हम तो पता नहीं पिछले कितने वर्षों से हर बार बजट पेश होते ही अगले बजट की प्रतीक्षा करने लगते हैं। इस निराशा में, कि इस बार भी कुछ विशेष नहीं हुआ, और इस आशा में कि, शायद अगले वर्ष कुछ विशेष हो जाये।
ऐसा ही इस बार भी हो रहा है।
सरकार चाहे किसी की हो, बजट सबका एक जैसा ही रहता है। विरोधी, आलोचना ही करते हैं; पक्ष वाले समर्थन ही करेंगे।
कुछ नहीं ये भारत की साधारण जनता को मूर्ख बनाने का एक हथकंडा भर है।
और इन सबकी (नेताओं-अधिकारीयों-उद्योगपतियों की ) मिलीभगत है।
जो करना है या जो होना है वह निश्चित हो चुका है। इस सबसे जनता भी उदासीन हो चुकी है। शायद, इन "भारत भाग्य विधाताओं" के आगे हार चुकी है।
तभी, ये लोग बिलकुल बेशर्म हो चुके हैं, कि इन्हें कोई (स्वामी रामदेव जैसे) ललकारे
तबभीइनकेचेहरेपरझेंपनहींआती।
पर अब योग के योद्धा तैयार हो रहे हैं जो जनता को एक बार फिर सेनयी आजादी-नयी व्यवस्था के लिए तैयार करेंगे ।
(सरकारीकर्मचारियोंकेलिएवेतनबढानेकाप्रावधानहरछहमहीनेमेंहोनाचाहिए, बेशकआयकरसीमाडेढ़सेघटाकरएककरदो।वैसे इनका वेतन कितना ही कर दो पर पूरा नहीं पड़ता;).....................................................................................
आदरणीयवित्तमंत्रीजी , कृपयाहमाराप्रणामस्वीकारकरें।आशाहैआपस्वस्थहोंगे।वैसेआजकलनेताओंनेनाकमेंदमकररखाहोगा; क्योंकिबजटकासमयचलरहाहै।इसकारणआजकलतनावकुछ ज्यादा हो रखा होगा , कोई बात नहीं; बाबा रामदेव का प्राणायाम कर लेना उससे तनाव मिटता है। "बाबाकोसुननामतक्योंकिउन्होंनेआजकलस्वयंसरकारकीनाकमेंदमकररखाहै।
बाकि, बजट के लिए ज्यादा सोचने-समझने या तनाव लेने की जरुरत नहीं है , सबका जोर महँगाई कम करने पर है पर तुम महँगाई कम करने की कोई भी चिंता ना करना , क्योंकि अगर महँगाई कम हो गयी तो देश के अमीर लोग और अमीर कैसे होंगे। देशकीसम्रद्धिकोअमीरीसेहीतोनापाजाताहै; गरीबोंकोदेखकरकौनकहताहैकिहमारादेशआगेबढ़रहाहै।
उसके लिए महँगाई और बढे तो अच्छा है। ताकि गरीब लोगों का सारा समय अपने लिए दाल-रोटी-सब्जी जुटाने में ही लग जाये। बच्चेस्कूलनाजापायें; अमीरोंकीगाड़ियोंकेशीशेसाफ़करें। वैसे भी, स्कूलों में अध्यापक होते नहीं हैं; और जो खाने की व्यवस्था सरकार ने वहां की है केवल उसके लालच से वहां जाना उन्हें पसंद नहीं। क्योंकिउन्हेंअबचाउमिनऔरपिज्जाजैसाखानाभाने लगाहै( जोउन्हेंहोटलोंरेश्त्राओंकेबाहरजूठनमेंमिलजाताहै) । सो विदेशी कम्पनियों को इस क्षेत्र में लाने के लिए कुछ करना।
पेट्रोल-डीजल गैस इत्यादि के दाम तो बिलकुल कम ना करना इससे महँगाई कम होने का डर है। हाँ, कारों-मोटरबाईकों,कूलर- फ्रिज-ऐ .सीवबड़े-बड़ेमकानोंकेदामकमहोजाएँऐसीव्यवस्थाजरुरकरना।"इण्डिया" पर ही तो दुनिया की नजरहै, "भारत" का तो उच्च वर्ग और सरकार वैसे भी विरोधी है।
एकबातयादरखनाकिसानोंकोकिसीतरहख़त्मकरनाहै; उसका उपाय करना। अगर ये ख़त्म हो गए तो इनकी जमीन उद्योग लगाने व कालौनी बनाने के काम आएगी, वैसे लेने पर तो ये कभी-कभी अपने हितैसियों के भड़काने पर विरोध भी कर देते हैं। जैसे अभी पिछले दिनों कई जगह हो रहा था। इन किसानो को ख़त्म करने के लिए इन्हें कोई सुविधा , सब्सिडी इत्यादि का प्रावधान बजट में ना हो; बल्कि यदि पहले से भी कोई हो तो उसे बंद किया जाये।क्योंकिइन्होनेअपनेहितैसियोंकेसाथबी.टी. बैंगनकाविरोधकियाथा ,जिससेबहुराष्ट्रीयकम्पनियोंकेसामनेसरकारकीनाकनीचीहोगयीथी।इसलिए इन्हें सबक सिखाना अब तुम्हारे ही हाथ में है । ये ख़त्म होंगे तो विदेशों से आयत ज्यादा करना पड़ेगा; जिसमें सरकार के मंत्रियों-अधिकारियों को कुछ ज्यादा लाभ (कमीशन) होगा।
वैसे इनका वेतन कितना ही कर दो पर पूरा नहीं पड़ता; इसलिए रिश्वत का सरकारी करण करके इनकाक़ानूनी व सामाजिक डर ख़त्म किया जाना चाहिए। सरकारी भ्रष्टाचार भी मान्य किया जाये उसे कोई नाम दिया जाये जैसे कार्यकुशलताभत्तायाकुछऔर। सप्ताह में चार-पांच दिन का अवकाश होना चाहिए। अगरपति-पत्नीदोनोंनौकरीमेंहोंतोएककोघरबैठनेकीछुटमिलनीचाहिए।
नयी भर्तियाँ बिलकुल बंद कर देनीचाहिए। वर्तमान कर्मचारियों की सेवानिवृति आयु साठ के बदले सत्तर होनी चाहिए। पांच वर्ष पुराने कर्मचारियों को अपने कार्यालय के कार्य करने के लिए बेरोजगारों में से तीन- तीनहजाररूपयेमेंनौकरीपररखनेछूटहोनीचाहिए , इससेबेरोजगारीकासमाधानभीहोगा।
सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को तो एक दम बंद कर देना, वरना ये बड़े-बड़े अस्पताल क्या कमाएंगे। वैसे भी सरकारीडॉक्टरनेक्याइसीलिएलाखोंरूपयेखर्चकरकेडिग्रीलीहैकीवहसरकारीअस्पतालोंमेंगरीब-गुरबोंकोदेखताफिरेउसेसरकारकेवलमरीजकोरेफरकरनेकावेतनदे, वोभीप्रयाप्त। अन्य स्टाफ पर भी उसी के अनुसार व्यवस्था हो।
अब रही सब्सिडी की बात, तोबड़ीकम्पनियों कोदीजानेवालीसब्सिडीनाघटानाक्योंकिइनकेलाखोंकरोड़केमुनाफेमेंअगरकमीआगयीतोइनकेमालिकअपनेलिएऐशओआरामकेसाधन -भवनऔरजहाजकैसेखरीदेंगेअपनेबच्चोंकीशादियोंपरअरबोंरूपयेकैसेखर्चकरेंगे। और तो और चुनाव लड़ने के लिए भी पार्टियों को इन्होने ही तो आर्थिक मदद करनी है।
वित्त मंत्री महोदय सुझाव तो और भी बहुत से थे पर आपके पास समय नहीं होगा क्योंकि बजट का समय चल रहा है; मेरा पत्र बहुत लम्बा हो गया है फिर भी थोड़ा लिखा ज्यादा समझना,आपकोक्याकहूँआपतोसाक्षात्नाजानेक्या-क्याहै
दरअसल आज का आदमी स्वर्ग का सुख व नरक का दुःख भूल गया। उसे केवल पैसा ही याद रहता है। किसी रोग से ग्रसित व्यक्ति को उस समय नरक जैसी ही पीड़ा होती होगी जब वह अपनी इच्छा से ना उठ सकता ना बैठ सकता चलना फिरना तो दूर। अपनी बीमारी के कारण ना खायी जा सकने वाली वस्तुएंजब वह दूसरों को खाते देखता होगा। जब वह पीड़ा से कराहता होगा। परपैसेकेपीछेवहसबभूलजाताहै।