ताजा प्रविष्ठियां

Wednesday, July 15, 2009

डॉक्टरों की हड़ताल

चिकित्सा कार्य अब पहले जैसा “सेवा कार्य” नहीं रहा। "व्यवसाय बन गया है"।
आरामपसंद जीवन पद्दति और आकस्मिक दुर्घटनाओं के कारण इनका व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है। देश-विदेश में भरपूर रोजगार के अवसर होते हैं,
इसीलिए ये लोग पढ़ने के लिए लाखों रूपये खर्च करने से नहीं कतराते । क्योंकि डॉक्टर बनने के बाद तो उससे कई गुना अधिक कमाई होनी है। सरकारी अस्पतालों में नौकरी करने का मतलब वह सरकार और जनता पर अहसान कर रहे हैं।
ऐसे में सरकारी डॉक्टरों की हड़ताल ,उस पर सरकार द्वारा उन्हें धमकाना कि नौकरी से निकाल देंगे “बकरी का ऊंट पर रौब ज़माने”जैसा लगता है। सरकार को सोच-समझ कर बोलना चाहिए ,क्या होगा, नौकरी से निकाल कर ? भूखे मर जायेंगे क्या? फ़िर हड़ताल करने का अधिकार सरकार ने ही तो उन्हें दे रखा है।बीमार मरें या तड़पें किसी को क्या। “बीमार गरीब आदमी”,होता ही मरने के लिए है ,और अमीर आदमी किसी भी बड़े अस्पताल में "इन्हीं" डॉक्टरौं से इलाज करवा लेता है। तो; ये केवल सरकार का दिखावा है, अगर धमकाना ही है तो इनकी डिग्री निरस्त करने को कह कर धमका सकते हैं पर सरकार ऐसा नहीं करेगी क्योंकि अधिकतर इन्ही के नेताओं के सगे सम्बन्धी डॉक्टर होंगे। रही नैतिकता की बात तो आज नैतिकता रही किसमे है जो दूसरे से नैतिकता की उम्मीद की जाए।
आखरी और खरी बात ये, कि जिनसे कोई काम नहीं होता है, सरकारी नौकरियों में , वही हड़ताल करते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि
"खाली दिमाग शैतान का घर" होता है।
पिछले कुछ समय से देखा जाए तो सबसे ज्यादा हड़ताल सरकारी क्षेत्र में मास्टरों और डॉक्टरों की हो रही है ,दोनों ही मामलों में एक बात गौर करने वाली है कि न मास्टर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं न डॉक्टर अपने सम्बन्धी का इलाज सरकारी अस्पताल में कराते हैं। यही बात नेताओं और अधिकारीयों पर लागू होती है।

1 comment:

  1. शंकर जी नमस्कार आपका कमेन्ट पढ़ा अच्छा लगा ,लेकिन अच्छा सिर्फ इसीलिए लगा की आपने पढ़ा ,बाकि हमने जो लिखा है शत प्रतिशत रामदेव जी के आश्रम का हीं है ,लेकिन मुझे अच्छा लगा और हमने लिख दिया सोचा कुछ तो अच्छा होगा और अगर एक भी आदमी स्वदेशी अपना ले तो मैं ये समझूंगा की मेरी जिंदगी का कुछ तो मतलब निकला ,वैसे मैं पेशे से पत्रकार हूँ और सुधार की हीं बात करता हूँ .धन्यवाद शंकर जी नमस्कार आपका कमेन्ट पढ़ा अच्छा लगा ,लेकिन अच्छा सिर्फ इसीलिए लगा की आपने पढ़ा ,बाकि हमने जो लिखा है शत प्रतिशत रामदेव जी के आश्रम का हीं है ,लेकिन मुझे अच्छा लगा और हमने लिख दिया सोचा कुछ तो अच्छा होगा और अगर एक भी आदमी स्वदेशी अपना ले तो मैं ये समझूंगा की मेरी जिंदगी का कुछ तो मतलब निकला ,वैसे मैं पेशे से पत्रकार हूँ और सुधार की हीं बात करता हूँ .धन्यवाद

    ReplyDelete

हिन्दी में कमेंट्स लिखने के लिए साइड-बार में दिए गए लिंक का प्रयोग करें