ताजा प्रविष्ठियां

Tuesday, March 31, 2009

“अथ नवरात्र व्रत-कथा”

आज कल मौसम बदल रहा है।
हमारे ऋषियों(वैज्ञानिकों) ने
शायद इसी बदलाव को देखते हुए
नव वर्ष इसी समय लागू किया,
एक काम और करा नवरात्र मनाने की
परम्परा भी बनाई और नौ दिन उपवास
करने को प्रेरित भी किया क्योंकि इस समय
ऋतु परिवर्तन के कारण व पेड़-पौधों में
नवांकुर व फलों के बौर आने के कारण,
वातावरण में कई प्रकार के कीटाणु हो जाते हैं ,
सर्द और गर्म मौसम का संधिकाल होने से भी,
बीमारियाँ होती हैं, शरीर भी इस परिवर्तन के
कारण ज्यादा संवेदनशील हो जाता है, यदि खानपान
में सावधानी न बरती जाए तो कोई भी अस्वस्थ हो जाए।
शायद इसीलिए वर्ष में दो बार, मुख्य ऋतू परिवर्तन
के दिनों में नवरात्र मानाने की परम्परा बना दी।
और नवरात्रों में उपवास रख कर मन को भक्ति-भावः
में लगा कर(न तामसी पदार्थ खाये जायें न तामसी
विचार मन में आयें)अपने को स्वस्थ रखा जा सकता है।
“इति नवरात्र व्रत-कथा"

शिव सेना का विरोध

कसाब के वकील का विरोध
या
कसाब का बचाव।
वकील न होने पर
मुक़दमे में देरी ही होगी
और कुछ नहीं होगा।

लोकतंत्र की पोल

भ्रष्टाचार कम करना है तो,
नेताओं
(सांसद,विधायक व अन्य)
का खर्चा-पानी (वेतन-भत्ते)
बंद कर दो,
इनके अधिकार
भी इनको न दो,
पंचायत(प्रधान) से
राष्ट्रपति तक को
चुनने का मौका
जनता को दो
भ्रष्टाचार के साथ ही
अपराध भी कम हो जायेंगे।

तब,
कोई भी नेता नहीं चाहेगा
कि उसका बेटा या बेटी नेता बने,
इस लोकतंत्र की पोल खुल जायेगी।
कौन कितना जनसेवक है
दुनिया जन जायेगी।।

Sunday, March 29, 2009

हिंदू-सभ्यता

हाँ, मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ,
भारत मेरा जन्म स्थान,भारतीय मेरी पहचान है।
कभी आर्यावर्त के कारण आर्य ,
और अंग्रेजों के समय से इंडियन भी मैं ही हूँ ,
मैं प्रथम हूँ, प्राकृतिक हूँ,सास्वत हूँ॥

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ,
मेरे पूर्वजों ने मुझे वैदिक साहित्य,रामायण
महाभारत और गीता जैसे कई ग्रन्थ दिए, और,
श्रीराम,कृष्ण,महावीर,गौतम बुद्ध,गुरु गोविन्द सिंह
जैसे कई चरित्र दिए,अनुसरण करने को,

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ,
मेरे पूर्वजों ने कभी भी मेरे विस्तार के लिए,
किसी को प्रलोभन नहीं दिया न किसी के प्राण लिए,
बल्कि,अपने पर हमला करने वालों के कई खून माफ़ किए
यही हमारे महापुरुषों ने उपदेश दिए।

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
दुनिया के सभ्य होने से पहले सुसंस्कृत और सभ्य हूँ,
नारी रूपी आदि शक्ति, का उपासक हूँ,
सीता-सावित्री,मैत्रेयि,कात्यायनी,मीरा और लक्ष्मीबाई जैसे
चरित्रों में सबके लिए आदर्श चरित्र मानता हूँ।

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
सारे संसार में केवल मेरी ही अवधारणा है,
प्रकृति और पर्यावरण का उपासक भी केवल मैं ही हूँ,
मैं सम्पूर्ण हूँ मुझ में सब,सब में मैं हूँ।

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
प्राकृतिक हूँ इसलिए सब में मेरा ही अंश है,
मैं सभ्यता हूँ मैं ही संस्कृति और धर्म हूँ ,
जिन्होंने मुझे जाना उनके अनुसार मैं ही,
सम्पूर्ण चराचर जगत का मर्म हूँ।

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
पृथ्वी पर पाप,अनाचार,अत्याचार न बढ़ें
इसलिए पाप-पुण्य और पुनर्जन्म भी मेरी अवधारणा है,
अमर होते हैं आत्मा और परमात्मा मैंने ही सिद्ध किए,
अमरत्व के लिए न जाने कितने सूत्र दिए॥

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
मैं मूर्त और अमूर्त दोनों का उपासक हूँ
मानूं तो पथ्थर और कण-कण में भगवान मानूं,
न मानूं तो, सारी दुनिया को श्मशान मानूं।
हाँ सच, मैं स्वतंत्र हूँ, बाध्य नहीं हूँ ,

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
गीता,गंगा,गाय और गायत्री मेरे लिए पूजनीय हैं
मैं श्रद्धा हूँ पर तार्किक हूँ, मैं मार्मिक हूँ,
संवेदनशील मैं,चिन्तनशील, मैं, सहनशील भी हूँ,
इसी लिए आदि से अनादि कि ओर निरंतर गतिशील भी हूँ।

हाँ मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूँ।
मातृ देवो भव-पितृ देवो भव आचार्य देवो भव और,
अतिथि देवो भव, गुरु: ब्रम्हा,गुरु: विष्णु गुरु: देवो महेश्वर: ,
केवल मेरी ही मान्यताएं हैं मैं पारंपरिक भी हूँ,

वोट.. यानि समस्या की जड़

वोट दो – वोट दो
वोट क्यों दो, कोई नहीं बता रहा।
वोट किसे दो, भी कोई नहीं बता रहा।
बताएं भी कैसे,
वोट देने लायक कोई हो तो बताएं।
वोट… यानि समस्या की जड़।
पर समस्याओं का हल भी यही है।

सुना है वोट प्रतिशत बढ़ने के लिए
करोड़ों रुपया खर्च हो रहा है।
आने वाले समय में ये भी समस्या बन
जाएगा।( घोटाले के रूप में)
सोचो, जब केवल पचास-साठ प्रतिशत मतदान से
देश का ये हाल है, तो, सौ प्रतिशत मतदान होगा
तो क्या होगा ?
(प्रगति वाले प्रगति समझें दुर्गति वाले दुर्गति)

Friday, March 27, 2009

नव-वर्ष

आज हमारा संस्कृतिक नववर्ष है,
यही वास्तविक और वैज्ञानिक भी है।


“आप को हार्दिक शुभ-कामनाएं”

नववर्ष आपको-आपके परिवार को
मंगलकारी हो।

जैसे प्रकृति में चहूँओर नूतन-छाया,
नवपल्लव,नवपुष्प,नवजीवन आया,
आपके जीवन में भी इसी तरह का संचार हो,
आने वाले वर्षों की संख्या कई-कई हजार हो।

Wednesday, March 25, 2009

दो सौ साल बनाम साठ साल

अंग्रेज भारत पर दो सौ साल राज कर गए,
पर, उनहोंने जो चाहा था ,
हमारे पूर्वजों ने नहीं होने दिया ।
संघर्ष किया अंग्रेजों को भगा दिया,
दो सौ साल में जो हमारे पूर्वजों ने नहीं होने दिया,
हमने पिछले साठ साल में दो सौ गुना ज्यादा कर दिया ।
तो फ़िर, हमारे पूर्वज ग़लत थे या हम ?
इस सवाल ने मुझे परेशान कर दिया ।

अगर अंग्रेजों की बनाई कानून व्यवस्था
राज करने की नीति,शिक्षा आदि नहीं बदलनी थी तो,
हमारे पूर्वजों ने बलिदान क्यों दिया ?
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता,
आदमी
मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने
और
कुछ नहीं बोलने पर
आदमी
मर जाता है।
उदय प्रकाश की लिखीं
ये पंक्तियाँ मैंने उत्तराखंड की पत्रिका
रीजनल रिपोर्टर में पढीं सोचा ब्लोगरों के
लिए भी लिख दूँ ।
तभी मेरे मित्र जोशी जी आ गए उनहोंने
चार लाईन और जोड़ दी
कि
जो कुछ नहीं पढता
जो कुछ नही लिखता
जब लिखता नहीं
जब पढता नहीं
आदमी मर जाता है।

Tuesday, March 24, 2009

ग्लोबल वार्मिंग

"ग्लोबल वार्मिंग से से धरती का अस्तित्व खतरे में”
धरती का अस्तित्व खतरे में नहीं होगा,
धरती अपने को ठीक करने में स्वयं सक्षम है।
पर उसके सुधरने में हमारा (इस पर रहने वाले)अस्तित्व
खतरे में आ जाएगा।

“पाक के ब्लौगरों की चिंता”

वरुण गाँधी पर पाकिस्तान वाले टेंशन न करें,
हिन्दुओं के किसी भी धर्म ग्रन्थ में “जेहाद” की
शिक्षा नहीं दी गई है।
हमारा सिद्धांत “जियो और जीने दो”रहा है,
इसी का खामियाजा हम भुगत रहे हैं।
कोई तलवार से डरा गया कोई लालच से बहला गया।
आज नेता और मीडिया वाले बहका रहे हैं।

थाली के बैंगन

या बेपेंदी के लोटे”
चुनाव से पहले लुढ़क-पुढक रहे हैं,
अपनी "दूरदृष्टि" से चुनाव बाद अपना फायदा देख रहे हैं।
चुनाव बाद फायदा देख कर अटक जायेंगे,
ऐसे ही इनके वोटर केवल जाति के आधार पर
वोट देकर इनको भूल जायेंगे।
फ़िर, पॉँच साल तक ये,और इनके स्वामिभक्त चमचे
मौज उडाएंगे।
अगले चुनाव में फ़िर अपने वोटर के पास जायेंगे,
अगर वोटर मुहं न लगाये तो शराब पिलायेंगे,
कुछ रुपये उनकी जेब में और साडी घर भिजवाएंगे
बस, वोटर को अपने भगवान इन्हीं में नजर आयेंगे,
पिछले कई सालों से ये अपनी दाल यूँही गला रहे हैं,
अपनी-अपनी जातियों के दम पर ये, पूरे देश को मूर्ख
बना रहे हैं
न अपनी जाति वालों का, न देश का, केवल अपना भला कर पाएंगे,
वास्तव में, विचारधारा केवल दो हैं देश में, देश की जनता में,
भा.ज.पा.और कांग्रेस ।
चुनाव से पहले ये, “थाली के बैंगन” उन्हीं को गरियायेंगे,
चुनाव बाद उन्हीं से हाथ मिलायेंगे,स्वार्थ इनका,पर ये देश का
भला बताएँगे,मौका परस्ती की ऐसी मिसाल क्या आप कहीं और पाएंगे
,
दोस्तों, मैं तो चाहता हूँ, पर भा.ज.पा.-कांग्रेस वाले क्या चाहेंगे ?
कि इन बेपेंदी के लोटों के खिलाफ और देश हित में ये दोनों एक हो पाएंगे।

एक राष्ट्रीय सरकार बनायेंगे ।

आई.पी.एल. विदेश में होंगे

वैसे भी विदेशी(खिलाड़ी) हमारे यहाँ आने से डर रहे थे।
आयोजकों-मालिकों(सॉरी)फ्रेंचायजियों को नुकशान न हो जाए
देश की साख और भावनाओं को नुकशान हो,तो,हो,
खिलाडिओं, उनके मालिकों और आयोजकों को नुकशान नहीं होना चाहिए।

लगता है आई.पी.एल.वालों के भाग से छींका टुटा है, जो चुनाव हो रहे हैं।
होने दो विदेश में केवल घाटा ही होगा।यहाँ से ज्यादा दर्शक और कहीं
नहीं मिलने।

Monday, March 23, 2009

वंदेमातरम

वन्देमातरम - इन्कलाब जिंदाबाद।
शहीदे-आजम भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को कोटि-कोटि नमन,
जिस उम्र में वह अंग्रेजों से लड़ने निकल पड़े थे,
उन संस्कारों को,उस शिक्षा को,उन माता-पिता,उस मिटटी को शत-शत नमन।

एक आज का युवा है जो नशे-वासना में स्वयं को तो भूला ही ।
अपने संस्कार,अपनी मिटटी, माता-पिता,वतन और भूल गया अपनी हस्ती भी॥


फ़िर भी ऐसे बहुत लोग हैं जिन्होंने अभी शहीदों की यादों को नहीं भुलाया।
नहीं भूले संस्कार,अपनी मिटटी और माता-पिता,गुलाम मानसिकता को नहीं अपनाया॥

उन लोगों को भी कोटि-कोटि साधुवाद व नमन।

१५ अगस्त १९४७ को हम स्वतंत्र तो हुए,पर केवल शासक बदले।

Sunday, March 22, 2009

कलियुग.....कब होगी तेरी इति

हे कलि के युग,अब तो बता दे, कब होगी तेरी अति।
और क्या-क्या करवाएगा समाज में, कितनी करेगा और क्षति॥
भ्रष्टाचार,अन्याय,अत्याचार,अनैतिकता की पराकाष्ठा।
कब पाप का घड़ा भरेगा,गागर छलकेगी, कैसे होगी तेरी इति॥
हे कलि के युग…......

वीर भोग्या वसुंधरा और धीर ने धीरज धरा !
वीर की नैतिकता  भौतिकता में बदली धीर ने धीरज धरा ,
हे कलि के युग तेरा मन फिर भी न भरा;
मानव मन छोड़ रहा आस्था !  
और कितना समय है तेरा ? और बढ़ा अपनी गति ,
हे कलि के युग .........    
जा शीघ्र जा कुछ तो रहने दे नवयुग आने को ; सभी को न खा !
नवयुग में नव जीवन को कदाचित मिल भी जाए स्वच्छ जल और हवा 
तो भी पड़ती है स्वस्थ सबल संस्कारित उन्नत बीज की आवश्यकता ,
अभी तो संस्कार, केवल छोड़े हैं मानव ने, कहीं भूल ही न जाए ,
क्योंकि मरी गई है मति ।
हे कलि के युग ………
जाना तो है सभी को, अमर कोई भी नहीं ,जाना है तुझे भी ,
अमर है तो स्वयं अमरत्व , या फिर काल की गति 

इतना उच्श्रंखल भी न हो कि मानव भी भूल ही जाए मानवता,
मनुष्य कम ही हैं अब संसार में कौन करेगा तेरी सदगति !
हे कलि के युग अब तो बता दे, कब होगी तेरी अति।
और क्या-क्या करवाएगा समाज में, कितनी करेगा और क्षति॥

Saturday, March 21, 2009

पहाडों में स्वरोजगार

पहाडों की मिटटी,पानी व जवानी,पहाडों से यूँही बह जाते हैं।
मैदानों में जाकर पूरी ताकत से, सारे काम यही संवारते हैं।
अब तो कुछ नौकरियां मिलने लगीं , पर स्वरोजगार के नाम पर,
सरकार,नेता,मंत्री,संतरी, सब यूँही बहकाते हैं।
बेरोजगारों के सपने ,बैंक-मैनेजरों की "मनमानी" की भेंट
चढ़ जाते हैं।

आवारा सांड

जिसे टी.वी.पर दिखना हो तो हिंदुत्व की बात बोल दो,(+या- कुछ भी)
ये अपने चैनल पर आपको विज्ञापनों से भी ज्यादा दिखा जायेंगे।
(दिखायेंगे बेशक विरोधी भावः से)
जैसे लाल कपड़ा देख कर आवारा सांड भड़कता है(ऐसा सुना है)
आजकल हमारा मीडिया भी कुछ इसी तरह का हो गया है।
हिंदू और हिंदुत्व के बारे में अगर उसे भनक भी पड़ गई तो,
एकदम भड़क उठता है।
भाजपा ने तो हो सकता है इनका कुछ बिगाडा हो,…..(?)
हिंदुत्व(सभ्यता-संस्कृति) ने इनका क्या बिगाडा ,पता नहीं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हिन्दुओं के लिए क्यों नहीं होनी चाहिए।

दूसरों के विरोध में तो नहीं बोल सकते पर अपने समर्थन में
बोलना भी ये गुनाह बना देते हैं।
खैर जो भी हो……दुनिया को, ये तो पता लगा कि "कोई और गाँधी" भी है।

Wednesday, March 18, 2009

पैसा

"पैसा" सब कुछ है, (कंगाल के लिए)।
पर;
कुछ भी नहीं है
(मरने वाले के लिए)
क्योंकि ;
बचा नहीं सकता मृत्यु से,
पर;
कारण बन सकता है मृत्यु का।
इस कलियुग में देखो तो,
पैसा ही सब कुछ है
पर ;
गौर से देखो तो,
कुछ भी नहीं है।

वरुण गाँधी

वरुण गाँधी ने(तथाकथित) भड़काऊ भाषण दिया,
और कोई न भी भड़के, टी.वी.वालों को भड़का दिया,
पर,

वरुण गाँधी को किसने भड़काया,उठता है ये सवाल,
कहीं वीडियो मिक्सिंग का तो नहीं ये कमाल।
जो भी हो, टी.वी.वालों को तो कमाई के लिए

मिल गया एक बबाल।
हम तो यही कहेंगे कि मुंडा जवान हो गया है,
सोच-समझ कर बोले तो अच्छा होगा।

Monday, March 16, 2009

“सात सवाल”

पी.एम. बनने वाले जरा ये तो बताएं कि.....
१.भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को छुपाने-बचाने के लिए किस
तरह के नियम (हथकंडे) बनायेंगे।

२.विदेशी(स्विस) बैंकों में खाते खोलने के लिए नियमों में और कितनी ढील
देंगे और, उनमें जमा धन स्वदेश लाने की कोशिश तो नहीं करेंगे।
३.अपराधी और चरित्रहीन लोगों के किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगाने को कोई सक्षम कानून तो नहीं बनायेंगे।
४.क्या सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल करने के बदले घर बैठे वेतन देने का बिल पास करेंगे। या, “हड़ताल भत्ता” मांगने से पहले दे देंगे?
५.आरक्षण की सीमा बढ़ा कर सभी जातियों के लिए सौ प्रतिशत आरक्षण लागु करेंगे।
६.मतदान, अनिवार्य तो नहीं करेंगे अगर हाँ, तो मतदान न करने वालों के लिए
कोई कानून तो नहीं बनाएँगे।
७.अपने पूर्ववर्ती पी.एमों.की तरह वह अपनी की हुयी घोषणाओं को पी.एम. बनने के बाद भूलेंगे की नहीं।

Saturday, March 14, 2009

"पी.एम की कुर्सी"

पी.एम.बनने वालो पहले एम.पी. तो बनो
सब जानते हैं कौन कितना योग्य है,
अपने मुहं मियां- मिट्ठू तो न बनो।

कुर्सी पाने का सपना तो शायद सभी देखते हैं।( हैसियत के अनुसार)
लेकिन,पी.एम.की कुर्सी का सपना देखने के लिए वैसे तो एम.पी. होना चाहिए,
पर जब से "मनमोहन सिंह" पी.एम. बने हैं (बिना लोकसभा सदस्य बने)
तब से बिना एम.पी. बने सब पी.एम, बनने का सपना देख रहे हैं।

कोई बाप- दादाओं की यादें ताजा कर रहा है ,क्योंकि अपने आप तो कुछ करा नहीं है
अभी तक सिवाय रैलियों और दो-चार गरीबों के यहाँ खाने के।
कोई दलित होने के कारण इस कुर्सी पर अपना अधिकार समझ रहा है।क्योंकि दलितवादी राजनीति
का दौर चल रहा है।
कई लोग अलग-अलग भानुमती का कुनबा बनाने में लगे है।
ये कोई नहीं बता रहा कि
देश के लिए उसके पास क्या सोच(नीति) है।

Tuesday, March 10, 2009

मौलाना महमूद मदनी


"मौलाना को सलाम "
इसे कहते हैं दिखाई न देने वाला "जूता"
ऐसा ही करारा जवाब भारत में रहने वाले कुछ


दिग्भ्रमित लोगों को भी देना चाहिए विशेषकर


कश्मीर के "अलागाववादी नेताओं" को ।


"हिंदुस्तान जाग रहा है "

ये कैसी होली..?

होली…. कहते हैं उमंगों- तरंगों का त्यौहार होता है।
(क्योंकि इस समय मौसम में वातावरण में उमंग होती है)
“पर, ये कैसी होली”जब उमंग लाने के लिए शराब पीनी पड़े।
महिलाऐं सोचती होंगी
“सखी री होरी कैसे खेलूं, मैं, शराबी, सांवरिया के संग”।
कैसी बदबू आवे मुहं से, कैसे लगाऊं प्यार से अंग।
सखी री होरी …….
छि ..घिन लागे मोहे ऐसे मरद से, जो नशे में करे हुडदंग।
सखी री होरी …….
कैसे मिलूं मैं उससे गले(गले पड़ जाता है) और कैसे लगाऊं रंग।
सखी री होरी …….

Sunday, March 8, 2009

पिछले दिनों

आज बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ , पिछले दिनों कई घटनाएँ
घट गई बांग्ला देश में बी.डी.आर का विद्रोह,पाकिस्तान में स्वात से
लेकर क्रिकेट खिलाड़ियों पर हमला तक, तालिबानी घटनाक्रम देख कर
ऐसा लगा कि भस्मासुर स्वयं ही भस्म होगा,
पर उसकी आंच से भारत
को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी। जिसके लिए भारत में एकता होना बहुत
जरुरी है। जो वर्तमान समय में है। विशेषकर हिंदू और मुसलमानों
में।मेरे विचार से जैसे किसी झाड़-झंखाड़ को खेत या बगीचे से केवल
पत्ते काट कर नहीं समाप्त किया जा सकता,उसे समाप्त करने के लिए
उसकी जड़ व उसके बीज एक साथ समाप्त करने पड़ते हैं, वरना वह और
अधिक बढ़ता जाता है ।ऐसे ही आतंकवाद और तालिबानी सोच के लिए
करना पड़ेगा। पर यही दुर्भाग्य है कि उस बारे में कोई भी सोचने की
हिम्मत नहीं कर रहा, कारण क्या है? कारण है इसका किसी धर्म विशेष
से जुड़ा होना, जब तक उन बातों पर खुल कर तर्क-वितर्क (कुतर्क नहीं)
दुनिया के सभी धर्मों के बड़े-बड़े धर्माचार्यों, नेताओं, समाज-
शास्त्रियों तथा नामी-गिरामी लोगों के बीच न हो तब तक इसके बीज का नाश
होना मुस्किल है। अभी भी कुछ धर्म गुरु अपने धर्म ग्रंथों की
सही व्याख्या बताते तो हैं लेकिन वह उस पर पूरी बात करने से साफ-साफ
कन्नी कट जाते हैं
।इस तरह न धर्म का भला होना न इन्सान का, जबकि
धर्म मतलब समाज में रहने के नियम-कानून जिनको हमारे धर्म
ग्रंथों में पाप का भय पुण्य का लाभ या दोजख-जन्नत की लाभ-हानी
या लोक-परलोक के तंत्रों में उलझा कर मनुष्य को इन्हे मानने के लिए
प्रेरित किया है।क्योंकि मनुष्य पशुओं से अधिक विशेषताएं लिए
हुए था लेकिन पशुओं से अधिक ही क्रूरता,हिंसा और आपसी बैर लिए हुए
था।आरम्भ में पेट भरने को शिकार के लिए संगठित होने की आवश्यकता
हुयी तो समाज की स्थापना हो गई सभ्यता का विकास होने लगा जैसे-जैसे
सभ्यता का विकास हुआ नियम बनते गए।जब और विकास हुआ लिपि बनी
तो इनके ग्रन्थ बन गए।उस मूल धर्म के टुकड़े होते गए अपनी-अपनी
परिभाषाएं बनाते गए बाद में अपने मानने वालों की संख्या
बढ़ाने के लिए तन-मन-धन(बल से,विचारों से, लालच से)योगदान
देने लगे। और जब इससे भी बात कम बनी तो सीधे-सीधे आतंकवाद पर
उतर आए।
राजनीति ने इसमे इनका सहयोग किया उनके अपने स्वार्थ थे।जिस
तरह एक देश के अन्दर एक नेता की अपनी राजनीति अपना स्वार्थ होता है
उसी तरह पुरे विश्व के परिप्रेक्ष में किसी देश की अपनी राजनीति अपना
स्वार्थ होता है।इससे आतंकवाद का सारा खेल हुआ । खैर ये मेरे विचार
हैं, “कोई भी असहमत हो सकता है”।
पिछले दिनों से कुछ और पहले (५जन०९)भारत के लिए एक और बड़ी
बात हुयी, “बहुत बड़ी बात”स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान के नाम
से एक राष्ट्रीय संस्था का गठन किया और कार्य आरम्भ कर दिया है।
उस दिन भी टी.वी.न्यूज चैनलों में नहीं देखा, आज लगभग दो माह हो गए
हैं पर न किसी चैनल ने न ही किसी समाचार पत्र ने इस समाचार को
गंभीरता से तो दूर सामान्यतया भी नहीं दिखाया।आखिर इन राष्ट्रभक्त
समाचार माध्यमों को बाबा रामदेव से क्या बैर हो सकता
है।जबकि बाबा
तो मानवतावादी हैं कोई किसी धर्म का हो किसी देश का हो वह सबकी
भलाई की बात करते हैं। इनकी(समाचार माध्यमों)भी आज तक कोई
बुराई स्वामी जी ने नहीं की,तो ये अघोषित बहिष्कार क्यों?आखिर क्या
कारण हो सकता
है।मैंने पहले भी कहा था आज फ़िर समझ आ रहा है
दरअसल मैं आस्था चैनल पर प्रतिदिन सुबह स्वामी जी का कार्यक्रम
देखता हूँ आज पॉँच-छः साल हो गए हैं न कभी उनके विचारों से
असहमत हुआ न कभी ऊबा, चैनल लगा दिया तो जब कार्यक्रम समाप्त
हुआ तभी चैनल बदला उनकी कथनी-करनी में एकरूपता, विचारों में
मानवता के लिए जज्बा देखा है ,वही जज्बा पॉँच जनवरी के बाद देश
के लिए इतना मुखर हो गया है कि जो भी इस देश से, यहाँ की संस्कृति
से ,यहाँ की अच्छी परम्पराओं से, अच्छे रीती-रिवाजों से लगाव रखने
वाला होगा, राष्ट्रभक्त होगा, भारत को केवल भूमि नहीं माता
मानने वाला होगा उसे स्वामी जी की अभिव्यक्ति बिल्कुल भी ग़लत नहीं
लगेंगी, लेकिन जिसको इन सब से थोड़ा सा भी विरोध होगा वह अगर विरोध
नहीं भी करेगा तो इतना प्रयास अवश्य करेगा कि ये विचार ज्यादा लोगों
तक न पहुंचें वही प्रयास ये समाचार माध्यम कर रहे हैं ।

स्वामी जी ने मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार को बनाया हुआ है , स्वदेश
प्रेम को बनाया हुआ है,स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल को बनाया हुआ है,
विदेशी कम्पनियों की पोल स्वामी जी खोलते हैं ,किस तरह हमारी सरकारों,
हमारे नेताओं-अधिकारीयों की मिलीभगत से ये कम्पनियां यहाँ की
जनता को लूट रही हैं।स्वामी जी सब बताते हैं कि हमारे यहाँ के भ्रष्ट
लोगों का कितना पैसा विदेशों में जमा है
,कुछ दिन पहले सुभाष
गाताडे का लेख(२७फ़र.०९राष्ट्रीय सहारा) पढ़ा था की स्विस बैंक में जितना
पैसा भारत के लोगों का है उसे अगर बांटा जाए तो वह पैंतालिस करोड़
लोगों में एक लाख प्रति की औसत से बंट
जाएगा।अगर ऐसा हो जाए तो कोई
गरीबी रेखा से नीचे नहीं होगा। आतंकवाद के विरोध में स्वामी जी बोल
रहे हैं , मतलब,शायद इतनी बड़ी लड़ाई १९४७ से पहले विदेशियों के
खिलाफ भी नहीं लड़ी गई हो इतनी बड़ी लड़ाई की भूमिका स्वामी जी ने
बना दी है शायद ज्ञात इतिहास में यह एक सबसे बड़ा आन्दोलन होगा।
लेकिन हमारे समाचार माध्यमों को विज्ञापनों, फिल्मों,अपराधों,
राजनीतिज्ञों,ज्योतिषियों, अंधविश्वासों के समाचार ही दिखा-पढ़ा कर लगता है की ये
समाज और देश का भला कर रहे हैं। लेकिन शायद इनकी भी मज़बूरी
है
क्योंकि स्वामी जी जिनका विरोध करते हैं(बहुराष्ट्रीय कम्पनियों)
९० प्रतिशत विज्ञापन तो उन्ही कम्पनियों के इन चैनलों पर होते हैं।
जैसे भ्रष्ट राज नेताओं का विरोध स्वामी जी करते हैं क्या पता वह भी
इन चैनलों को दबाव में रखते हों।
आख़िर पैसा किसे अच्छा नहीं लगता
स्वामी जी को हाई लाईट करने के चक्कर में कहीं अपना बाजार बंद न हो
जाए। कुछ भी कारण हो सकता है। लेकिन इस तरह तो इनकी निष्ठां पर संदेह
होना लाजमी है।
चुनाव घोषित हो गए ये और एक बात पिछले दिनों हूई है। समाचार
माध्यमों का कमाई का मौसम है वैसे तो साल भर कमाई होती है
पर इस समय “ऑफ दा रिकार्ड”कमाई का अवसर होता है नेता अपनी जीत के लिए
प्रचार के नाम पर खुल कर पैसा बांटते हैं। इन दिनों तो ये स्वामी जी के
नजदीक भी नहीं चाहेंगे क्योंकि वह इन नेताओं की भी बखिया
उधेड़ रहे हैं। वह चाहे किसी पार्टी का हो। जितनी आग स्वामी जी आजकल
उगल रहे हैं उसके समर्थन में तो कोई भी अपने स्वार्थों के कारण
नहीं बोल रहा पर कोई विरोध करने की हिम्मत भी नहीं कर रहा।
यह भी
अपने आप को दिलासा देने की बात है कि स्वामी जी के शब्दों में "९९प्रतिशत
लोग उनके विचारो से सहमत हैं।आज इतना ही ...... कोशिश करूँगा फ़िर से नियमित लिखूं।