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Saturday, October 24, 2009

गुणाकर मुले को श्रद्धांजलि


बचपन से विज्ञान और अन्तरिक्ष विज्ञान के लेखों को हिन्दी में पढ़ना अच्छा लगता था उन लेखों को बड़े सरल ढंग से लिखा और समझाया हुआ होता था कि पढ़े बिना नहीं रहा जाता था। इतनी आसान हिन्दी और पढने में रोचकता होती थी। इन्हें लिखने वाले का नाम गुणाकर मुले था , जी हाँ था ! क्योंकि अब वह हमारी दुनिया से प्रस्थान कर गए। जब अखबार में समाचार पढ़ा तो ऐसा ही लगा जैसे अब हमें कौन उस तरह के लेखों को पढने के लिए देगा। खालीपन का अनुभव सा हुआ। पढ़ कर पता लगा कि आप राहुल सान्क्रत्यायन के शिष्य थे और पिचहत्तर वर्ष के हो गए थे। आपकी विद्वता का पता आपके लेखों और विषयों को पढ़ कर लगता था। आज के हिन्दी के पैरोकारों से अधिक, मुझे लगता है आपने हिन्दी के विस्तार के लिए काम किया और हिन्दी में विज्ञान जैसे विषयों पर लेखन करके विज्ञान को भी बच्चों के लिए रोचक बनाया।
ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति व आपके परिजनों को आपसे बिछड़ने का दुःख सहन करने की शक्ति दे।

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