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Thursday, July 23, 2009

कलियुग में भी


बचपन में हमारे घर में एक धार्मिक पत्रिका आती थी “कल्याण”; पिताजी उसे पढ़ते थे और संभाल देते थे । जब मैं बड़ा हुआ, कुछ पढ़ने लायक भी हो गया तो वह पत्रिका मुझे भी पढ़ने में अच्छी लगने लगी, क्योंकि उसमें कई प्रेरक कहानियाँ व प्रसंग होते थे । साथ ही धर्म के विषय में ज्ञानवर्धक लेख व जानकारी भी होती थी।
पुरानी प्रतियाँ पढ़ कर, जो 1947 के आस-पास की होती थीं , लगता था कि आजादी के आन्दोलन में भी इस तरह की धार्मिक पत्रिकाओं का योगदान कम नहीं रहा होगा ,जो ,चरित्र निर्माण, संस्कारवान समाज,धर्म-आध्यात्म, देशप्रेम, स्वाभिमान ,सामाजिक उत्थान,नैतिक मूल्यों के लिए समर्पित थी।
ये पत्रिका छपती थी, “गीताप्रेस गोरखपुर” से ।
“गीताप्रेस,गोरखपुर”

अभी तक 45.45 करोड़ से अधिक पुस्तकें जिनमें 8.10 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता 7.5 करोड़ रामचरित मानस कुल 1500 प्रकाशनों में लगभग 650 पुस्तकें, भारत की लगभग सभी भाषाओँ में प्रकाशन ,उत्कृष्ट छपाई ,बढ़िया कागज ,बेहतरीन फोटो- कवर व जिल्द ।
और मूल्य, नाम मात्र का , आख़िर कैसे चलता होगा ये सब,कर्मचारी भी होंगे अधिकारी भी होंगे ,ये संस्था चंदा या दान नहीं लेती इसके किसी भी ट्रस्टी का संस्था के

साथ किसी प्रकार का स्वार्थ या आर्थिक सम्बन्ध नहीं है । सोलह शाखाओं,तीन बिक्री केन्द्र,तीस स्टेशन स्टाल और हजारों निजी दुकानदारों के माध्यम से कार्य करने के लिए और छापाखाना में काम करने वाले सब मिला कर अच्छी-खासी संख्या कर्मचारियों की होगी पर आज तक कभी न तो हड़ताल के बारे में सुना न कभी घाटे के बारे में सुना।( भगवान् किसी की नजर न लगे )।
क्या सरकार के कर्मचारियों के लिए ये उदाहरण नहीं हैं स्वयं सरकार के लिए उदहारण नहीं हैं या घाटे में जा रही उन् निजी कम्पनियों के लिए उदहारण नहीं है जिनके लिए आए दिन पैकेज घोषित करने की मांग की जाती है या पैकेज घोषित किए जाते हैं। न किसी सेज की जमीन इन्होंने खरीदी न किसी का बुरा किया ।
हाँ नास्तिकों, कम्युनिष्टों, प्रगतिशीलों और बौद्धिक नक्सलवादियों की आँख में जरुर खटकते होंगे ।


दरअसल आज एक समाचार पढ़ा कि मंदी के इस दौर में भी “गीताप्रेस गोरख पुर” को कोई असर नहीं पड़ा ।
1923 में स्थापित धार्मिक साहित्य का प्रकाशन सस्ते से सस्ते मूल्य पर प्रामाणिक और उत्कृष्ट पुस्तकों को लोगों को उपलब्ध करवाना निरंतर इसी कार्य में लगे रहना ,इस कलियुग में भी, क्या अपने-आप में आश्चर्य चकित करने वाली बात नहीं है।
ऐसा आदर्श उदाहरण जिससे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए ।

2 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आपने.....शब्दशः सहमत हूँ आपसे.....

    आज भी मुझे कल्याण के समकक्ष ठहरता कोई पत्रिका नहीं दीखता....

    वर्तमान समय में आपका यह आलेख जो की इतना समीचीन उदहारण प्रस्तुत करता है, अत्यंत सराहनीय है....

    आपका साधुवाद...

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  2. सहमत हूं आपसे .. और गीता प्रेस को उसके इस समाज सेवा के कार्यों के लिए प्रशंसा तो करनी ही पडेगी।

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