ताजा प्रविष्ठियां

Friday, August 13, 2010

पुरानी "सीख"

आज; मेरे परम मित्र और गुरु तुल्य, "आचार्य शुक्लजी" के साथ बैठे; वर्तमान हालातों पर चर्चा हो रही थीबातों में बात गयी तो; उन्हें "बेताल कवि" का एक नीतिगत छंद याद आता चला गया, जो मुझे बहुत अच्छा लगा । मैंने अपने सभी ब्लोगर साथियों के लिए इसे ब्लॉग पर डाल दियाकैसा लगा .......... ? अवश्य बताएं

मरै; बैल गरियार, मरै वह अड़ियल टट्टू ,

मरै; करकसा नार, मरै वह खसम निखट्टू,

बाम्हन; सो मरि जाय; हाथ लै मदिरा प्यावै,

पुत्र; वही मरि जाय, जो; कुल में दाग लगावै,

अरु; बे नियाव राजा मरै, तबै नींद भर सोईये,

बैताल कहै बिक्रम सुनो; इतै मरे नहीं रोईये

No comments:

Post a Comment

हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें