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Saturday, May 23, 2009

कई दिनों बाद

बन गई सरकार
हम रहे बेकार,
पिछले कुछ दिनों
से मेरे या…..र
हमारे यहाँ
बिजली और इंटरनेट
दोनों होगये बेकार
हवाई दुनिया से
न रहा कोई सरोकार
अब,

बन गई सरकार
सरकारी कर्मचारी
आलस छोड़ कर ,फ़िर,
हो गए तैयार
हमारे हाथ में तो,
कुछ नहीं,

पर,सोचा,
आप सब को बता दें ,
कितने लापरवाह

होते हैं
कर्मचारी

जब ढीली होती है सरकार .

चुनाव का सबक
जब नेता आम जनता से दूर हो जाते हैं,(केवल अपने व अपनों के हो जाते हैं)
तो जनता उन्हें अपने से दूर कर देती है। ( देर से अक्ल आती है पर दुरुस्त आती है)
कांग्रेस
कांग्रेस एक स्वामी.. भक्त पार्टी है
(स्वामी एक ही है बाकि भक्त हैं)

भा.ज.पा
भाजपा कई स्वामिभक्त पार्टी है
(इसमें सभी स्वामी हैं)
कम्युनिष्ट
कम्युनिष्ट तो बिना स्वामी और भक्तों की पार्टी है
(ये स्वामी और भक्त वाली थ्योरी को ग़लत मानते हैं)
आम जनता
आम जनता ने एक स्वामी भक्त पार्टी को अपना मत दिया,कई स्वामी भक्त पार्टी को अर्ध मत दिया , बिना स्वामिभक्त
पार्टी को अल्पमत दिया । जातिवादियों, इलाकावादियों सौदेबाजों को खारिज करना शुरू कर दिया।

चुनाव २००९
सबके कयास फ़ेल , कईयों की अभिलाषा धूल में मिल गई।
पर एक बात बहुत अच्छी हूई कि भारत की जनता ने दो दलीय
व्यवस्था की तरफ़ अपना रुझान दिखा दिया है।

सौदेबाजों की मुट्ठी से अब रेत फिसलती रहनी चाहिए,
अगली बार के चुनाव के लिए कुछ ऐसी नजीर बननी चाहिए।

सुझाव
इसके लिए दोनों मुख्य दलों को पॉँच साल तक ऐसे प्रयास
करने चाहिए
१.कांग्रेस, भाजपा के जितने भी राष्ट्रीय मुद्दे हैं उन्हें अपना ले।( क्योंकि उन मुद्दों पर भाजपा को भी बहुत वोट मिले हैं )
कांग्रेस के स्वामी सोचें अगर वे मुद्दे अपना लेंगे तो उनकी सीटें कम नहीं पड़ेंगी।
२.भाजपा को कांग्रेस के मुद्दे घोषणा पत्र के अनुसार लागु करने के लिए दबाव बनाये रखना चाहिए ।
बाकि बाद में,
“पढने के लिए धन्यवाद”।

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