कुछ देखा-सुना आपने ! अब अपने भारत को एक और देवी मिल गयी है;“अंग्रेजी देवी”। अब इसका मंदिर भी बन रहा है। “ कितने बुद्धिमान हो जाते हैं अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त करके” ये सिद्ध कर रहे हैं इसको बनवाने वाले, संभवतः अंग्रेजी में निपुण हों। पर इन्होंने ध्यान नहीं दिया अंग्रेजी के ज्ञान को सर्वोपरि मानने वाले उसकी आरती हिंदी में ही गवा रहे हैं, इस पर जरा ध्यान दो वरना अंग्रेजी मईया पर श्रद्धा नहीं बन पायेगी।
वाह रे ! मानवता के भारतीय सपूतो आपने ये सिद्ध कर दिया है कि आप लोग कितने विद्वान् हो, आखिर अंग्रेजी पढ़े हो। पर तुम्हारे आका (मिशनरीज) तो चर्चों को ज्ञान का द्वार बताते थे तुम ये भारतीयों की तरह मंदिर बनवा रहे हो ?कमसेकम भारतीयता तो नहीं छोड़ी, वरना चर्च बनवाते, बोर्डिंग स्कूल बनवाते ।
दलित उत्थान के लिए आपका ये योगदान याद रखा जायेगा। अब भारत में भी सभी दलित काम चाहे कुछ भी करें पर अंग्रेजी बोलेंगे, जैसे इंग्लेंड में झाड़ू लगाने वाला या बढई-लुहार कोई भी हो सभी अंग्रेजी बोलते हैं, वहां का तो अनपढ़ भिखारी भी अंग्रेजी में ही भीख मांगता है।
मैकाले की आत्मा कितनी प्रसन्न हो रही होगी आप जैसे अंग्रेज विद्वानों का ये कारनामा देख कर। बस उसके में मन यही एक टीस होगी कि उसकी आरती आपलोग अंग्रेजी में नहीं बनवा पाए।
ताजा प्रविष्ठियां
Sunday, October 31, 2010
Thursday, October 21, 2010
‘क्यों भाई तुम्हें किस बात का गर्व है’ ?
“हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं”, ‘क्यों भाई तुम्हें किस बात का गर्व है’ ? जरा हमें भी तो बताओ । हम भी जानें आपने अपना “गर्व” किस मापक से मापा है ? भारत के धर्म-संस्कृति, सभ्यता- संस्कार, भाषा-साहित्य,इतिहास व प्रतीक पुरुषों पर तुम्हें विश्वास नहीं है तो गर्व कैसे होगा ?
क्षमा करना ये प्रश्न केवल उन लोगों से है जिन्हें भारत के धर्म-संस्कृति, सभ्यता- संस्कार, भाषा-साहित्य, कुछ भी श्रेष्ठ नहीं दीखता , फिर भी जोर-शोर से कहते हैं “हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं”।
नेताओं जैसे बड़े-बड़े बुद्धिजीवी दावा करते थकते नहीं हैं। “ गर्व से कहो हम भारतीय हैं”। इनसे कहो न की संसार के “सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ वेद और सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत”, भारत के हैं तो इन्हें अच्छा नहीं लगता ।
तो सवाल बनता है न ! “कि किस बात का गर्व है”? इसलिए बताओ तो जरा ! किसी भी देश के नागरिक को उस देश का नागरिक होने पर किस लिए गर्व होता है ? भारतीयों के उपरोक्त मूल्यों पर अगर आस्था नहीं है तो आपकी देशभक्ति का दावा संदिग्ध है । चाहे आप किसी पूजा-पद्दति को अपनाते हैं पर अपने आध्यात्मिक-ऐतिहासिक-सांस्कृतिक-भाषा-साहित्य के मूल्यों पर आपको गर्व नहीं है तो भारत पर गर्व करने के लिए क्या है ।
क्षमा करना ये प्रश्न केवल उन लोगों से है जिन्हें भारत के धर्म-संस्कृति, सभ्यता- संस्कार, भाषा-साहित्य, कुछ भी श्रेष्ठ नहीं दीखता , फिर भी जोर-शोर से कहते हैं “हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं”।
नेताओं जैसे बड़े-बड़े बुद्धिजीवी दावा करते थकते नहीं हैं। “ गर्व से कहो हम भारतीय हैं”। इनसे कहो न की संसार के “सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ वेद और सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत”, भारत के हैं तो इन्हें अच्छा नहीं लगता ।
तो सवाल बनता है न ! “कि किस बात का गर्व है”? इसलिए बताओ तो जरा ! किसी भी देश के नागरिक को उस देश का नागरिक होने पर किस लिए गर्व होता है ? भारतीयों के उपरोक्त मूल्यों पर अगर आस्था नहीं है तो आपकी देशभक्ति का दावा संदिग्ध है । चाहे आप किसी पूजा-पद्दति को अपनाते हैं पर अपने आध्यात्मिक-ऐतिहासिक-सांस्कृतिक-भाषा-साहित्य के मूल्यों पर आपको गर्व नहीं है तो भारत पर गर्व करने के लिए क्या है ।
Sunday, October 17, 2010
सब देख रहे हैं धर्मनिरपेक्ष मीडिया और नेताओं का दोगलापन
एक सेकुलर का प्रलाप
(अरे ! बुखारी जी तुमने ये क्या किया ? पत्रकार की छाती पर नहीं.. तुमने तो हमारे मुहं पर लात मार दी। अब मुहं कैसे खोलें ? खुल ही नहीं रहा, शायद लात जोर से लगी है आँखें खोलने में भी दर्द(शर्म) का अनुभव हो रहा है। तुमने तो हमें बुखार सा ला दिया है । मित्र लोग हंसी उड़ाने में लगे हैं; सब कह रहे हैं कि सेकुलरों को “बुखारी का बुखार” हो गया है । उन्होंने इसे नए किस्म का बुखार घोषित कर दिया है । आखिर तुम्हें हो क्या गया था मिया ? तुम तो अपने अब्बा से भी आगे जा रहे हो वे तो केवल उल्टे-सीधे मुहं चलाते थे; तुमने तो सीधे लात चला दी। सठिया तो नहीं गए ?आखिर क्यों बिदक गए….. ? वो तो अल्लाह का करम समझो कि मीडिया में भी अपने ही बन्दे बैठे हैं, वरना ! कितनी भद्द पिटती……) ।
मीडिया का दोगलापन
एक पत्रकार पिटा ! पूरे समाज के सामने; एक खतरनाक किस्म के व्यक्ति और उसके कुछ गुंडा प्रकार के समर्थकों द्वारा । पर मीडिया में कोई हलचल नहीं, नेताओं ने कोई हल्ला नहीं मचाया ।
है न आश्चर्य की बात ! शुक्र है ये वाकया एक मुस्लिम इमाम द्वारा किसी पत्रकार पर हुआ । सोचो ! मतलब; कल्पना करो ! ऐसा ही कुछ किसी हिन्दू ने किया होता तो; क्या होता ? वह चाहे कितना ही बड़ा या छोटा होता, तो भारत का “ये धर्मनिरपेक्ष समुह” क्या इसी तरह केवल “रस्म निभाते” से समाचार या बयान देता ? अख़बारों के कितने पन्ने काले कर देते ?
नहीं ! इन मीडिया वालों का लगभग एक सप्ताह तक कमाई का जुगाड़ हो जाता । और सेकुलर गिरोह को तो मानो ब्रम्हास्त्र मिल जाता हिन्दुओं को कोसने के लिए। "ये" हिन्दू सभ्यता-संस्कृति-संस्कारों पर धर्मग्रंथों पर बहस कर-कर के अपना बुखार उतार रहे होते ।
अब हालात ये हैं कि; अपने (तथाकथित सेकुलर) चरित्र के विरुद्ध मामले को गरमा भी नहीं सकते, इसलिए एकाध बार समाचार दिखा दिया। बाकि ! सेकुलर नेताओं ने तो मुंह छिपाना ही ठीक समझा। बहुत से "मीडिया मालिक" अपने कार्यालयों में बैठे ठंडी आहें भर रहे होंगे कि; काश ! ऐसा ही कुछ किसी हिन्दू ने किया होता तो कितनी कमाई होती ?
(अरे ! बुखारी जी तुमने ये क्या किया ? पत्रकार की छाती पर नहीं.. तुमने तो हमारे मुहं पर लात मार दी। अब मुहं कैसे खोलें ? खुल ही नहीं रहा, शायद लात जोर से लगी है आँखें खोलने में भी दर्द(शर्म) का अनुभव हो रहा है। तुमने तो हमें बुखार सा ला दिया है । मित्र लोग हंसी उड़ाने में लगे हैं; सब कह रहे हैं कि सेकुलरों को “बुखारी का बुखार” हो गया है । उन्होंने इसे नए किस्म का बुखार घोषित कर दिया है । आखिर तुम्हें हो क्या गया था मिया ? तुम तो अपने अब्बा से भी आगे जा रहे हो वे तो केवल उल्टे-सीधे मुहं चलाते थे; तुमने तो सीधे लात चला दी। सठिया तो नहीं गए ?आखिर क्यों बिदक गए….. ? वो तो अल्लाह का करम समझो कि मीडिया में भी अपने ही बन्दे बैठे हैं, वरना ! कितनी भद्द पिटती……) ।
मीडिया का दोगलापन
एक पत्रकार पिटा ! पूरे समाज के सामने; एक खतरनाक किस्म के व्यक्ति और उसके कुछ गुंडा प्रकार के समर्थकों द्वारा । पर मीडिया में कोई हलचल नहीं, नेताओं ने कोई हल्ला नहीं मचाया ।
है न आश्चर्य की बात ! शुक्र है ये वाकया एक मुस्लिम इमाम द्वारा किसी पत्रकार पर हुआ । सोचो ! मतलब; कल्पना करो ! ऐसा ही कुछ किसी हिन्दू ने किया होता तो; क्या होता ? वह चाहे कितना ही बड़ा या छोटा होता, तो भारत का “ये धर्मनिरपेक्ष समुह” क्या इसी तरह केवल “रस्म निभाते” से समाचार या बयान देता ? अख़बारों के कितने पन्ने काले कर देते ?
नहीं ! इन मीडिया वालों का लगभग एक सप्ताह तक कमाई का जुगाड़ हो जाता । और सेकुलर गिरोह को तो मानो ब्रम्हास्त्र मिल जाता हिन्दुओं को कोसने के लिए। "ये" हिन्दू सभ्यता-संस्कृति-संस्कारों पर धर्मग्रंथों पर बहस कर-कर के अपना बुखार उतार रहे होते ।
अब हालात ये हैं कि; अपने (तथाकथित सेकुलर) चरित्र के विरुद्ध मामले को गरमा भी नहीं सकते, इसलिए एकाध बार समाचार दिखा दिया। बाकि ! सेकुलर नेताओं ने तो मुंह छिपाना ही ठीक समझा। बहुत से "मीडिया मालिक" अपने कार्यालयों में बैठे ठंडी आहें भर रहे होंगे कि; काश ! ऐसा ही कुछ किसी हिन्दू ने किया होता तो कितनी कमाई होती ?
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