्योंकि इन्हें हराम की खाने का लालच है), और अभारतीयता के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति की ओर दौड़ लगा रहे हैं; तो दूसरी ओर ऐसे युवा भी हैं जो सुबह-सुबह तीन बजे से "स्वामी रामदेव जी " के योग शिविर में हजारों की संख्या में पहुँच कर भारत की सभ्यता-संस्कृति नशे-वासनाओं से दूर रहना और स्वच्छ राजनीति का पाठ पढ़ रहे हैं।

और अब तो अति हो भी गयी है जब से "विकिलीक्स" के द्वारा ये पता लगा है कि दुनिया के नेता हमारे देश और नेतओं के बारे में कैसे विचार रखते हैं। इसी लिए मैंने इन नेताओं को बेशर्म कहा है; क्योंकि इनके हास्यास्पद क्रियाकलापों से हमारे देश की, संसार के देशों में क्या स्थिति है; इसे देख-सुन कर देश के लोगों का खून खौल जाता हैजब समाचार पत्रों में पढने को मिलता है कि अमेरिका में हमारे राजनयिकों या नेताओं तक को जाँच के नाम पर अपने कपडे भी उतारने पड़ते हैं, तो खून खौल जाता है; सर शर्म से झुक जाता हैधिक्कार है उन नेताओं और अधिकारियों को और उन लोगों को जो फिर भी अपनी और देश की बेइज्जती नहीं समझते

और धिक्कार है उन लोगों को, जो देश के इतना बुरा हाल बना देने वाली राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्त्ता बनने को आतुर दीखते होंजो पढ़े लिखे होने के बाद भी गुलाम की तरह इनके खानदानी नेताओं के झंडे ढोने को और इनसे हाथ छू जाने को अपना सौभाग्य समझते हों, जो ये सोचने का प्रयास नहीं करते हैं;कि आखिर इस देश का ये हाल ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में कोई भी सुखी नहीं रह पायेगा चाहे कितना ही बड़ा करोडपति क्यों हो

जो पढ़े लिखे होने के बावजूद भी ये सोचने का प्रयास नहीं करते कि ये इतना बुरा हाल ! हुआ क्योंइसलिए धिक्कार है उनकी शिक्षा-दीक्षा को, धिक्कार है उनके उन शिक्षण संस्थानों को और उन शिक्षकों को, और धिक्कार है उन माताओं-पिताओं को, जिनके द्वारा "वो निर्लज्ज" "मूढ़ मति" इस संसार में आये

उन्हें जो पढाया गया उसे ही आँख बंद कर सच मानने वाली जो शिक्षा इस देश में नहीं चलती थी, ये उसे ही लागू रखने का परिणाम है
आज भारत कि स्थिति ऐसी है जैसे "चौबे जी चले छब्बे जी बनने रह गए दूबे जी" ।

वास्तव में आजादी के नाम पर हुआ समझौता देश के लोगों के साथ धोखाधड़ी है। जिन लोगों ने ये किया वो पापी थे, और जिन्होंने उनका साथ दिया या उन्हें वोट दिया उन्होंने भी जाने-अनजाने पाप किया
अब इन "पाप सने हाथों" को धोने का समय गया है और अवसर भी मिल रहा है जिनके पूर्वजों ने ये पाप किया था वो भी उनके पाप से अपने को उरिण कर सकते हैं

नई आजादी नई व्यवस्था के लिए नया आन्दोलन चल रहा है "भारत स्वाभिमान" जिसके आगामी चुनावों में सफल होने के अब तो दो सौ प्रतिशत सम्भावनाये हैं जैसा कि बिहार में दिख गया है, और राष्ट्रीयता जो उफान पर है उसे देख कर तो लगता है कि इस बार विदेशी तौर-तरीका(सिस्टम) बचेगा विदेशी सोच और सोचने वाले बचेंगे