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Friday, February 5, 2010

"बस पुकारने को अब पिताजी नहीं रहे"


पिता का जाना; जैसे , खुले सागर में नाव से बिछ्ड़ जाना

तैरना आता है फिर भी; नाव का सहारा होता है,

बुरा लगता है उसका; हमसे दूर चले जाना।

उन्होंने ही संसार दिखाया,मुझे मेरा नाम बताया,

खाना-खेलना, बोलना-पढ़ना,चलना-उछलना,गिरकर संभलना,

उनके द्वारा ही संसार रूपी सागर में, मैं; तैरना सीख पाया

पिता का जाना, जैसे, भरे मेले में, अपना हाथ उनसे छूट जाना,

उन का जाना, जैसे, छतरी का अपने हाथ से छूट जाना।........


पिछला एक-डेढ़ माह कुछ इस तरह गुजरा कि शायद जीवन में भुलाये नहीं भूलेगापहले दिसंबर में हम सब दिल्ली गए, पिताजी से भी मिल कर आये थे, क्योंकि वह घर से अलग अपने बनाये मंदिर में रहते थे घर कभी-कभी आना होता था, तो उनसे मिलने वहीँ जाना पड़ता थाठीक-ठाक थे तीन दिन लगातार गया खुशामद भी करी कि अब घर से ही रोजाना आना-जाना कर लिया करो पर नहीं माने ,हम इकत्तीस तारीख को यहाँ वापस पहुँच गए सात तारीख को मैं हरिद्वार बाबा रामदेव जी महाराज द्वारा संचालित योगशिक्षक शिविर में चला गया, ऐसी ठण्ड और कोहरा मैंने पहले सुना ही सुना था देखा हरिद्वार में ही, वहां से चौदह को वापस गया थाकि सोलह को दिल्ली से छोटे भाई का फोन गया कि पिताजी को मूर्च्छा जैसी रही है हम उन्हें अस्पताल ले जा रहे हैं तुम भी जाओ शाम की गाड़ी से मैं चल पड़ा दूसरे दिन सुबह मैंने उन्हें अस्पताल आई. सी. यू . में बेहोश ही देखा ना उनके चेहरे पर कोई शिकन ना कोई कराह, ऐसा लग रहा था जैसे अभी कुछ देर में उठ बैठेंगे पर अट्ठारह की सुबह चिकित्सकों ने उन्हें वेंटिलेटर पर लगा दिया और दिन में हमारे रिश्तेदारों की सलाह से उनका अंतिम समय देख कर हमने उन्हें घर ले जाने का निर्णय लिया डॉक्टरों से बात की तो उन्होंने नानुकर के बाद हमसे उन्हें घर लेजाने के लिए कह दिया कि वेंटिलेटर वाली एम्बुलेंस लाओ, खैरघर पर आधे घंटे बाद ही पिताजी चिरनिद्रा में लीन हो गए

वे अठहत्तर वर्ष के थेअपने पीछे पत्नी चार बेटे दो बेटियों का भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं सभी अपने परिवारों में खुशहाल हैं

बस पुकारने को अब पिताजी नहीं रहे

1 comment:

  1. दुखद फुलारा जी , दिवंगत आत्मा को मेरी श्रदांजली ! यही जीवन का अंतिम सत्य भी है !

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