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Tuesday, August 24, 2010

"गिर्दा का जाना" श्रद्धांजलि “ पुनर्जन्म फिर इसी पहाड़ में हो”

गिर्दा का जाना....जैसे एक मुकम्मल इन्सान का जाना हैमेरी नजर में वे एक वास्तविक "इन्सान" थेमैंने उनके गीतों से ही उन्हें जानाजब "उत्तराखंड" के लिए होने वाले आन्दोलनों में उनके जन गीतों को गाया जाता थाऔर उनमें से मुझे एक गीत तो अत्यंत अच्छा लगता है; घुनन मुनई ना टेक, ततुक नी लगा उद्येख, जैंता एक दिन तो आलो दिन यो दुनी में.... जैंता एक दिन तो आलो….. । ये गाना गाते हुए मेरा गला भर आता है

उन्होंने पीड़ित जन की आवाज को जितनी सहज भाषा में गाने के लिए बनाया उतना ही सहज जीवन भी जिया।उनके तेवर हर प्रकार की बुराई के विरोध में रहे चाहे सामाजिक बुराई हो राजनीतिक हो या सरकारी, इसीलिए वह लगभग सभी आन्दोलनों में भागीदार रहे । उनके गीतों को भी सभी ने अपने आन्दोलालों का हिस्सा बनाया अपने जनगीतों के माध्यम से वह हमेशा समाज को याद आते रहेंगे । मेरी तरफ से यही उनको श्रद्धांजलि है कि उनका पुनर्जन्म फिर इसी पहाड़ में हो और वह अपने जाने से पैदा हुए शून्य को स्वयं ही भरें ।

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