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Friday, October 30, 2009

वो दिन

वो दिन कभी आएगा ?
जब भ्रष्टाचारी,बलात्कारी को म्रत्यु दंड मिलेगा.
दो माह के भीतर,
दहेज़ हत्या व भ्रूण हत्या और अन्य गंभीर अपराधी
फांसी पर झूलेंगे,
वो दिन कभी आएगा ?
जब दैनिक उपभोग की वस्तुएं जो जीने के लिए जरुरी हैं,
आधे मूल्यों पर मिलेंगी ,
चौंसठ प्रकार के टेक्स बंद कर, दो परसेंट के
एक "कर" से काम चल जाएगा,
वो दिन कभी आएगा ?
जब स्वदेशी शिक्षा-चिकित्सा-व्यवस्था-न्याय लागू होकर
ये अनुभव कराएँगे,
हम स्व तंत्र हैं हमारा स्वयं का राज है, ये सब होगा क्योंकि
भारत आजाद है
हाँ… आएगा….आएगा…आएगा।
वो दिन कभी आएगा ।

Tuesday, October 27, 2009

हाय रे गरीब आदमी

हाय रे गरीब(आम) आदमी…. बड़ा ढीठ है रे तू, कितना कुछ सह लिया पर, तू ख़त्म नहीं हुआ। इस देश की सब समस्याओं की जड़ तू ही है। सबसे ज्यादा संख्या में होते हुए भी, तू गरीब ही रहा क्योंकि बँटा रहा- एक नहीं हुआ। जातिवाद,प्रान्तवाद,वर्गवाद,सम्प्रदायवाद, सबका संचालक तू ही है। महामूर्ख तो इतना है कि नेता-अभिनेता,उद्योगपति-अधिकारी,
पंडे -पुजारी,मुल्ला -मौलवी,किसी के भी बहकावे में आ जाता है । हर बार अपने ही सर पर कुल्हाड़ी मरता है।
तू खाता-पीता
(गरीब नहीं) है तब भी मूर्ख ही है और गरीब है तो मूर्ख बने रहना तेरी मज़बूरी है। चुनावों में कुछ खा-पी कर वोट देना तेरे ही लिए घातक होता है, तुझे आज तक समझ नहीं आया। या जाति- धर्म के नाम पर वोट देकर कौन सा तेरा भला हुआ मुझे भी बताना। आरक्षण देने न देने के नाम पर जितना तू आपस में लड़ा और अपनी ही हानि की ,उससे तो कई गुना ज्यादा फायदा नेताओं ने उठा लिया, पर तुझे समझ नहीं आया। नेताओं ने जब चाहा तुझे लड़वाया, अधिकारियों ने जब चाहा तुझे लूटा , उद्योगपतियों ने तुझे लूटा , अभिनेता तो सिनेमा व विज्ञापन के नाम पर तुझे इतना लूट चुके हैं कि उनका स्वभाव ही बन गया है। इन्हीं की देखा देखी खिलाड़ी भी तुझे जान गए कि कितना मूर्ख है वो भी अपने खेल व विज्ञापनों से तुझे लूट रहे हैं। ये सब इतने शातिर हैं कि तेरी भाषा में बोलना तक छोड़ देते हैं, और तू इनके पीछे पागल होता घूमता है। अपने देश के सारे उद्योग-व्यापर तेरे ही भरोसे हैं क्योंकि सबसे बड़ी संख्या तेरी है। अपने देश के ही क्यों विदेशी भी तेरी मूर्खता देख कर तुझे लूटने यहाँ आ गए , एक दो नहीं, हजारों की संख्या में आ गए। तेरे नेताओं(जिनपर तू जान छिड़कता है) की मिलीभगत से ये विदेशी कम्पनियां न केवल तुझे लूट रहीं हैं बल्कि तेरी जड़ों (संस्कारों) को भी खोद रहीं हैं। इनके दलाल भी तेरे ही बीच से निकल कर चालाक हो गए और तेरी मूर्खता का लाभ उठाने लगे। पर तू नहीं समझ पाया। समझ नहीं आता तुझे मूर्ख कहूँ या भोला कहूँ क्योंकि तेरे इसी गुण के कारण भगवान् राम ने रावण पर विजय पायी थी , तेरे इसी गुण के कारण स्वंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों को खदेड़ा था पर तेरे इसी गुण के कारण सदियों से सब (जो थोड़ा सा चालक होता है) तेरे पर राज कर रहे हैं। तू अजर है- अमर है- अविनाशी है, सदियों पहले भी था-सदियों बाद तक भी रहेगा। और तुझे क्या कहूँ.... ?

Saturday, October 24, 2009

गुणाकर मुले को श्रद्धांजलि


बचपन से विज्ञान और अन्तरिक्ष विज्ञान के लेखों को हिन्दी में पढ़ना अच्छा लगता था उन लेखों को बड़े सरल ढंग से लिखा और समझाया हुआ होता था कि पढ़े बिना नहीं रहा जाता था। इतनी आसान हिन्दी और पढने में रोचकता होती थी। इन्हें लिखने वाले का नाम गुणाकर मुले था , जी हाँ था ! क्योंकि अब वह हमारी दुनिया से प्रस्थान कर गए। जब अखबार में समाचार पढ़ा तो ऐसा ही लगा जैसे अब हमें कौन उस तरह के लेखों को पढने के लिए देगा। खालीपन का अनुभव सा हुआ। पढ़ कर पता लगा कि आप राहुल सान्क्रत्यायन के शिष्य थे और पिचहत्तर वर्ष के हो गए थे। आपकी विद्वता का पता आपके लेखों और विषयों को पढ़ कर लगता था। आज के हिन्दी के पैरोकारों से अधिक, मुझे लगता है आपने हिन्दी के विस्तार के लिए काम किया और हिन्दी में विज्ञान जैसे विषयों पर लेखन करके विज्ञान को भी बच्चों के लिए रोचक बनाया।
ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति व आपके परिजनों को आपसे बिछड़ने का दुःख सहन करने की शक्ति दे।

कांग्रेस की जीत

आख़िर क्यों न जीतें.......? अंग्रेजों के ज़माने की पार्टी है ; अंग्रेजों ने बनाई – अंग्रेजों ने सिखाई,
"फुट डालो और फायदा उठा लो"
अंग्रेजों ने ही सिखाया है वो तो बीच में जरा कुछ समय के लिए राष्ट्रवादी भावनाएं....,
जातिवादी भावनाएं..... उफान मार गयीं; लेकिन उन सबको क्षेत्रवादी भावनाओं ने दबा दिया। दूसरा, व्यक्तिवादी पूजा केवल कांग्रेसी ही कर सकते हैं
जो आम भारतीयों के लिए अफीम का कम करता है। यही जीत का महा मंत्र है।

Thursday, October 22, 2009

कांग्रेसी की चिंता

ये क्या हो रहा है हाई-कमान को, क्यों कांग्रेसियों की जान सांसत में डाली हुयी है...?
बड़ी मुश्किल से
(महात्मा) गाँधी जी की सादगी से छुटकारा मिला था ,चैन से खाने-कमाने के दिन चल रहे थे, आराम करने के दिन आए थे , ये (मां-बेटे) एक और महात्मागिरी पर उतर आए। पुराने कांग्रेसियों ने अपनी जवानी सादगी के दिखावे में काटी अपनी इच्छाएं डर-डर कर नजरें बचाकर पूरी कीं। लेकिन अब ये संतोष था कि उनके बच्चे अपने अरमानों को पूरा करेंगे, खाने-पीने-रहने-पहनने-घूमने के मंहगे शौकों के करने का प्रचलन हो गया था जिससे उन्हें भी तृप्ति मिलती थी , आराम की राजनीती चल रही थी, खुले जंगल में जैसे पशुओं का ग्वाला पेड़ के नीचे आराम से सोया होता है उसे पशुओं के खाने-पानी और बचाव की विशेष चिंता नहीं होती वह अपनी सुविधा के हिसाब से जब मर्जी पशुओं को हांक कर जहाँ मर्जी ले जाता है ,ऐसे ही आम जनता को पशु की तरह समझ कर ये(नेता) बड़ी मस्त जिंदगी काट रहे थे। पर पता नहीं कांग्रेस हाई- कमान को क्या सूझी कि दोनों मां-बेटे अपनी लाईन से उतर गए हैं, न केवल लाईन से उतरे हैं बल्कि पार्टी जनों को लाईन से उतरने का उपदेश दे रहे हैं।
ऐसा कैसे चलेगा ये तो बहुत बड़ी चिंता की बात हो गई है ,
अब तो खतरा यहाँ तक बढ़ गया है कि कहीं राहुल गाँधी अपनी संपत्ति (चल-अचल,जिसका पता ही नहीं है) देश हित में दान देने को न कह दें, तब इनका क्या होगा। और ऐसा हो सकता है क्योंकि अभी तक तो केवल मीडिया ही उनके नाम की माला जप रहा है (क्या पता कुछ दिया हो) जनता विशेष भाव नहीं दे रही तो जनता का भाव पाने के लिए वह जनता(देश) को भी कुछ देदें महात्मा गाँधी के पदचिन्हों पर ही अपने पग धरें। तब तो बहुत बड़ी परेशानी होजायेगी। अन्य पार्टी वाले भी बड़े सावधान और सहम गए हैं।
उन्हें भी ये चिंता सता रही है कि कहीं जनता इन बातों में आ गई तो फ़िर से पचास-साठ साल के लिए कांग्रेस का राज हो जाएगा।

Sunday, October 18, 2009

साइंटीफिक दिवाली

नया जमाना है, विज्ञान का (माफ़ करना) साइंस का। हिन्दी में सबको अच्छा नहीं लगता इसलिए अंग्रेजी को हिन्दी में लिख देते हैं।साइंस ने कितनी प्रोग्रेस कर ली है यह इस बार दिखा; या ये कहना चाहिए कि सरकार को इस बार दिखा, क्योंकि ये तरक्की तो विज्ञान ने दशकों पहले कर ली थी। अब तो आम आदमी ने इस विज्ञान का उपयोग करना सीख लिया है। अगर विज्ञान इतनी प्रोग्रेस नहीं करता तो शायद हम आज खोये की मिठाईयों की सूरत और नाम भी भूल चुके होते स्वाद तो भूल ही गए हैं। मिठाई तो छोड़ो, गाय व भैंस का शुद्ध दूध का स्वाद शायद ही किसी को याद हो, हाँ रंग सफ़ेद होता है यह हमें विज्ञान के उपयोग से बने दूध से ही पता लगता है। अब ये बात और है कि इस आधुनिकों के विज्ञान में ये कमी रह गई कि इन्होने दूध और खोया अखाद्य वस्तुएं मिला कर बनाया फ़िर भी हम तो इसे विज्ञान की उपलब्धि ही कहेंगे कि उसके द्वारा अखाद्य वस्तुओं को मिला कर खाद्य वस्तु बना ले रहे हैं । वरना एक जमाना था कि इसको पाप समझते थे और इसका फल दूसरे जन्म में मिलने से डरते थे ,इस डर को आज के विज्ञान ने ख़त्म कर दिया ये क्या कम उपलब्धि है । अभी तो देखते रहो , ये आधुनिकों का आधुनिक विज्ञान क्या-क्या दिन दिखलायेगा ,जिसे कानून भी नहीं रोक पायेगा । खैर इनसब बातों के बीच अपने पौराणिक पर्व दीपावली की शुभकामनायें तो देना भूल ही गया सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें , इस मिलावटी, बनावटी, दिखावटी और नकली विज्ञान के ज़माने में भी हमारे पौराणिक विज्ञान की सार्थकता को सिद्ध करते हमारे त्यौहार हमारा उत्साह अनंत समय तक बढ़ाते रहें।

Wednesday, October 14, 2009

ओबामा को नोबल

जिसके पास लट्ठ उसकी भेंस , क्या कर लोगे…? हैं; अभी तो शायद साल पूरा नहीं हुआ। वो चाहें तो अगले कुछ सालों तक लगातार ये पुरस्कार लेते रहने का विश्व कीर्तिमान बना सकते हैं।
वैसे समझ नहीं आता कि अमरीका से कोई भी क्यों पंगा ले लेता है, वो
दुनिया का भाई (दादा) है उससे डर कर रहें तो अपने आप शान्ति बनी रहेगी । क्यों उसका विरोध करने लायक शक्तिशाली होना चाहते हो , उसे ही शक्तिशाली रहने दो।

Tuesday, October 13, 2009

नक्सलवाद

जैसे चम्बल के डकैत वैसे ही नक्सलवादी, हमने तो ज्यादातर डकैतों के बारे में सुना है कि इनपर या इनके परिवार पर दबंगों या अधिकारियों द्वारा मिल कर अत्याचार होने से बदला लेने के लिए सबसे आसान तरीका डकैत बन जाना था। जब डकैतों को राजनीतिक संरक्षण मिलने लगा तो ये समस्या बहुत हद तक कम हो गई ।
नक्सलवाद पनपने के पीछे भी यही कारण हैं ,बस,ये लोग एक समाज विरोधी राजनीतिक विचारधारा (माओवादी या उग्र कम्युनिज्म )से अपने साथियों के मन में देश व सरकार और उसके कर्मचारियों के प्रति विरोधी भावना भर देते हैं , क्योंकि सरकार के कर्मचारी आमतौर पर साधारण जनता के प्रति सही व्यवहार नहीं करते। दूसरा, सरकार के नेता- अधिकारी- कर्मचारी का गठजोड़ और इनको पोषने वाले कुछ बेईमान उद्योगपति और ठेकेदार, मिलीभगत से मालामाल होते जा रहे हैं जनता को खाने के लिए सूखी रोटी भी नहीं मिल पा रही है ; तो थक-हार कर उसने एक न एक दिन विरोधी होना ही है।
नक्सलवाद समाप्त हो सकता है
अगर हमारी राजनीतिक पार्टियाँ इनके नेताओं को अपना सदस्य बना ले और चुनाव लड़ने का अवसर दे ,दूसरा, कुछ कठिन उपाय है कि भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी को तुंरत ख़त्म करे, तीसरा कुछ और कठिन उपाय है कि गरीबी अमीरी के बीच की खाई को कम किया जाए जिसके लिए, ऐसे अमीरों से जो बिना कुछ किए कराये ही करोड़ों अरबों के मालिक बनगए हैं उनसे आवश्यकता से अधिक धन सरकार ले ले और बिना भ्रष्टाचार के गरीबों के हित में लगाये। संपन्न लोगों को भी अपनी सम्पन्नता का दिखावा नहीं करना चाहिए क्योंकि ये भी आग में घी का काम करता है । वरना ये समस्या यूँ ही बढती रहेगी ।