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Sunday, June 21, 2009

ये पता नहीं क्या है

जी हाँ मुझे नहीं पता कि ये कविता है,गजल है,नज्म है या शेर । जो इस विषय में जानते हों मुझे भी बताना। मैंने तो हालात को देख कर जो मन में आया लिख दिया ।
हाल ऐ गुलिस्तां जो अब है ,
सोचता हूँ कुछ वक्त बाद क्या होगा ॥
हर शै जहरीली हो गई ,
(जहर)हद से पार हुआ तो क्या होगा ॥
सो गई इंसानियत ऐ आदम ,
(इंसानियत)ख़त्म हुई तो क्या होगा ॥
अय्यास हुए हुक्मरां जिस वतन के ,
अवाम न जागी तो क्या होगा ॥
वैसे तो पार हो गई कई हदें दोस्तो,
आखिरी हद पार हुई तो क्या होगा॥

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