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Friday, June 19, 2009

चित्रकूट और लालगढ़ मुठभेड़

एक डकैत-चार सौ (+) पुलिस वाले और पचास घंटे,तीन शहीद,
डकैत फ़िर भी भाग निकला ।( आख़िर में मारा गया)।
समझ नहीं आया कि किसका प्रशिक्षण अच्छा है,पुलिस का या डकैत का। ऐसा ही नक्सलवादियों और सुरक्षा बलों में हो रहा है।
अगर कानून का दुरूपयोग नहीं होता तो नक्सलवाद पनपता ही नहीं ,अभी भी अगर कानून का सही उपयोग(दुरूपयोग नहीं) किया जाए तो नक्सलवाद,माओवाद से निपटा
जा सकता है ।
लेकिन वर्तमान मुठभेड़ में इन्हें (नक्सलियों-माओवादियों को)वैसे ही ख़त्म
करके दिखाओ। जैसे श्री लंका ने लिट्टे को किया। अगर इन्होंने महिलाओं व बच्चों को
ढाल बना रखा है तो
सरकार को भी इनके समर्थक नेताओं को सुरक्षा बलों के
आगे लगा कर ढाल की तरह इस्तेमाल करना चाहिए।

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